उच्चतम न्यायालय ने आज गुजरात की एक अदालत को निर्देश दिया कि यौन हिंसा के मामले में सूरत की दो बहनों द्वारा स्वंयभू कथावाचक आसाराम के खिलाफ दर्ज कराये गये मामले में अभियोजन के साक्ष्य दर्ज करने की प्रक्रिया तेज की जाये। प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने सूरत की अदालत को निर्देश दिया कि कथित बलात्कार की पीडितों सहित अभियोजन के शेष 46 गवाहों के बयान दर्ज किये जायें।
पीठ ने कहा, ‘‘निचली अदालत को निर्देश दिया जाता है कि गवाहों के परीक्षण का काम जहां तक संभव हो, यथाशीघ्र तेजी से किया जाये।’’ गुजरात सरकार की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह वही मामला है जिसमें अभियोजन के दो गवाहों की हत्या की जा चुकी है। उन्होंने कहा कि अभियोजन के 29 गवाहों का परीक्षण हो चुका है और अभी 46 गवाहों के साक्ष्य दर्ज होना शेष हैं। पीठ ने आसाराम की याचिका जुलाई के तीसरे सप्ताह में सुनवाई के सूचीबद्ध करते हुये कहा, ‘‘इस मामले को लटकायें नहीं। यही हम आपसे (गुजरात) कहना चाहते हैं। साक्ष्य दर्ज करने का काम तेजी से किया जाये।’’
इससे पहले, शीर्ष अदालत आसाराम को उनके खराब स्वास्थ सहित विभिन्न आधारों पर की गयी अपील पर राजस्थान और गुजरात में दर्ज यौन हिंसा के दो अलग अलग मामलों में जमानत देने से इंकार कर दिया था। शीर्ष अदालत ने 30 जनवरी को आसाराम की जमानत याचिका खारिज करते हुये कहा था कि उन्होंने जमानत के लिये न्यायालय के अवलोकनार्थ ‘फर्जी दस्तावेज’ पेश किये थे। न्यायालय ने इस मामले में कथित फर्जी कागजात तैयार करने और दाखिल करने के लिये जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था। सूरत की दो बहनों ने आसाराम और उनके पुत्र नारायण साई के खिलाफ दो अलग अलग शिकायतें दर्ज करायी थीं जिसमें उन पर बलात्कार करने और गैरकानूनी तरीके से बंधक बनाने सहित कई आरोप लगाये गये थे। बड़ी बहन ने अहमदाबाद के निकट स्थित आश्रम में आसाराम पर 2001 से 2006 के दौरान बार बार उसके साथ यौन हिंसा करने का आरोप लगाया था। आसाराम को जोधपुर पुलिस ने 31 अगस्त 2013 को गिरफ्तार किया था और तभी से वह जेल में है।