बुलडोजर और साइकिल की लड़ाई में कौन जीता? क्या कहता है यूपी चुनाव पर प्रभासाक्षी का Exit Poll

By नीरज कुमार दुबे | Mar 08, 2022

विधानसभा चुनाव वैसे तो पांच राज्यों में हुए हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनावों पर देश की ही नहीं पूरी दुनिया की भी नजरें लगी हुई हैं क्योंकि सिर्फ राज्य की योगी सरकार ही नहीं बल्कि केंद्र की मोदी सरकार भी बहुत हद तक उत्तर प्रदेश के बलबूते ही चल रही है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सांसद हैं तो रक्षा मंत्रालय समेत कई अन्य महत्वपूर्ण मंत्रालय भी उत्तर प्रदेश के सांसदों के पास ही हैं। 2014 में उत्तर प्रदेश के बलबूते ही केंद्र में पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी तो साल 2019 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा को अकेले 300 सीटों के पार पहुँचाने में उत्तर प्रदेश ने ही सबसे ज्यादा योगदान दिया। नरेंद्र मोदी आज दुनिया में सबसे ज्यादा वोट पाने वाले नेता हैं तो इसमें भी उत्तर प्रदेश का ही सबसे बड़ा हाथ है। लेकिन इस बार के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में हवा कुछ बदली-सी दिखाई दी। सात चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वास्तव में उत्तर प्रदेश भाजपा के हाथ से खिसक रहा है? क्या वास्तव में मोदी मैजिक काम नहीं कर पाया? क्या मोदी-योगी की जोड़ी कोई कमाल नहीं दिखा पाई? क्या वाकई इस चुनावी दौड़ में बुलडोजर से आगे निकल गई साइकिल? आपके मन में उठ रहे इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर देने के लिए प्रभासाक्षी ने चुनावों के समय दो महीने तक उत्तर प्रदेश के कोने-कोने में जाकर लोगों के विचार जाने, उनके मुद्दों को समझा, राजनीतिक दलों की ओर से हर चरण में बदली जा रही चुनावी रणनीति का विश्लेषण किया और मतदान वाले दिन भी मतदाताओं के मन को जाना और फिर जाकर तैयार किया सबसे सटीक एक्जिट पोल।

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इससे पहले कि हम आपको अपने एक्जिट पोल परिणामों के बारे में बताएं आइये जानते हैं इस चुनाव की कुछ महत्वपूर्ण बातें-


1. यह चुनाव कुछ हद तक बिहार की तर्ज पर हुआ। चौंकिये मत, यह बात बिलकुल सही है। जिस तरह बिहार में नीतीश कुमार ने कानून व्यवस्था को सुधारा और शराबबंदी कर महिलाओं को घरेलू हिंसा से मुक्ति दिलाई उसी के चलते उन्हें बार-बार जनादेश मिल रहा है। ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश में देखने को मिला जहां महिला मतदाता भाजपा के साथ खड़ी नजर आईं। महिला मतदाताओं में जाति, धर्म का कोई भेद नहीं दिखा क्योंकि उन्हें आज लगता है कि बाजार जाने के लिए उन्हें घर से पति, पिता, भाई या बेटे को साथ ले जाने की जरूरत नहीं है। उत्तर प्रदेश में स्कूटी चलाती लड़कियों ने बताया कि वह नहीं चाहतीं कि उनकी स्कूटी घर में खड़ी हो जाये और बिना काम के घर से बाहर निकलने पर रोक लग जाये। महिलाएं इस बात के लिए भी भाजपा की प्रशंसक दिखीं कि कानून व्यवस्था अच्छी होने से उनके कान या गले से अब पहले की तरह आभूषण नहीं छीन लिये जाते।


2. भाजपा ने चुनावों के दौरान भले अपनी कई सारी उपलब्धियां गिनाई हों लेकिन ग्रामीण इलाकों में जनता सबसे ज्यादा प्रसन्न मुफ्त अनाज योजना से दिखी। कोविड काल में केंद्र की यह योजना लोगों के लिए वरदान साबित हुई है और लोग इसे खुले दिल से स्वीकारते भी दिखे। जिस तरह पूरी पारदर्शिता के साथ महीने में दो बार मुफ्त राशन सभी को मिला उससे महिलाएं खासतौर पर प्रसन्न दिखीं क्योंकि यदि घर के मुखिया के पास कोई काम नहीं भी था तो भी घर में कोई भूखा नहीं सोया। इस योजना की लोकप्रियता इतनी ज्यादा है कि भाजपा को इसे आगे भी बरकरार रखना होगा। इस योजना के चलते लोगों की यह चिंता तो खत्म हो गयी है कि आज खाएंगे क्या?


