By दीपक कुमार त्यागी | May 03, 2022
"खींचो न कमानों को न तलवार निकालो,
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो।"
उन्होंने शायर के रूप में लगभग सौ वर्ष पहले ही प्रेस की ताकत का अंदाजा लगा लिया था, वास्तव में यह बात एकदम कटु सत्य है, आज के दौर में भी निष्पक्ष व निर्भीक कलम की ताकत के आगे तलवार और तोप की ताकत कोई मायने नहीं रखती है। किसी देश में जो अहिंसक तरीकें से शांतिपूर्ण ढंग से बड़ा बदलाव प्रेस ला सकती वो और किसी भी और माध्यम से लाना संभव नहीं है। वैसे भी भारत जैसे 135 करोड़ लोगों की भारी-भरकम जनसंख्या वाले देश में हमेशा लोकतांत्रिक व्यवस्था की सुरक्षा के लिए प्रेस के सभी संस्थानों व कलमकार की स्वतंत्रता व निष्पक्षता बेहद जरूरी है। उनका देश व समाज के प्रति सकारात्मक व्यवहार बहुत ज्यादा जरूरी है।
हालांकि आज के व्यवसायिक दौर में हावी होते बाजारवाद के मूल्यों से प्रेस भी बहुत अधिक प्रभावित हुई है, प्रेस के संस्थानों की जबरदस्त आपसी व्यवसायिक आपाधापी वाली प्रतिस्पर्धा के चलते, भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर तो कम लेकिन कुछ संस्थानों की निष्पक्षता पर बार-बार देशवासियों के द्वारा प्रश्नचिन्ह जरूर लगाया जा रहा है।
भारत के साथ सम्पूर्ण विश्व में 3 मई के दिन को "अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस" के रूप में मनाने का मकसद था कि लोग विश्व में स्वतंत्र व निष्पक्ष पत्रकारिता का समर्थन करके, वो प्रेस के हितों की रक्षा करें। आज के आधुनिक समय में भी प्रेस को किसी भी राष्ट्र या समाज के बारे में जानने का सबसे विश्वसनीय सशक्त माध्यम या आईना माना जाता है, जो किसी भी राष्ट्र या समाज के हालातों की और हर प्रकार की सम-सामयिक परिस्थितियों का निष्पक्ष रूप से अध्ययन करके सटीक विश्लेषण करता है। प्रेस की स्वतंत्र स्थिति के बारे में बेहद आसान शब्दों में समझें, तो किसी भी देश में प्रेस की आजादी इस बात से ही साबित हो जाती है कि उस देश में लोगों को बोलने की कितनी आजादी है, उन्हें सिस्टम में बैठे ताकतवर लोगों के सामने अपनी बात उठाने के लिए अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है। हमारे भारत जैसे लोकतांत्रिक व्यवस्था को मानने वाले विशाल देश में, प्रेस की स्वतंत्रता व निष्पक्षता एक मौलिक जरूरत है।
"अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस" के इतिहास की बात करें तो सन् 1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के "जन सूचना विभाग" ने मिलकर इसे मनाने का निर्णय किया था। जिसके बाद "संयुक्त राष्ट्र महासभा" ने भी 3 मई को हर वर्ष "अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस" मनाने की घोषणा की थी। यूनेस्को महासम्मेलन के 26वें सत्र में सन् 1993 में इससे संबंधित प्रस्ताव को स्वीकार किया गया था। इस दिन को मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार के उल्लघंनों की गंभीरता के बारे में जानकारी देना है। इसके उद्देश्यों में प्रकाशनों की कांट-छांट, उन पर जुर्माना लगाना, प्रकाशन को निलंबित कर देना और बंद कर देना आदि भी शामिल है।
