पहले की सरकारों ने ना लोगों के स्वास्थ्य पर ध्यान दिया ना ही स्वास्थ्य सेवाओं पर

By ललित गर्ग | Sep 02, 2019

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर ‘फिट इंडिया अभियान’ की शुरुआत करते हुए सभी को स्वस्थ रहने का संदेश देकर एक सकारात्मक क्रांति का उद्घोष किया है। एक ऐसी जनचेतना का सूत्रपात किया है, जिससे राष्ट्र हर मोर्चें पर सुदृढ़ एवं सशक्त होगा। हमें उन्नत स्वास्थ्य एवं तन्दुरूस्ती को अपने परिवार, समाज और देश की सफलता का मानक बनाना होगा। ‘मैं फिट तो इंडिया फिट’ और ‘बॉडी फिट तो माइंड फिट’ भी इसके लिए अच्छे सूत्र साबित हो सकते हैं। आजादी के बाद से ही सरकार को स्वास्थ्य पर सर्वाधिक बल देना चाहिए था, लेकिन सरकारें इस दृष्टि से उदासीन ही रही हैं, केवल स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान दिया, स्वास्थ्य पर नहीं। पहली बार कोई प्रधानमंत्री लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की चेतना जगाते हुए उनमें स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा कर रहा है, निश्चित ही इससे भारत की तस्वीर एवं तकदीर बदलेगी, एक नये भारत का अभ्युदय होगा।

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फिट इंडिया अभियान का ध्येय भारत के लोगों के स्वास्थ्य के स्तर को ऊंचा उठाना है एवं उन्नत स्वास्थ्य की जीवनशैली निरूपित करना है। एक स्वस्थ भारत बनाने के लक्ष्य के लिये इसकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। आज न केवल भारत बल्कि समूची दुनिया के सम्मुख स्वास्थ्य एक प्रमुख एवं बड़ी समस्या है। जबकि किसी भी देश की संपन्नता इस बात से भी आंकी जाती है कि वहां के लोग कितने स्वस्थ और खुशहाल हैं। भारत में स्वास्थ्य स्थितियों को लेकर समय-समय पर होने वाले सर्वेक्षणों में चिंताजनक आंकड़े सामने आते रहते हैं। हर इंसान में तंदुरुस्त रहन-सहन की आदत को प्रोत्साहन देने और लोगों के जीवन के लिये अच्छे स्वास्थ्य का वातावरण निर्मित करने लिये मोदी का प्रयास आमजीवन को उन्नत बनायेगा।

 

बीमारीमुक्त समाज व्यवस्था को स्थापित करने के ध्येय से उनके आह्वान की उपयोगिता एवं प्रासंगिकता है क्योंकि जिसके पास स्वास्थ्य है उसके पास आशा है, और जिसके पास आशा है, उसके पास जिंदगी में सब कुछ है। सुख है, शांति है और प्रसन्नता है। स्वास्थ्य वह बेशकीमती दौलत है जिसे दुनिया की सारी दौलत मिलकर भी नहीं खरीद सकती। अमीर होने के लिए अपने स्वास्थ्य को दांव पर लगाना आधुनिक जीवन की एक बड़ी विषमता एवं विसंगति है, क्योंकि यह सत्य है कि स्वास्थ्य दौलतों की भी दौलत है। इसलिए दुनिया के तमाम देशों में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि लोगों में जीवनशैली संबंधी बीमारियों के प्रति सतर्कता पैदा की जाए। आंकड़े यह भी बताते हैं कि सरकारों को जितना पैसा गंभीर बीमारियों के इलाज पर नहीं खर्च करना पड़ता उससे कहीं ज्यादा पैसा जीवनशैली संबंधी समस्याओं पर काबू पाने के लिए करना पड़ता है। जीवनशैली संबंधी बीमारियां जैसे रक्तचाप, मधुमेह, अस्थमा, हड्डियों की कमजोरी वगैरह को सामान्य रूप से स्वास्थ्य के प्रति सजग रहकर अपनी दिनचर्या में सुधार लाकर काबू किया जा सकता है। नियमित व्यायाम, योगासन, सकारात्मक सोच, संतुलित एवं सात्विक खानपान आदि से शरीर में पैदा हुई अनियमितता एवं अस्तव्यस्तता को आसानी से दुरुस्त किया जा सकता है। इस तरह इन बीमारियों पर व्यय होने वाले धन की बचत होगी और उसका उपयोग दूसरी बुनियादी सुविधाओं के मद में किया जा सकता है।

