यूपी कांग्रेस को मजबूत करने के लिए हर स्तर पर हो रहे हैं सकारात्मक प्रयास

By कमलेश पांडे | Dec 26, 2023

देश के सबसे बड़े राज्य में यूपी जोड़ो यात्रा को जो अपार जनसमर्थन मिल रहा है, उससे ऐसा नहीं प्रतीत हो रहा है कि यूपी में कांग्रेस पिछले 34 सालों से सत्ता से बाहर है। गठबंधन की राजनीति से उसकी कमर टूट चुकी है, जिसके चलते वह केंद्र में भी मजबूती से नहीं जम पा रही है। बदलते दौर में यूपी कांग्रेस को मजबूत बनाने के लिए हर स्तर पर सकारात्मक प्रयास हो रहे हैं, जिसके सुखद परिणाम जल्द ही सामने आएंगे।


कहना न होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव की सूबाई गठबंधन नीति से यूपी समेत हिंदी पट्टी के जमे-जमाये नेताओं ने पार्टी के कार्यक्रमों से जो किनारा करना शुरू किया, उसमें पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के दस वर्षीय कार्यकाल को यदि छोड़ दिया जाए तो पुराना सिलसिला अब जाकर थमने के आसार प्रबल हुए हैं। वहीं, यूपी में कांग्रेस को मजबूत बनाने के लिए प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को एड़ी-चोटी एक करनी होगी।


वजह स्पष्ट है कि यदि कांग्रेस को प्रदेश में मजबूत बनाना है तो हमें राष्ट्रीय नीति के साथ-साथ क्षेत्रीय नीति और स्थानीय नेता विकसित करके उनमें तारतम्य बिठाने की समुचित पहल करनी होगी। वहीं, विभिन्न कार्यक्रमों के सहारे लगातार उनकी मॉनिटरिंग भी करनी होगी। खास बात यह कि हमें राजनीतिक प्रतिभाओं को पहचानने और उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां देने में नए-पुराने के तफरके में संतुलन बिठाना होगा। साथ ही नेतृत्वगत अधिकारों का विकेंद्रीकरण करना होगा और चरणबद्ध रूप से जिम्मेदारी तय करनी होगी, ताकि पार्टी संगठन में जान फूंकी जा सके। 

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ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि गत दिनों लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों की समीक्षा बैठक में हमारे नेता राहुल गांधी यूपी कांग्रेस के नेताओं से नाखुश दिखे। जैसी की मीडिया रिपोर्ट आई है। बताया गया है कि यूपी में पार्टी के अंदर उत्साहित नेताओं की कमी है। यूपी कांग्रेस के नेता केंद्रीय नेतृत्व के भरोसे रहना चाहते हैं, जिसकी वजह से ना तो वहां पार्टी खड़ी हो पा रही है और ना ही जीत मिल रही है, जबकि तेलंगाना के नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व के सहयोग से पार्टी खड़ी कर ली और चुनाव भी जीत लिया। वहां चार नेता ऐसे थे जो सीएम बनना चाहते थे, इसलिए सबने मेहनत की और सबकी मेहनत से पार्टी जीती। वहीं, यूपी में ऐसे तीन नेता नहीं हैं जो मुख्यमंत्री बनने का सपना देखते हों और उसे पूरा करने के लिए कुछ कर गुजरने का माद्दा रखते हों। 


एक अन्य टिप्पणी पर गौर करें तो पता चला है कि पार्टी का हर सदस्य चाहता है कि गांधी परिवार के सदस्य यूपी में पार्टी के अभियान का नेतृत्व करें, लेकिन उन्हें यकीन नहीं है कि आगामी लोकसभा चुनाव में वे राज्य में कितने सक्रिय होंगे। यह ठीक है कि मुसलमान इस चुनाव में कांग्रेस की ओर देख रहे हैं, लेकिन पार्टी को मजबूत सीटों पर मजबूत उम्मीदवारों को सुनिश्चित करना होगा और उन सीटों को अपने गठबंधन में सपा से लाना होगा। जबकि कुछ लोगों ने सोचा कि वे बसपा के साथ गठबंधन कर सकते हैं, जबकि बसपा के साथ कोई बातचीत नहीं हुई है। इस दौरान कई अलग-अलग मुद्दे सामने आए, लेकिन सभी की राय थी कि पार्टी को कड़ी सौदेबाजी करनी चाहिए और न केवल सम्मानजनक हिस्सेदारी बल्कि मजबूत सीटें भी हासिल करनी चाहिए।