3. कानून व्यवस्था में सुधार का मुद्दा ऐसा था जिसे हर कोई स्वीकार कर रहा था। समाजवादी पार्टी के लोगों ने भी स्वीकार किया कि कैसे पहले उनकी गाड़ियां छिन जाती थीं लेकिन अब वह आधी रात को भी बिना किसी भय के आ-जा सकते हैं। ड्राइवरों ने बताया कि हम स्मार्टफोन नहीं रखते थे क्योंकि शाम को उसका छिनना तय था। महिलाओं ने बताया कि पहले शादी का समारोह अधूरा छोड़कर रात होने से पहले घर लौट आते थे लेकिन अब सारे समारोह में शरीक होकर आधी रात को भी घर लौटने से डर नहीं लगता। किसानों ने बताया कि खेतों से साइकिल या कृषि में उपयोग आने वाले औजार आदि चोरी होना बंद हो गये हैं। व्यापारी वर्ग ने बताया कि अब यह भय खत्म हो गया कि बैंक से पैसे निकालने या जमा कराने जाएंगे तो रास्ते में छीना-झपटी हो जायेगी। व्यापारी वर्ग ने यह भी बताया कि अब थानों में एफआईआर दर्ज होने में कोई कोताही नहीं होती और ना ही यह देखा जाता है कि आप किस धर्म या जाति से हैं। छात्राओं ने बताया कि अब उनके स्कूल या कॉलेज के सामने मनचले नहीं पुलिस की जिप्सी खड़ी होती है। ग्रामीण इलाकों में लोग इस बात से भी खुश दिखे कि अब स्थानीय स्तर पर कोई माफिया या दादा का राज नहीं बल्कि कानून का ही राज चलता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पलायन का मुद्दा भी हावी रहा था और लोगों ने इस बात को माना कि योगी राज में किसी को अपना घर या कारोबार छोड़ कर नहीं जाना पड़ा साथ ही प्रदेश दंगा मुक्त भी रहा है।


4. मोदी-योगी के काम से तो जनता खुश दिखी लेकिन यूपी सरकार के एकाध मंत्रियों को छोड़कर सभी के खिलाफ तगड़ी नाराजगी दिखी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने विधानसभा क्षेत्र गोरखपुर में और प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री सतीश महाना अपने क्षेत्र महाराजपुर में सर्वाधिक लोकप्रिय पाये गये तो प्रदेश सरकार के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के खिलाफ मथुरा विधानसभा क्षेत्र में, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नीलकंठ तिवारी के खिलाफ वाराणसी दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में और अयोध्या के विधायक वेद प्रकाश गुप्ता के खिलाफ सर्वाधिक नाराजगी देखने को मिली। तो इस तरह भाजपा भले अयोध्या, मथुरा और काशी का मुद्दा उठाये लेकिन इन तीनों ही क्षेत्रों में स्थानीय विधायकों के खिलाफ जनता की भारी नाराजगी थी।


5. चुनावों से पहले कई बड़े नेता इधर से उधर गये लेकिन आम जनमानस पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं दिखा। उत्तर प्रदेश के चुनाव सात चरणों में हुए जिसमें से अंतिम दो चरणों के चुनाव में जातिवाद सबसे ज्यादा हावी रहा। इसके चलते भाजपा और समाजवादी पार्टी इन चरणों में अपने-अपने सहयोगी दलों पर ज्यादा निर्भर दिखे। मायावती के साथ जाटव वोट शुरुआत से खड़ा नजर आ रहा था लेकिन बाद में कई क्षेत्रों में यह अफवाह हावी रही कि मायावती ने अपने वोटरों से भाजपा के पक्ष में मतदान के लिए कहा है इससे बसपा को साफ तौर पर नुकसान हुआ है।


