ममता की छांव में पॉलिटिक्स के PK, BJP के बंगाल विजय के स्वप्न पर लगा पाएंगे अंकुश?

By अभिनय आकाश | Jun 07, 2019

बिहार राजनीति, कूटनीति और अर्थशास्‍त्र के पंडित माने जाने वाले चाणक्‍य की धरती है, जिसने चंद्रगुप्‍त मौर्य को पाटलिपुत्र पर राज करने के तरीकों और राजनीति के रहस्‍यों से रूबरू करवाया था। लेकिन वर्तमान में मगध के एक आधुनिक चाणक्य जिसने बचपन में चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी की चुनावी रणनीति की कमान को संभालते हुए लोकसभा चुनाव 2014 में उनका प्याला वोटों से भर दिया, फिर नीतीश कुमार को बिहार में बहार हो नीतेशे कुमार हो के नारे के साथ फिर से राज्य के सर्वोच्च कुर्सी पर काबिज किया और अमरिंदर सिंह को पंजाब का कैप्टन बना दिया। उसी प्रशांत किशोर के अब बंगाल की राजनीति में हमेशा से अपने चाहने वालों के दिलों में और विरोधियों के निशाने पर लगातार बनी रहने वाली ममता दीदी के कैंपेने की जिम्मेदारी संभालने की खबरें इन दिनों सुर्खियों में हैं। 

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर और जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर से मुलाकात की। जिसके बाद प्रशांत किशोर के ममता बनर्जी के लिए काम करने की खबरें आने लगीं। ममता और प्रशांत किशोर के बीच दो घंटे बैठक हुई। प्रशांत किशोर एक महीने बाद ममता बनर्जी के लिए काम करना शुरु कर देंगे। लोकसभा चुनाव में भाजपा को 18 सीटें मिलने के बाद ममता बनर्जी को जमीन दरकने की आशंका सता रही है। जिस तरह से लोकसभा चुनाव में जनता की ममता बंगाल में भाजपा पर बरसी उससे दीदी के लिए सूबे के अखंड राज को 2021 के चुनाव में स्थापित रखना मुश्किल प्रतीत हो रहा है। लिहाजा दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तृणमूल कांग्रेस भाजपा से दो-दो हाथ करने में कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहती है। लेकिन प्रशांत किशोर में ऐसा क्या है जो तमाम राजनीतिक दल उन्हें अपनी ओर करने में जुटे रहते हैं। चुनावी रणनीतिकार माने जाने वाले प्रशांत किशोर का मैजिक आंध्र प्रदेश के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में देखने को मिला जब राष्ट्रीय चाणक्य की भूमिका निभाने के ख्वाब संजोये चंद्रबाबू नायडू को निराशा हाथ लगी और जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश की 22 सीटें जीतीं और विधानसभा में 175 में से 150 सीटों पर कब्जा जमाया। अपने कॅरियर की शुरुआत यूनिसेफ में नौकरी से करने वाले किशोर ने वहां ब्रांडिंग का जिम्मा संभाला। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के चर्चित आयोजन ‘वाइब्रेंट गुजरात’ की ब्रांडिंग का ज़िम्मा संभालते हुए प्रशांत ने इसे सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाया। इसी दौरान उनकी जान-पहचान नरेंद्र मोदी से हुई और प्रशांत किशोर ने टीम मोदी के लिए काम करना शुरू किया लेकिन पीके की मज़बूत पहचान बनी 2014 के चुनाव से जिसमें उनके प्रचार-प्रसार के पेशेवर तरीकों ने नरेन्द्र मोदी की जीत को काफी हद तक आसान बना दिया। ‘चाय पर चर्चा’ और ‘थ्री-डी नरेंद्र मोदी’ के पीछे प्रशांत का ही दिमाग था। बाद में भाजपा और नरेंद्र मोदी की आंख, कान और जुबान, साथी, सहयोगी और सारथी माने जाने वाले अमित शाह से दूरी बढ़ने के बाद प्रशांत ने नरेंद्र मोदी के उस वक्त के सबसे बड़े विरोधी और तथाकथित पीएम मेटेरियल रहे नीतीश कुमार को फिर से बिहार की कुर्सी पर बिठाने का जिम्मा संभाला। वो प्रशांत ही थे जिन्होंने जेपी के दो चेले लालू और नीतीश को सत्ता की लालसा में एक ही लाइन पर कदमताल करने के लिए राजी कर लिया। कुश्‍ल सांगठनिक नीति और प्रखर अंदाज़ वाले शाह ने दिल्ली का सपना दिखाकर महारष्ट्र, हरियाणा और झारखण्ड जैसे राज्यों को अपना बनाने के बाद कश्मीर में कमल खिलाने का भी करिश्मा कर दिखाया। लेकिन बिहार में भाजपा के इस चाणक्य को अपने सधे हुए फॉमूले से चुनौती दी पॉलिटिक्स के पीके यानि प्रशांत किशोर ने। फिर से एक बार हो, बिहार में बहार हो, नीतीशे कुमार हो का नारा गढ़कर हरघर दस्तक दे दी। लेकिन फिर चुनौतियों को जबरदस्ती जाकर चैलेंज देने वाले प्रशांत किशोर ने अपनी हार वाली बीमारी का ईलाज ढूंढ़ रही कांग्रेस को संजीवनी देने की कोशिश की। 

