बसंत बाबू के नाम से मशहूर बी.के. बिड़ला अब हमारे बीच नहीं रहे। वह बी.के.बिड़ला बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आइए बी.के. बिड़ला के बारे में आपको कुछ जानकारी देते हैं।
बसंत कुमार बिड़ला, बिड़ला परिवार के एक बिजनेसमैन थे। वह कृष्णार्पण चैरिटी ट्रस्ट, बीके बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी और विभिन्न शैक्षणिक ट्रस्टों और संस्थानों के अध्यक्ष भी थे। बिड़ला परिवार देश के बड़े औद्दोगिक घरानों में से एक है। इस घराने ने देश में आजादी की लड़ाई में नैतिक समर्थन दिया। बिड़ला परिवार से गांधी जी के घनिष्ठ सम्बन्ध थे।
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घनश्याम दास बिड़ला के सबसे छोटे बेटे बी.के. बिड़ला का जन्म 12 जनवरी, 1921 को हुआ था। पंद्रह साल की उम्र तक वह बड़ी संख्या में कंपनियों के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे। अप्रैल 1941 में उन्होंने जमनालाल बजाज और महात्मा गांधी द्वारा एक-दूसरे से परिचय कराने के बाद, कार्यकर्ता और लेखक बृजलाल बियानी की बेटी सरला से शादी की। बसंत कुमार और उनकी पत्नी सरला को एक पुत्र आदित्य विक्रम बिड़ला और दो बेटियां जयश्री मोहता और मंजुश्री खेतान थीं। बिरला की मृत्यु 3 जुलाई 2019 को 98 वर्ष की आयु में हुई।
बी.के. बिड़ला बिड़ला सेंचुरी टेक्सटाइल्स एंड इंडस्ट्रीज के चेयरमैन थे और 15 साल की उम्र से बिजनेस में एक्टिव रहे। उन्होंने कई कारोबारी पहलों में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने अपने कैरियर के प्रारम्भ में काम की शुरुआत केसोराम इंडस्ट्रीज के चेयरमैन के रूप में की थी। वैसे तो बी.के. बिड़ला का उद्योग देश और देश के बाहर भी फैला हुआ था लेकिन बिड़ला ने खास तौर से कपास, विस्कोस, पॉलिस्टर और नायलॉन धागा शिपिंग, पारदर्शी कागज, सीमेंट, कागज, चाय, कॉफी, इलायची, रसायन और प्लाईवुड जैसे क्षेत्रों में अवसरों का फायदा उठाया।
वह कृष्णार्पण चैरिटी ट्रस्ट के अध्यक्ष थे, जो राजस्थान के पिलानी में बी.के. बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, स्वर्गग्राम ट्रस्ट नाम से एक इंजीनियरिंग कॉलेज चलाता है। साथ में ऋषिकेश में एक संस्कृत विद्यालय भी चलाता है। उन्होंने कतर में बिड़ला पब्लिक स्कूल और मुंबई के पास कल्याण में बिरला कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स की स्थापना भी की। वह कई किताबों के लेखक भी हैं, जिसमें स्वंता सुखाय नामक आत्मकथा भी शामिल है।
वह न केवल एक बड़े बिजनेसमैन थे बल्कि उनकी विभिन्न विषयों में रूचि भी थी। उन्हें वायलिन बजाने, किताबें लिखने और फोटोग्राफी का शौक था। साथ ही उन्होंने देश में कई शैक्षणिक संस्थाओं को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभायी है। उनके बेटे आदित्य विक्रम बिड़ला की अकाल मृत्यु उनके लिए एक बहुत बड़ा झटका था जिसने उन्हें तोड़ दिया। उनकी पत्नी सरला बिड़ला सशक्त महिला थीं। सरला उनकी सच्ची मित्र तथा मार्गदर्शक थीं। दोनों को स्विट्ज़रलैंड और केदारनाथ का एक साथ जाना बहुत पसंद था। एक परिवार के रूप में, बिड़ला ने बहुत दान किया और पूरे भारत में कई मंदिरों का निर्माण किया। वह कला के संरक्षक भी थे। उनके संग्रह में बड़े कलाकार की कृतियां शामिल थीं।
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भारतीय कॉरपोरेट्स के विदेश में निर्माण इकाइयों में जाने से पहले, बीके ने इथोपिया में एक कपड़ा फैक्ट्री स्थापित की। जय श्री चाय के नाम से उनका प्रमुख चाय उद्योग था जिसके 26 बाग हैं जो ज्यादातर असम और दार्जिलिंग में हैं।
स्वभाव से कम खर्चीले बीके ने पूरे देश में स्कूल, कॉलेज, इंजीनियरिंग और प्रबंधन संस्थान बनाए। कुछ सबसे प्रसिद्ध संस्थाओं में पुणे का बिट्स-पिलानी, बीके बिड़ला सेंटर ऑफ एजुकेशन, दिल्ली का बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी और कोलकाता में अशोक हॉल शामिल हैं। उन्होंने कोलकाता को बिरला अकादमी भी दी, जिसमें चित्रों और मूर्तियों का शानदार संग्रह और कलामन्दिर में एक विश्व स्तरीय सभागार भी है।
प्रज्ञा पाण्डेय