 

विडम्बनापूर्ण है कि जिन समस्याओं पर खुद सतर्क रह कर काबू पाया जा सकता है, उनके लिए भी लोग सरकारों का मुंह ताकते हैं। स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं बेहतर न होने, चिकित्सा पर खर्च बढ़ते जाने, दवाओं की कीमतें नियंत्रित न होने आदि की शिकायतें आमतौर पर सुनने को मिल जाती हैं। मगर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि शरीर में अनेक तरह की अनियमितताओं एवं अस्तव्यस्तताओं को हम खुद अपनी लापरवाही से पैदा कर लेते हैं, जो बाद में गंभीर बीमारी का कारण बनती हैं। अगर हम अपने खानपान और दिनचर्या, सामान्य व्यायाम वगैरह का ध्यान रखें तो कई समस्याओं पर खुद काबू पा सकते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री का ‘फिटनेस इंडिया अभियान’ स्वास्थ्य के मामले में बेहतर व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के निर्माण की उम्मीद जगाता है। मोदी ने फिटनेस को स्वस्थ और समृद्ध जीवन की जरूरी शर्त बताया। हालांकि भारत की संस्कृति में स्वास्थ्य को ठीक रखने की प्रेरणा प्राचीन समय से दी जाती रही है। कहावत ही है कि पहला सुख निरोगी काया। पर जैसे-जैसे विकास और जीवन में सुख-सुविधाएं बढ़ती गई, लोग इसके महत्व को भूलते गए या फिर कुछ व्यस्तताओं के चलते अपेक्षित ध्यान नहीं दे पाते। भारत की उस प्राचीन परंपरा को मोदी ने जीवंतता देकर जीने को नया अंदाज दिया है, क्योंकि लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान करना आज बड़ी जरूरत बन गई है।

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विचारों का स्वास्थ्य पर बहुत गहरा प्रभाव होता है, अतः स्वस्थ जीवन के लिए सकारात्मक विचारों का विकास जरूरी है। आज हर आदमी सुख की खोज में खड़ा है और उस थके हारे इंसान के लिये महान् दार्शनिक आचार्य महाप्रज्ञ कहते हैं कि आदमी शरीर को ज्यादा संभालता है, मन को कम। समझदार आदमी इसका उल्टा करेगा। वह शरीर पर अगर तीस प्रतिशत ध्यान देगा तो मन पर सत्तर प्रतिशत। आखिर शरीर का संचालक मन ही तो है। अगर वह स्वस्थ नहीं तो शरीर कैसे स्वस्थ रहेगा?’ इसलिये मन की शुद्धि एवं स्वस्थता जरूरी है। हमें विचारों की स्वस्थता और संतुलन पर भी विशेष ध्यान देना होगा। आज ‘फेथ-हीलिंग’ की चर्चा ज्यादा है, जिसे आस्था और भावना द्वारा चिकित्सा का ही एक रूप कह सकते हैं। भौतिक चिकित्सा का उपयोग करते हुए भी हमें इस आध्यात्मिक चिकित्सा का प्रयोग करना चाहिए।

 