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प्रशांत ने कांग्रेस में यूपी और पंजाब के जिम्मेदारी संभाली। उत्तर प्रदेश में भी किशोर ने बिहार की तर्ज पर अखिलेश यादव और राहुल गांधी का मिलाप अच्छे लड़के के रूप में करवाया। प्रशांत किशोर ने नई चुनावी चाल के तहत ‘अपने लड़के बनाम बाहरी मोदी’ का नारा भी दिया लेकिन यूपी को राहुल और अखिलेश का साथ पसंद नहीं आया और कांग्रेस सात सीटों पर सिमट गई। लेकिन पंजाब में विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस की जीत के पीछे अमरिंदर के चेहरे के साथ ही प्रशांत की रणनीति का भी हाथ है जिसने कांग्रेस का तूफान ऐसा उड़ाया कि सभी देखते रह गए। पंजाब चुनाव के बाद प्रशांत किशोर ने एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें उन्होंने साफ कह दिया था कि पंजाब में कांग्रेस 68 से 70 सीटों पर कब्ज़ा करेगी और सरकार बनाएगी और कांग्रेस ने 77 सीटों पर जीत हासिल की।

 

लेकिन 16 सितंबर 2018 को प्रशांत कुर्ता-पायजामा में नजर आए और इसी तारीख से उनके चुनावी रणनीतिकार से राजनेता का सफर भी शुरू हुआ। 16 सितंबर की सुबह पटना में जदयू मुख्यालय में नीतीश कुमार के हाथों उन्होंने पार्टी की सदस्यता ली। जिसके एक महीने के भीतर ही नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को जदयू का उपाध्यक्ष भी बना दिया। जिसके बाद से लगातार किशोर खबरों में बने रहे। बिहार में 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जा रही थी और सभी दही-चिउड़ा और तिलकुट खाने में व्यस्त थे। एक चैनल के कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए जाने को लेकर एक सनसनीखेज बयान दे दिया। नीतीश ने कहा था कि प्रशांत किशोर को भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के कहने पर अपनी पार्टी जेडीयू में शामिल किया था। 

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बिहार में बड़े भाई की दावेदारी करने वाली जदयू की क्या मज़बूरी रही होगी कि देश की सबसे ताकतवर और मजबूत पार्टी भाजपा को महागठबंधन बनाकर बिहार में मजबूर कर दिया। उसी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के कहने पर अपने दल में नंबर दो की हैसियत पर प्रशांत किशोर को रख लिया। लेकिन कल तक प्रशांत का हाथ पकड़कर उन्हें राजनीति का भविष्य बताने वाले नीतीश सरकार को लेकर आम चुनाव से पहले एक कार्यक्रम में प्रशांत किशोर ने कह दिया कि नीतीश कुमार को राजद से गठबंधन तोड़ने के बाद फिर से चुनाव कराना चाहिए था। जिसके बाद चुनावी भागीदारी से अपनी पार्टी में ही प्रशांत किशोर दरकिनार कर दिए गए थे। जिसका दर्द प्रशांत किशोर ने ट्वीटर पर इशारों ही इशारों में जाहिर करते हुए लिखा था कि बिहार में एनडीए माननीय मोदी जी एवं नीतीश जी के नेतृत्व में मजबूती से चुनाव लड़ रहा है। जेडीयू  की ओर से चुनाव-प्रचार एवं प्रबंधन की जिम्मेदारी पार्टी के वरीय एवं अनुभवी नेता आरसीपी सिंह जी के मजबूत कंधों पर है। इसी बीच आम चुनाव से पहले किशोर ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुंबई जाकर मुलाकात भी की। जिसके बाद भाजपा और शिवसेना के बीच सीटों को लेकर चल रही तल्खी की हैप्पी एंडिग के पीछे प्रशांत की भूमिका की भी खबरें आई थी। लेकिन फिर प्रशांत ने आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड़्डी को चुनाव जिताने का चैलेंज स्वीकार करते हुए उन्हें कुर्सी तक पहुंचाया। 

 

प्रशांत किशोर की कामयाबी ने भारतीय राजनीति में नए प्रयोग के कई रास्ते खोले हैं। जिस तरह पहले नरेंद्र मोदी और फिर नीतीश कुमार के बाद तमाम दल ने अपने चुनावी कैपेंन के लिए गैर राजनीतिक लोगों की सलाह और मदद ली इससे अन्य नेता भी प्रभावित होते दिख रहे हैं और अब ममता बनर्जी के प्रशांत को कैपेंनिग के ऑफर की खबरें आ रही हैं। जिस तरह से प्रशांत किशोर ने अलग-अलग दलों का गठबंधन करवाया है उसी तर्ज पर बंगाल की राजनीति में तृणमूल और वाम दलों को एक साथ लाकर चुनाव लड़वाने जैसे एक्सपेरिमेंट भी देखने को मिल सकते हैं या फिर जिस तरह का प्रशांत किशोर का पुराना रिकार्ड रहा है कि कहीं ममता का ही भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल न करा दें। बहरहाल, जो भी हो लेकिन प्रशांत की उपस्थिति ने बंगाल के चुनाव को और भी रोचक बना दिया है।

 

-अभिनय आकाश

 

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