कैसा बदलाव कर रही है कांग्रेस, पार्टी को पूरी तरह डुबाने पर प्रियंका का कद बढ़ा दिया

By अजय कुमार | Jul 16, 2019

एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके हैं, लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी रहीं प्रियंका वाड्रा की नाकामयाबी को अनदेखा करते हुए अवार्ड स्वरूप उनका ओहदा बढ़ा दिया गया है। प्रियंका गांधी को अब पूरे उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना दिया गया है। समझा जा रहा है कि 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस आलाकमान द्वारा प्रियंका को नई जिम्मेदारी सौंपी गई है। प्रियंका का कद बढ़ाए जाने से यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कितना फायदा होगा, यह तो 2022 के चुनावों के समय पता चलेगा लेकिन प्रियंका का कद बढ़ाए जाने से प्रदेश कांग्रेस में स्थितियां जरूर बदली नजर आ रही हैं।

 

कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अब यह लग रहा है कि राज्य में एक प्रभारी के होने से किसी बात को लेकर फैसले लेने में अब किसी तरह की अनावश्यक देरी नहीं होगी और प्रियंका गांधी को पूरे राज्य का प्रभार मिलने से संगठन को ताकत मिलेगी। प्रियंका को नई और बड़ी जिम्मेदारी मिलने से कांग्रेस में भले कुछ सरगर्मी दिखाई दे रही हो, लेकिन समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पाटी और भारतीय जनता पार्टी जैसे दल इसे गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हैं। विरोधी सवाल उठा रहे हैं कि अगर लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के चलते राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ देते हैं तो फिर लोकसभा चुनाव में पूर्वी यूपी की प्रभारी रहीं प्रियंका वाड्रा को पद से हटाने के बजाए उन्हें पुरस्कार स्वरूप पूरे यूपी का प्रभारी कैसे बनाया जा सकता है। विरोधी इसे गांधी परिवार का दोहरा चरित्र बता रहे हैं। सवाल यह भी है कि जब लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद राहुल गांधी बड़ी साफगोई से यह कह सकते हैं कि वह या फिर, गांधी परिवार का कोई सदस्य कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनेगा तो फिर इसी आधार पर प्रियंका का कद कैसे बढ़ाया जा सकता है।

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गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से पहले गांधी परिवार ने जब प्रियंका वाड्रा गांधी को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर पूर्वी एवं उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी थी तब इसे कांग्रेस के ट्रम्प कार्ड के रूप में देखा जा रहा था। इससे पूर्व प्रियंका रायबरेली और अमेठी की जिम्मेदारी संभाला करती थीं। प्रियंका गांधी के साथ पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन राज्य में कांग्रेस को न केरवल करारी हार का सामना करना पड़ा, बल्कि 15 वर्षों के बाद राहुल गांधी भी अमेठी से लोकसभा चुनाव हार गए। लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया है।

 

प्रियंका को यूपी का प्रभारी बनाए जाने को कांग्रेसी राहुल के इस्तीफे के बाद संगठन के पुनर्गठन की प्रक्रिया का हिस्सा मान रहे हैं। संभावना जताई जा रही है कि नया राष्ट्रीय अध्यक्ष तय होने के बाद राज्यों के संगठनों में बदलाव देखा जा सकता है। इसी वजह से फिलहाल प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की भी जिम्मेदारी सौंपी गई है। प्रियंका का कद जरूर बढ़ा है, लेकिन उत्तर प्रदेश में अपने कैडर को पुनर्जीवित करने के प्रयास में कांग्रेस ने राज्य की सभी जिला समितियों को भंग कर दिया है। चुनाव के दौरान पार्टी के अंदर घोर अनुशासनहीनता की शिकायतें मिली थीं। इसकी जांच करने के लिए पार्टी की तरफ से तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया गया था।

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लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट पर जीत हासिल हुई थी। इसके अलावा पार्टी को सभी लोकसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस का वोट प्रतिशत भी 2014 के लोकसभा चुनावों के मुकाबले घट गया था। यहां तक कि अमेठी लोकसभा सीट जहां से राहुल गांधी चुनाव लड़े थे, वहां के अलावा पार्टी के प्रत्याशी किसी भी सीट पर नंबर दो पर नहीं रहे थे। कुछ समय बाद राज्य में 12 विधानसभा सीटों पर उप−चुनाव होने जा रहे हैं। कांग्रेस की जिला कमेटियां भंग कर देने के बाद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जो निराशा का भाव था, वह प्रियंका गांधी को प्रभारी बनाए जाने के बाद कम हुआ है। प्रियंका को यूपी कांग्रेस का प्रभारी बनाकर आलाकमान यह संदेश दे देना चाहता है कि पार्टी अब भी उत्तर प्रदेश को काफी गंभीरता से ले रही है, लेकिन सियासी जानकार मानते हैं कि प्रियंका का कद बढ़ा देने मात्र से संगठन की जमीनी हकीकत नहीं बदल सकती है। इसके लिए कांग्रेसियों को जमीनी स्तर पर जो समस्यायें हैं, उन पर गंभीरता से विचार करना होगा। जमीनी स्तर पर संगठन न केवल कमजोर है बल्कि न के बराबर है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की दुर्दशा का एक कारण संगठन का मजबूत नहीं होना भी था। इसी तरह यहां जनाधार वाले नेताओं की भी कमी नजर आती है, जो नेता कभी दिग्गज हुआ करते थे, वह अपनी ही सियासत नहीं संभाल रहे हैं तो पार्टी का क्या भला करेंगे। स्थिति यह है कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अंदर मठाधीशी चरम पर है। लम्बे समय से संगठन में जड़ें जमाए बैठे बुजुर्ग कांग्रेसी यह नहीं चाहते हैं कि संगठन में किसी नौजवान को मौका मिले क्योंकि ऐसा होने पर उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन खिसकती नजर आने लगती है।

 

-अजय कुमार

 

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