6. उत्तर प्रदेश में ग्रामीण स्तर पर सबसे बड़ी समस्या आवारा पशुओं की है। ग्रामीण इस बात से बेहद नाराज दिखे कि सरकार ने इस समस्या के निदान के लिए कुछ नहीं किया। लोगों ने बताया कि दिन भर खेतों की रखवाली करनी पड़ रही है। घर के हर सदस्य की बारी-बारी से ड्यूटी लगाई जाती है। रात-रात भर टॉर्च लेकर बैठे रहना पड़ता है। इस समस्या का रोजाना सामना कर रहे लोगों के मन में योगी सरकार के खिलाफ आक्रोश दिखा।


7. अखिलेश यादव ने यह चुनाव बड़ी समझदारी के साथ लड़ा। उन्होंने अपना गठबंधन भी व्यापक बनाया और भाजपा के हमलों का भी सधा हुआ जवाब दिया। साथ ही मीडिया में भी वह खूब दिखे। लेकिन उन्होंने कई गलतियां भी कीं जैसे आजम खान को उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़वा कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों की नाराजगी मोल ले ली। यही नहीं पश्चिम में भले उन्होंने जयंत चौधरी के साथ गठबंधन किया लेकिन जाटों को टिकटों के वितरण में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला जिससे समाजवादी पार्टी की संभावनाएं क्षीण हुईं। यही नहीं सपा शासन के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं के उत्पात की कीमत आज भी अखिलेश यादव चुका रहे हैं। अखिलेश भले सुशासन देने के बढ़-चढ़ कर वादे कर रहे हों लेकिन उनकी सभाओं और रैलियों में जाते सपा कार्यकर्ताओं का हुड़दंग देख जनता एक बार फिर सोचने को मजबूर हुई कि अगर इनका राज आ गया तब क्या होगा?


8. पांचवें चरण से सातवें चरण तक महंगाई और बेरोजगारी बड़े मुद्दे के रूप में सामने आये जिससे भाजपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिकांश युवा या तो घर में खेती के काम से जुड़े हैं या एनसीआर में नौकरी कर रहे हैं या फिर अपना ही कोई कारोबार आदि कर रहे हैं। ऐसा ही माहौल मध्य उत्तर प्रदेश में देखने को मिला लेकिन बुंदेलखंड और पूर्वांचल में अधिकतर युवा सरकारी नौकरी का ही सपना देख रहे होते हैं और उसकी तैयारी कर रहे होते हैं। इनकी शिकायत थी कि पहले तो कोई भर्ती निकलती नहीं और अगर निकलती है तो तमाम तैयारी के बाद पर्चा लीक हो जाता है या परीक्षा हो भी जाती है तो उसका परिणाम नहीं आता है। ऐसे में नौकरी के लिए उनकी आयु निकल जाती है। अपने बच्चों को रेलवे तथा अन्य सरकारी विभागों में नौकरी के लिए परीक्षा की तैयारी करा रहे अभिभावक भी परेशान दिखे क्योंकि उन्हें अपने बच्चों का भविष्य समझ नहीं आ रहा था। यही नहीं महंगाई भी ग्रामीण इलाकों में ऐसा विषय था जिसको लेकर जनता काफी नाराज दिखी। यही कारण रहा कि पूर्वांचल में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अपनी रैलियों में यह आश्वासन देते दिखे कि छह महीने के अंदर महंगाई काबू में आ जायेगी। हमें ग्रामीण इलाकों में कई ऐसी महिलाएं भी मिलीं जिन्हें उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन मिला था लेकिन सिलेंडर महंगा होने के चलते वह उन्हें भरवाने में असमर्थ हैं इसीलिए सिलेंडर घर में एक तरफ रखे हुए और मिट्टी वाले चूल्हे जलते हुए मिले।

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9. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, आम आदमी पार्टी और शिवसेना ने भी दम लगाया और अपने बड़े नेताओं को चुनाव प्रचार में भेजा। लेकिन ओवैसी यहाँ बिहार की तरह करिश्मा दिखाते नजर नहीं आये क्योंकि उत्तर प्रदेश का मुस्लिम चट्टान की तरह समाजवादी पार्टी के साथ खड़ा नजर आया। तमाम बैठकें कर मुस्लिमों को समझाया गया कि ओवैसी की पार्टी को वोट देना भाजपा की मदद करने के समान होगा। मुस्लिमों को यह भी समझाया गया कि ओवैसी की आगे मदद की जा सकती है लेकिन जरा वक्त लगाकर उन्हें पहले अच्छे से जान और समझ लिया जाये। आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं ने ज्यादा फोकस पंजाब और गोवा पर ही रखा था इसलिए यहां उनके प्रत्याशी अकेले ही जंग लड़ते नजर आये। पंजाब चुनावों के बाद आप के कई नेता उत्तर प्रदेश आये लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। शिवसेना ने भी आदित्य ठाकरे समेत कई नेताओं को प्रचार में उतारा लेकिन इस पार्टी का अभी कोई भविष्य यूपी में नजर नहीं आया। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी का साथ जरूर दिया लेकिन खुद इस पार्टी का यूपी में अपना कोई आधार नहीं है। यही नहीं राकेश टिकैत भी यूपी के कई जिलों में गये। उन्होंने विश्वासघात दिवस भी मनाया लेकिन उसका कोई असर दिखाई नहीं दिया।


10. कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनावों में अपना तुरुप का पत्ता प्रियंका गांधी वाड्रा को राजनीति में उतार कर चल दिया था। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में खुद राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गये। इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रियंका गांधी वाड्रा ने यूपी में अपनी पार्टी को फिर से उबारने के लिए काफी मेहनत की है लेकिन उन्होंने ज्यादातर मेहनत दिल्ली में ही बैठ कर की है इसीलिए यूपी की धरती पर यह पार्टी अभी खड़ी नहीं हो पाई है। साथ ही जिन लोगों को प्रियंका गांधी वाड्रा ने 2022 की लड़ाई के लिये तैयार किया था वह ऐन चुनावों से पहले कांग्रेस छोड़ गये। इसीलिए लगता नहीं कि इस बार के चुनाव में भी कांग्रेस कुछ खास कर पायेगी।


11. भाजपा ने चुनावों से पहले कहा था- अयोध्या-काशी सजा दी है और अब मथुरा की बारी है। इस बात का चुनावों पर क्या असर हुआ ? जब हमने इस मुद्दे पर पड़ताल की तो सामने आया कि बहुत से मतदाता ऐसे हैं जो मानते हैं कि सनातन संस्कृति को भाजपा ने संजीवनी प्रदान की है और यदि कोई और पार्टी सत्ता में आई तो हिंदू धर्म पर खतरा हो जायेगा। कई विधानसभा क्षेत्र तो ऐसे भी दिखे जहां मतदाताओं ने कहा कि यह सरकार बनाने का नहीं बल्कि अपने धर्म और संस्कृति को बचाने का चुनाव है। जब बात धर्म या संस्कृति के आधार पर किसी दल को पसंद करने की आती है तो भाजपा स्वाभाविक रूप से पहली पसंद बन कर सामने आती है। यह सही है कि अब बहुत से नेता मंदिर-मंदिर जाते हैं, बड़ा-सा तिलक लगाते हैं, धार्मिक अनुष्ठान करते हुए फोटो खिंचवाते हैं लेकिन फिर भी मतदाताओं की पहली पसंद भाजपा ही दिखी। लोगों का स्पष्ट कहना था कि राम मंदिर भले अदालत के निर्णय से बन रहा हो लेकिन आज भी उसके निर्माण की राह में आने वाली हर अड़चन को भाजपा ही दूर कर रही है। साथ ही काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और विंध्यवासिनी मंदिर कॉरिडोर को लेकर भी लोगों में उत्साह दिखा। यही नहीं प्रयागराज में हुए कुंभ का भव्य आयोजन हो, अयोध्या में होने वाले दीपोत्सव हों, कांवड़ यात्रा के दौरान डीजे की अनुमति मिलना और कांवड़ियों पर हेलिकाप्टर से फूल बरसाने वाले घटनाक्रम ऐसे हैं जिनको लेकर जनता बेहद खुश दिखी। यही नहीं चाहे अयोध्या हो, प्रयागराज हो, काशी हो, मथुरा हो या अन्य धार्मिक स्थल...मुख्यमंत्री ने इन क्षेत्रों के इतने दौरे किये हैं कि जनता इस बात की प्रशंसा करते नहीं थकती। इसके साथ ही इन धार्मिक स्थलों के विकास के चलते यहाँ पर्यटन बढ़ा है जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं।