विश्व में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर हाल ही में जारी "विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2020" में 180 देशों के "विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक" 2020 में भारत 142वें स्थान पर पहुँच गया है, जबकि बीते वर्ष 2019 में भारत इस सूचकांक में 140वें स्थान पर था। यह सूचकांक "रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स" नामक गैर-सरकारी संगठन के द्वारा हर वर्ष जारी किया जाता है। जो कि विश्व के 180 देशों और क्षेत्रों में मीडिया और प्रेस की स्वतंत्रता को दर्शाता है। इस सूचकांक पर देश में पत्रकारिता के धुरंधरों के तरह-तरह के मत है कोई इसके पक्ष में है कोई इसके विपक्ष में खड़ा है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि जिस तरह से भारत में अभिव्यक्ति की पूर्ण आजादी है, उसी तरह से प्रेस को भी पूर्ण आजादी प्रदान है। कही ना कही यह सूचकांक हमारे देश व देश की प्रेस के प्रति किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित नजर आता है।
भारत में प्रेस की आजादी एक बहुत गहन विचारणीय बहस का मुद्दा है, कुछ लोगों का मानना है प्रेस पूर्ण स्वतंत्र रूप से कार्य कर रही है, वहीं कुछ लोगों का मत है कि समय-समय पर प्रेस पर अनावश्यक बेवजह का दबाव हमेशा से डाला जाता रहा है, जो प्रेस के लिए ठीक नहीं है। वहीं इस स्थिति को हम संवैधानिक नजरिए से देखें, तो कहीं से भी यह स्थिति नहीं है कि हमारे देश के मीडिया संस्थानों पर किसी तरह का कोई बेवजह का नियंत्रण या दबाव है। देश में यह कहना कि प्रेस पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं है कही से भी न्यायोचित नहीं होगा।
वैसे प्रेस की स्वतंत्रता के नजरिए से देखा जाये तो देश में उसकी स्वतंत्रता को खतरा पैदा करनी वाली छुटपुट व कभी-कभी बड़ी घटनाएं होती रहती है। लेकिन उन सभी घटनाओं के पीछे बहुत सारे कारक छिपे होते हैं, जिनका विस्तार से अध्ययन करके ही किसी तरह का निष्कर्ष निकाला जा सकता है। देश में समय-समय पर पत्रकारों के विरुद्ध पुलिस हिंसा और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों या समूहों और भ्रष्ट स्थानीय ताकतवर लोगों व अधिकारियों द्वारा प्रायोजित हिंसा की घटनाएं व उनके द्वारा उकसाए गए विद्रोह की घटनाएं होती रही हैं। देश में पत्रकारों के खिलाफ कुछ घटनाओं में तो अधिकारियों की आचोलना करने मात्र व कुछ अन्य गंभीर मामलों को उठाने के चलते, गंभीर आपराधिक धाराओं का बलपूर्वक प्रयोग, पत्रकारों की कलम को रोकने के लिए किया गया। बीते वर्षों में देश में पत्रकारों पर "भारतीय दंड संहिता" की गंभीर धारा 124A (राजद्रोह) के प्रयोग के कई मामले सामने आए हैं। जिनमें से अधिकांश को कानूनन, देशहित व पत्रकारिता के हित से कही से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता हैं।
आज के परिदृश्य में देखे तो देश में पक्ष, विपक्ष व निष्पक्ष तीन श्रेणी के प्रेस संस्थान हो गये है। जिसमें सत्ता का आनंद लेने की ख्वाहिश रखने के चलते पक्ष वालों की संख्या कुछ अधिक हो गयी है, दूसरे नम्बर पर विपक्ष वाले संस्थान हो गये है, तीसरे नम्बर पर निष्पक्ष वालें संस्थानों की श्रेणी है जो दिन-प्रतिदिन बहुत तेजी से कम होते जा रहे हैं और देश में जिस तरह की स्थिति बनती जा रही हैं तो वह दिन दूर नहीं है जब निष्पक्ष प्रेस संस्थानों की श्रेणी को जल्द ही संरक्षित करने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे। वरना जिस तरह का आज का व्यवसायिक दौर चल रहा है एक दिन उनके दर्शन दुर्लभ हो जायेंगे। यह भी कटु सत्य है कि कुछ लोगों व लोगों के समूह के द्वारा देश में उन सभी पत्रकारों के विरुद्ध लगातार राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जा रहा है, जो कि सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत