By अनुराग गुप्ता | Jun 25, 2022
नयी दिल्ली। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर यशवंत सिन्हा विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार है। जिन्हें एनसीपी प्रमुख शरद पवार, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा उम्मीदवार बनने से इनकार किए जाने के बाद जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसी बीच पश्चिम बंगाल की माकपा इकाई यशवंत सिन्हा के नाम पर असंतुष्ट दिखाई दे रही है।
सिन्हा बनाम मुर्मू की लड़ाई
एनडीए की तरफ से द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति उम्मीदवार हैं। जिन्होंने शुक्रवार को अपना नामांकन दाखिल किया। प्रधानमंत्री मोदी ने संसद भवन परिसर स्थित राज्यसभा महासचिव के कार्यालय में निर्वाचन अधिकारी पी.सी. मोदी को द्रौपदी मुर्मू के नामांकन पत्र सौंपे। द्रौपदी मुर्मू के साथ नामांकन दाखिल करने के दौरान अमित शाह, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और सहयोगी दलों के नेता मौजूद रहे।
आपको बता दें कि विपक्ष की तरह से यशवंत सिन्हा उम्मीदवार हैं और उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से राष्ट्रपति चुनाव के लिए उनका समर्थन मांगा है।
बेहतर हो सकता था उम्मीदवार
यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी को लेकर माकपा का कहना है कि उम्मीदवार और भी ज्यादा बेहतर हो सकता था। दरअसल, विपक्षी खेमे में असंतोष के संकेत उस वक्त सामने आए जब माकपा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर यशवंत सिन्हा का समर्थन करते हुए एक संयुक्त बयान जारी किया।
माकपा के राज्यसभा सांसद बिकाश्रंजन भट्टाचार्य ने यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी को करेला के रूप में संदर्भित करते हुए कि पार्टी को यह सहन करना पड़ेगा। जबकि माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने आंतरिक युद्ध के खिलाफ मैदान में उतरना सही समझा। उन्होंने कहा कि वामदलों ने विपक्षी उम्मीदवार को नामित करने से पहले यशवंत सिन्हा को सभी पार्टी पदों से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया और इसे वाम की नैतिक जीत के रूप में वर्णित किया था।