12. कोरोना काल ने सबसे ज्यादा नुकसान छात्रों को पहुँचाया है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जब हमने छात्र-छात्राओं से बातचीत की तो पाया कि घर में कैद होकर छात्र जहां निराश हैं तो वहीं उनके अभिभावक भी परेशान हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन पढ़ाई में दिक्कत यह है कि ज्यादातर बच्चों के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट डाटा नहीं है। समय से यदि लैपटॉप या टैबलेट बंटे होते तो गांवों के छात्रों को सहुलियत हुई होती। वहीं शहरी क्षेत्रों में जो बच्चे व्यवसायिक पाठ्यक्रम की पढ़ाई कर रहे हैं वह ऑनलाइन पढ़ाई से संतुष्ट नहीं हैं। कई अभिभावक इस बात से परेशान दिखे कि ऑनलाइन पढ़ाई होने के बावजूद निजी स्कूलों ने पूरी फीस तथा अन्य शुल्क वसूले और सरकार ने कुछ नहीं किया। कोरोना काल में जिन बच्चों का स्कूल छूट गया है उनके अभिभावक इस बात से निराश दिखे कि उनके बच्चों के लिए सरकार कुछ नहीं सोच रही।


13. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी के चलते हुई मौतों, दवाओं की कालाबाजारी, अस्पतालों की मनमानी, गंगा में बहती लाशें आदि घटनाएं कोई भूला नहीं है लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह कोरोना के खिलाफ लड़ाई में प्रदेश का नेतृत्व किया उसकी लोग सराहना भी करते हैं। उत्तर प्रदेश में जिस तीव्र गति से टीकाकरण अभियान चला उसके कारण तीसरी लहर राज्य को बस छूकर निकल गयी। कोरोना काल में जिस तरह स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास पर ध्यान दिया गया है, मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाई गयी है, जिन क्षेत्रों में दिमागी बुखार से बच्चों की हर साल बड़ी संख्या में मौत हो जाती थी, उन इलाकों को इस गंभीर बीमारी से छुटकारा दिलाया गया है। इसके अलावा केंद्र की आयुष्मान योजना का लाभ जिस तरह जनता को मिल रहा है उससे अधिकांश लोगों में यह प्रबल विश्वास दिखा कि आने वाले समय में यूपी का भविष्य अच्छा है।


14. उत्तर प्रदेश में हर चरण में महिला मतदाताओं ने मतदान के मामले में पुरुषों से जिस तरह बाजी मारी है वह भाजपा के लिए अच्छा संकेत हो सकता है। पूरे उत्तर प्रदेश में एक चीज साफ तौर पर उभर कर आ रही थी कि यदि किसी पार्टी के पास सर्वाधिक संख्या में महिला कार्यकर्ता हैं तो वह भाजपा है। यदि किसी पार्टी को सर्वाधिक महिलाओं के मत मिलते दिख रहे थे तो वह भाजपा ही थी। हमने बड़ी संख्या में महिलाओं से बात की और सभी ने माना कि मोदी और योगी के राज में ही वह सुरक्षित हैं। महिलाओं ने समाजवादी पार्टी के 300 यूनिट बिजली फ्री के वादे के प्रति अरुचि दिखाई और कहा कि रोजगार या महंगाई से ज्यादा बड़ा मुद्दा हमारे लिये सुरक्षा है। यही नहीं जब हमने पुलिसकर्मियों से बात की तो नाम नहीं लेने की शर्त पर सभी बातचीत के लिए राजी हुए। जब हमने पूछा कि आखिर कैसे भाजपा राज में कानून व्यवस्था सही हो गयी जबकि आप ही लोग पहले भी सुरक्षा में थे और आप ही लोग आज भी सुरक्षा में हैं। इस प्रश्न के उत्तर में पुलिसकर्मियों ने कहा कि ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि अब शासन देशभक्त लोगों के हाथ में है।


15. क्रबिस्तान, श्मशान, हिजाब, जिन्ना, आतंकवाद, अनुच्छेद 370, सर्जिकल स्ट्राइक, पाकिस्तान और लाल टोपी आदि को उत्तर प्रदेश चुनावों में मुद्दा बनाने के भरसक प्रयास किये गये लेकिन यह सब सिर्फ ऐसे विषय थे जिन पर नेताओं के भाषणों पर उनके समर्थक तालियां बजा देते थे। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कानून व्यवस्था, बेरोजगारी, महंगाई, परिवारवाद, आवारा पशुओं की समस्या और हिंदुत्व मुख्य मुद्दे रहे। इसके अलावा भले कई पार्टियां इस चुनाव के मैदान में थीं लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और समाजवादी पार्टी के गठबंधन के बीच ही था। खास बात यह थी कि इन दोनों ही गठबंधनों की तरफ से नेतृत्व के तौर पर योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव का नाम स्पष्ट था इसलिए इस चुनाव में जनता ने विधायक बनाने के लिए नहीं बल्कि मुख्यमंत्री चुनने के लिए मतदान किया है।