सीक्रेट लाइफ ऑफ वाटर में मैसे ईमोटो लिखते हैं, ‘अगर आप उदास, कमजोर, निराश, संदेह या संकोच से घिरा महसूस कर रहे हैं तो खुद के पास लौटें, स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करें, देखें कि वर्तमान में आप कहां हैं, क्या हैं और क्यों हैं। आप खुद को पा जाएंगे, आत्म-साक्षात्कार की इस स्थिति से आप बिल्कुल कमल के फूल की तरह खिल जायेंगे, जो कीचड़ में भी पूरी खूबसूरती के साथ खिल उठता है।’ इस तरह तमाम बाधाओं एवं परेशानियों के बीच भी आप प्रसन्नता एवं स्वस्थ्यता को जीवन में उतरते हुए देख सकेंगे। प्रसन्नता विश्व का श्रेष्ठ रसायन है। जो इसका निरंतर सेवन करता है, उसमें रोग प्रतिरोधक शक्ति का स्वतः विकास होता है। जो मनुष्य अपनी शुद्ध प्रकृति में स्थिर होता है, वही स्वस्थ होता है। इस परिभाषा के अनुसार स्वस्थ वह है जो शरीर से ही नहीं, विचारों से भी स्वस्थ है। जिसके त्रिदोष-वात, पित्त, कफ, अग्नि (पाचनशक्ति), रक्त मज्जा, मांस आदि धातुएं तथा मल-विसर्जन आदि क्रियाएं सम होती हैं, जिसकी आत्मा, इन्द्रियां व मन प्रसन्न हैं, वही स्वस्थ होता है। स्वयं पर भरोसा जरूरी है, मनुष्य जीवन में तभी स्वस्थ रह सकता है, तभी ऊंचा उठता है जब उसे स्वयं पर भरोसा हो जाए कि मैं अनंत शक्ति सम्पन्न हूं। ऊर्जा का केन्द्र हूं। अन्यथा जीवन का आधा दुःख तो हम इसलिये उठाते फिरते हैं कि हम समझ ही नहीं पाते कि सच में हम क्या हैं? स्वास्थ्य की कीमत तब तक नहीं समझी जा सकती जब तक बीमारी नहीं घेर लेती। कोई दवाइयां और चिकित्सक तो खरीद सकता है पर स्वास्थ्य कभी नहीं। इसलिये स्वस्थ जीवन के लिये व्यक्ति को स्वयं ही जागरूक एवं सतर्क होना होता है।

 

मोदी के इस अभियान का उद्देश्य लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाना है और भारत सरकार के खेल मंत्रालय के अलावा, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, पंचायती राज मंत्रालय तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय आपसी तालमेल से इसमें अहम भूमिका निभाएंगे। सामाजिक-आर्थिक विकास के आधुनिक मॉडल ने जीवन में सुविधाएं बढ़ाई हैं लेकिन मनुष्य के स्वास्थ्य पर भारी संकट भी पैदा कर दिया है। भारतीय चिकित्सा संघ के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 3.52 करोड़ भारतीय स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर कोई शारीरिक गतिविधि नहीं करते। 70 फीसदी युवा रोज व्यायाम नहीं करते और 62.5 प्रतिशत अपने खानपान पर ध्यान नहीं देते। जाहिर है, अगर देश को फिट रखना है तो यह मिजाज बदलना होगा। फिटनेस को एक अभियान का रूप देने के लिए स्कूल-कॉलेजों और सरकारी, गैर सरकारी, सभी तरह के संस्थानों को आगे आना होगा। कई अध्ययनों से पता चला है कि नियमित शारीरिक गतिविधि यानी व्यायाम, श्वास का संतुलित प्रयोग, सकारात्मक सोच, शुद्ध एवं सात्विक खानपान जीवन जीने की संभावनाओं को बढ़ाती है और समय से पहले मृत्यु दर के जोखिम को कम करती है। ऐसा कोई जादुई फॉर्मूला नहीं है जो घंटों की शारीरिक गतिविधियों को जीवन के घंटों में तब्दील कर दे, लेकिन शोध से पता चलता है कि जो लोग अधिक सक्रिय होते हैं वे स्वस्थ रहते हैं और लंबे समय तक जीवन जीते हैं। मोदी ने लोगों की जीवन सांसों को नया आयाम दिया है, जरूरत है इसकी सफलता में स्वयं पहरेदार बनने की।

 

-ललित गर्ग

 

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