करते है, साथ ही सरकार और राष्ट्र के बीच के अंतर को समझते हुए निष्पक्ष रूप से ईमानदारी से अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं। जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश के लिए उचित नहीं है। वैसे देश में कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाये तो भारत में प्रेस बहुत हद तक पूर्ण रूप से स्वतंत्र है, ऐसी स्वतंत्रता शायद ही किसी और देश में देखने को मिलेगी, हमारे यहां प्रेस के लोग सरकार के खिलाफ बिना किसी भय के क्या-क्या नहीं बोल जाते हैं और सरकार उन कलमकारों की चुपचाप सुनती रहती है, यह स्थिति भारत में प्रेस की असली ताकत निष्पक्षता का नतीजा दर्शाती है। हमारे देश मेंं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिंट मीडिया या फिर देश की सोशल मीडिया किसी पर भी कोई ऐसी बेवजह की पाबंदी नहीं है कि किसी को भी सरकार के खिलाफ कुछ भी कहने के लिए पहले किसी तरह की कोई अनुमति लेनी पड़े।
लेकिन यह भी सच है कि आज के व्यवसायिक दौर में देश में जिस तरह से पत्रकारों को तरह-तरह के अनावश्यक दबाव झेलने पड़ते हैं, वह बिल्कुल भी पत्रकारिता व देशहित में उचित नहीं है। इस प्रकार दबाव की स्थिति देश में केवल प्रेस की स्वतंत्रता पर ही हमला नहीं है, बल्कि एक कलमकार की कलम की निष्पक्षता व ईमानदारी पर हमला है। प्रेस के क्षेत्र में बेहद कठिन व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा के चलते व कुछ संस्थानों के मालिकों के द्वारा अधिक धन कमाने की लालसा व उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने देश में कुछ मीडिया संस्थानों के मालिकों को प्रेस की आजादी व निष्पक्षता का सबसे बड़ा दुश्मन बना दिया है। प्रेस को हमारे देश के संविधान ने व सरकार ने तो पूर्ण स्वतंत्रता दी हूई है, लेकिन कही ना कही मालिकों के हितों को साधने के लिए प्रबंधन के भारी दबाव के चलते हमारे कुछ पत्रकार बंधु निष्पक्ष निड़र होकर कलमकार के धर्म को जनहित के कुछ ज्वंलत मसलों में सही ढंग से नहीं निभा पाते हैं।
आज देश में कुछ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संस्थानों की तो गजब की स्थिति हो गयी है वो मालिक के हितों को पूरा करने के खेल में समाज में एक-दूसरे के प्रति जहर भरने पर तुले हुए है। इन चैनलों के एंकर टीआरपी के खेल में पहले नम्बर पर आने की अंधी दौड़ के चक्कर में आयेदिन बिना सिर-पैर के मुद्दों पर स्टूडियो में बैठकर नेताओं व अन्य लोगों को डिवेट में बुलाकर लड़वाते रहते है, पता नहीं इन कुछ लोगों के द्वारा देश में यह किस प्रकार की पत्रकारिता का दौर शुरू किया गया है, जिसका उद्देश्य केवल समाज को तोड़ने का होता है नाकि लोगों को जोड़ने का। उन चंद एंकरों को ना तो 135 करोड़ भारतवासियों की कोई जन समस्या का मुद्दा नजर आता है, ना ही वो समाज की जन समस्याओं को लेकर किसी सार्थक मसलें को लेकर उस पर डिवेट कराने के लिए कभी तैयार हैं। सबसे बड़ी दुख की बात यह है कि वो एक पत्रकार की तरह बेबाक होकर निष्पक्ष होकर सवाल पूछने के लिए भी तैयार नहीं हैं। आज के दौर की शाम के समय होने वाली कुछ न्यूज चैनलों की डिवेटों में बहस के लिए सबसे जरूरी आमजनमानस के सरोकार से जुड़े मुद्दे पूर्ण रूप से गायब रहते हैं, जबकि मालिकों के व्यवसायिक हितों को साधने के लिए व कुछ लोगों को खुश करने के लिए चाटुकारिता वाले मुद्दे जबरदस्त रूप से हावी हैं, 24 घंटे न्यूज चैनल चलाने के लिए एकंर टीवी स्टूडियो में बैठकर सत्तापक्षा और प्रतिपक्ष के नुमाइंदों की तूतू-मैंमैं करवाकर आपस में छीछालेदर करवाने में व्यस्त हैं। कुछ चैनलों की स्थिति तो यह हो गयी है कि अगर गलती से किसी दिन किसी अहम जनसरोकार के मुद्दे पर बहस होती भी है, तो एंकर को ऐसी आदत पड़ चुकी है कि वो उसकी दिशा को बरगला देता है और पूरी बहस को बेमतलब की बनाकर औचित्यहीन बना देता है।
