By अभिनय आकाश | Jun 20, 2022
देश में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर गहमा-गहमी तेज हो गई है। विपक्ष जहां एक तरफ कोशिश कर रहा है कि वो कोई अपना एक साझा उम्मीदवार उतारकर एनडीए के विरुद्ध अपना कैंडेटेट खड़ा करे। इसमें ममता बनर्जी पहल कर रही हैं। उन्होंने 22 दलों के नेताओं को चिट्ठी लिखकर दिल्ली में बुलाया था। लेकिन इसमें से 17 दलों के नेता एस मीटिंग में पहुंचे। ममता बनर्जी का जो प्रयास है कि वो राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए को चुनौती देंगी। अस चुनौती में ममता बनर्जी को ही उल्टा झटका लगा है। पहला झटका उनको तब लगा जब वो शरद पवार का नाम लेकर आगे चल रही थीं। शिवसेना के संजय राउत की तरफ से भी कहा जा रहा था कि राष्ट्रपति के लिए सबसे अच्छा उम्मीदवार विपक्ष की तरफ से शरद पवार हैं। लेकिन शरद पवार ने अपने आप को इस दौड़ से 'मैं राष्ट्रपति की रेस में नहीं हूं' ये कहते हुए अलग कर लिया।
अगले नाम के लिए सारा विपक्ष दिल्ली में जुटा और फारुक अब्दुल्ला के नाम पर सहमति बनी। लेकिन फारुक अब्दुल्ला ने भी संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में अपना नाम वापस लेते हुए कहा कि वह ‘‘बेहद महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहे जम्मू-कश्मीर’’ का रास्ता तय करने में अपनी भूमिका निभाना चाहेंगे। अब्दुल्ला ने उनके नाम का प्रस्ताव रखने पर विपक्ष को धन्यवाद दिया है। अब्दुल्ला ने एक बयान में कहा, ‘‘ममता दीदी द्वारा मेरे नाम का प्रस्ताव रखे जाने के बाद मुझे विपक्ष के कई नेताओं का कॉल आया और वे उम्मीदवार के रूप में मेरे नाम का समर्थन कर रहे हैं।’’
विपक्ष की ओर से अगली बैठक 21 जून को शरद पवार ने बुलाई है। विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति चुनाव के जो कुछ और नाम चर्चा में हैं, उनमें पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और सांसद एन के प्रेमचंद्रन और गोपाल कृष्ण गांधी हैं। यशवंत सिन्हा बीजेपी के दिग्गज नेता रह चुके हैं और इस वक्त वो टीएमसी में हैं। वहीं केरल के सांसद प्रेमचंद्रन राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं। उनका नाम आगे करनी की वजह दक्षिण भारतीय दलों का समर्थन हासिल करना है। गोपाल कृष्ण गांधी महात्मा गांधी के पोते हैं। 2019 में भी विपक्ष की तरफ से संयुक्त तौर पर उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार रह चुके हैं।
वोटों का गणित है अहम
अभी बीजेपी की देश के 17 राज्यों में सरकारें हैं। जम्मू कश्मीर विधानसभा का वोट मूल्य 6264 है जो फिलहाल निलंबित है। इसे घटाने के बाद बहुमत का जादुई आंकड़ा 546320 पर सिमटकर रह गया। सत्तारूढ़ बीजेपी के पास अभी 4 लाख 65 हजार 797 वोट हैं जबकि उसके सहयोगी दल के पास 71 हजार 329 वोट हैं। दोनों को मिला दिया जाए तो एनडीए के पास 5 लाख 37 हजार 126 वोट होते हैं, जो बहुमत से 9 हजार 194 वोट कम हैं।