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प्रभासाक्षी के एक्जिट पोल परिणाम


तो यह थी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से जुड़ी बड़ी बातें। आइये अब नजर डालते हैं प्रभासाक्षी के एक्जिट पोल के नतीजों पर। सबसे पहले हर चरण के अनुमानित नतीजों की बात करते हैं। 


पहला चरण


पहले चरण की बात करें तो इसमें 58 सीटों पर चुनाव हुए थे जिसमें से हमारे एक्जिट पोल के मुताबिक भाजपा और उनके सहयोगी दलों को 40, समाजवादी पार्टी गठबंधन को 16 और बसपा को दो सीटें मिलने का अनुमान है।


दूसरा चरण


दूसरे चरण में 55 सीटों पर चुनाव हुए थे जिसमें से हमारे एक्जिट पोल के मुताबिक भाजपा और उनके सहयोगी दलों को 24, समाजवादी पार्टी गठबंधन को 26, बसपा को 3 और अन्य को दो सीटें मिलने का अनुमान है।


तीसरा चरण


तीसरे चरण की बात करें तो इसमें 59 सीटों पर चुनाव हुए थे जिसमें से हमारे एक्जिट पोल के मुताबिक भाजपा और उनके सहयोगी दलों को 32, समाजवादी पार्टी गठबंधन को 26 और बसपा को 1 सीटें मिलने का अनुमान है।


चौथा चरण


चौथे चरण की बात करें तो इसमें भी 59 सीटों पर चुनाव हुए थे जिसमें से हमारे एक्जिट पोल के मुताबिक भाजपा और उनके सहयोगी दलों को 34, समाजवादी पार्टी गठबंधन को 18, बसपा को 4, कांग्रेस को 1 और अन्य को दो सीटें मिलने का अनुमान है।


पांचवां चरण


पांचवें चरण के बात करें तो इसमें 61 सीटों पर चुनाव हुए थे जिसमें से हमारे एक्जिट पोल के मुताबिक भाजपा और उनके सहयोगी दलों को 41, समाजवादी पार्टी गठबंधन को 17, बसपा को दो और कांग्रेस को 1 सीट मिलने का अनुमान है।


छठा चरण


छठे चरण की बात करें तो इसमें 57 सीटों पर चुनाव हुए थे जिसमें से हमारे एक्जिट पोल के मुताबिक भाजपा और उनके सहयोगी दलों को 30, समाजवादी पार्टी गठबंधन को 22, बसपा को 4 और अन्य को 1 सीट मिलने का अनुमान है।


सातवां चरण


सातवें चरण की बात करें तो इसमें 54 सीटों पर चुनाव हुए थे जिसमें से हमारे एक्जिट पोल के मुताबिक भाजपा और उनके सहयोगी दलों को 25, समाजवादी पार्टी गठबंधन को 20, बसपा को 4, कांग्रेस को 1 तथा अन्य को चार सीटें मिलने का अनुमान है। 


आइये अब सभी चरणों में सभी दलों को मिली सीटों के जोड़ पर नजर डालते हैं। प्रभासाक्षी के एक्जिट पोल के मुताबिक उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कुल 403 सीटों पर हुए चुनावों में से भाजपा और उसके सहयोगी दलों को 226 सीटें, समाजवादी पार्टी गठबंधन को 145 सीटें, बसपा को 20, कांग्रेस को 3 और अन्य को 9 सीटें मिलने का अनुमान है। इस प्रकार बुलडोजर बाबा यानि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सत्ता में वापसी करने जा रहे हैं। यदि यह एक्जिट पोल वास्तविक चुनाव परिणाम में बदलते हैं तो यकीनन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक नया इतिहास रचने जा रहे हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश में लगभग 35 वर्षों बाद कोई मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी करेगा। तो इस तरह निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि साइकिल पर बुलडोजर भारी पड़ा है।


- नीरज कुमार दुबे

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