आज देश में कुछ टीवी न्यूज चैनलों पर ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि उनके पत्रकारों पर मालिकों के अलावा स्वयं की बढ़ती आर्थिक व राजनीतिक महत्वाकांक्षा, अलग-अलग तरह के शासन-प्रशासन, राजनीतिक, सांस्थानिक और चैनल को 24 घंटे चलाने के लिए धन के बंदोबस्त करने का भारी-भरकम आर्थिक दबाव है। देश में उत्पन्न इस तरह की हालात के लिए जिम्मेवार स्वयं खुद अधिकतर प्रेस संस्थानों के मालिक हैं।
लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि प्रिंट मीडिया में अब भी कुछ अपवादों को छोड़ दे तो वहां पर अभी भी पत्रकार व पत्रकारिता के लिए भरपूर अवसर उपलब्ध हैं, देश में बहुत सारे निष्पक्ष व निर्भीक संस्थान आज भी जिंदा हैं। प्रिंट मीडिया में पत्रकारिता के मुल्य आज भी कस्बे, जिला, प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर जिंदा हैं। वहीं बाकी मीडिया क्षेत्र में ईमानदार पत्रकारों को जबरदस्त दबाव के चलते संघर्ष करना पड़ रहा हैं।
आज देश में कुछ मीडिया संस्थानों के मालिक तो यह बिल्कुल भी नहीं चाहते कि प्रेस स्वतंत्र रहकर निष्पक्ष रूप से कार्य करें। कुछ मीडिया संस्थानों के मालिकों की धन कमाने की लालसा व राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते देश में यह स्थिति हो गयी है की प्रेस की स्वंतत्रता व निष्पक्षता के सवाल पर चलने वाली किसी भी प्रकार की बहस खुद मीडिया संस्थानों के मालिकों को भी पसंद नहीं आयेंगी। इस मुद्दे पर किसी भी निष्पक्ष पत्रकार के तीखे सवाल उनको नश्तर की तरह चुभने का काम करेंगे। वो एक सच्चे पत्रकार के उन सवालों का जवाब देने में आज पूर्ण रूप से अक्षम हैं।
आज के व्यवसायिक दौर में कुछ शीर्ष पर बैठे लोगों की पत्रकारिता का आलम यह हो गया है कि आप जब भी टीवी को डिवेट देखने के लिए चलाते है तो पाते आपके सामने जो कार्यक्रम चल रहा उसमें निष्पक्ष रिपोर्टिंग की बात तो बहुत दूर की कोड़ी है, रिपोर्टिंग भी नहीं चल रही है बल्कि उस कार्यक्रम में बहुत अच्छे ढंग का महिमामंडन स्तुतिगान करने वाली जबरदस्त पैकेजिंग चल रही होती है। यह सही है कि पत्रकार भी एक आम व्यक्ति ही है और व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है उसके बहुत सारे लोगों से संबंध होते हैं, लेकिन यह एक निष्पक्ष ईमानदार पत्रकार को तय करना है कि वो संबधों को अपनी कलम पर हावी ना होने दे, संबंधों के चक्कर में देश की जनता के सामने वो झूठ की चासनी से लबरेज मसाला ना परोसें। आज के व्यवसायिक दौर में देश के प्रेस मालिकों को सामजंस्य बनाने की आवश्यकता है कि वो संस्थान चलाने के लिए आवश्यक धन की पूर्ति करते हुए, देश में निड़र, निष्पक्ष व निर्भीक पत्रकार के हितों की रक्षा करके, असली पत्रकारिता के दीपक की लो को गर्व से प्रज्वलित रखें। आज देश में जो हालात है उसमें सही मायनों में लोकतंत्र की रक्षा के लिए प्रेस के ऐसे वर्ग की जरूरत है जो ना तो पक्ष वाला हो ना विपक्ष वाला हो बल्कि निष्पक्ष, निड़र, ईमानदार व निर्भीक श्रेणी वाला सच्चा पत्रकार कलमकार हो।।
- दीपक कुमार त्यागी
स्वतंत्र पत्रकार, स्तंभकार व रचनाकार