ऐसे में सीधा सवाल है कि जब प्रदेश में पार्टी अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है और अपने नए प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के नेतृत्व में एक नई टीम बनाकर आगे बढ़ रही है। तो फिर हमें पिछले 34 साल की उपलब्धियों-अनुपलब्धियों पर भी एक सरसरी नजर डाल लेनी चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यूपी में अपने सबसे खराब दौर में भी पार्टी ने कई प्रयोग किए। अकेले चुनाव भी लड़ी और गठबंधन का साथ भी लिया। लेकिन कोई बड़ा कारनामा नहीं कर सकी, आखिर ऐसा क्यों? यह यक्ष प्रश्न है।


बहरहाल, लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपने नए अध्यक्ष अजय राय के हाथ में कमान सौंपने के बाद यूपी जोड़ो यात्रा का आगाज कर चुकी है। वह अपनी नई टीम के साथ इस बात के लिए प्रतिबद्ध दिख रहे हैं कि अब कांग्रेस जुल्म और ज्यादती के खिलाफ सड़कों पर दिखेगी। साल 2024 में यह चुनौती उन्हें अपने अक्रामक तेवरों के साथ पूरी करनी होगी। क्योंकि वह अपने आक्रामक अंदाज के लिए पहचाने जाते हैं।  हालांकि यह सवाल अलग है कि क्या प्रदेश की नई लीडरशिप कांग्रेस के लिए कोई करिश्मा कर पाएगी? खासतौर से ऐसे समय जब देश-प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति बहुत मजबूत नहीं है।


मसलन, यूपी में कांग्रेस का खराब दौर 1989 से ही चल रहा है। यह वह सियासी दौर था जब समाजवादियों ने राष्ट्रवादियों का साथ लेकर कांग्रेस को कमजोर करना शुरू किया, जिससे पहले धर्मनिरपेक्षता की धार कुंद हुई और फिर सामाजिक न्याय की। इससे कांग्रेस को इतनी क्षति हुई कि एक बार  आम चुनाव 1998 में उसे यूपी से एक भी लोकसभा सीट नहीं मिली। इस दौरान वह सिर्फ एक बार 2009 के लोकसभा चुनाव में ही अधिकतम 21 सीटें जीत सकी थी। इसी वक्त उसने एक उपचुनाव भी जीती और अपनी सीटें 22 कर ली थी। इसके बाद से फिर 2014 में वह दो सीट पर आ गई और 2019 में सिर्फ रायबरेली की एक सीट जीत सकी। आम चुनाव 1989 से यूपी में कांग्रेस का लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन कैसा रहे, उसके लिए चुनाव वर्ष के सामने जीती हुईं सीटें दी गई हैं:- 1989-17, 1991-05, 1996-04, 1998-00, 1999-10, 2004-09, 2009-21/22 (उपचुनाव सहित), 2014-02 और 2019-01.


हालांकि इस हालात को बदलने के लिए कांग्रेस ने प्रदेश की लीडरशिप में भी कई बदलाव किए। अमूमन 34 साल में 17 प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए, जो हर क्षेत्र, जाति, वर्ग और संप्रदाय के साथ ही प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से भी लिए गए। देखा जाए तो वरिष्ठ नेताओं से लेकर जमीनी कार्यकर्ता स्तर तक के नेता को ये बड़ी जिम्मेदारी दी गई, लेकिन हालात जस के तस बने रहे, कुछ अपवादों को छोड़कर। पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी तक को भी बतौर प्रभारी सूबे में उतरना पड़ा। उनके नेतृत्व में ही अब जाकर किसी चमत्कार की उम्मीद जगी है।


साल 1989 से अब तक कांग्रेस अध्यक्ष, उनकी कोटि और उनका कार्यकाल इस प्रकार है:- बलराम सिंह यादव (ओबीसी)1988-1990, राजेंद्र कुमारी बाजपेई (सवर्ण) 1990-1991, महावीर प्रसाद (एससी)1991-1994, नारायण दत्त तिवारी (सवर्ण) 1994-1995, जितेंद्र प्रसाद (सवर्ण) 1995-1997, नारायण दत्त तिवारी (सवर्ण) 1997-1998, सलमान खुर्शीद (मुस्लिम)1998-2000, श्रीप्रकाश जायसवाल (ओबीसी) 2000-2002,

अरुण कुमार सिंह मुन्ना (सवर्ण) 2002-2003, जगदम्बिका पाल (सवर्ण) 2003-2004, सलमान खुर्शीद (मुस्लिम) 2004-2007, रीता बहुगुणा जोशी (सवर्ण) 2007-2012, निर्मल खत्री (सवर्ण) 2012-2016, राज बब्बर (ओबीसी) 2016-2019, अजय कुमार लल्लू (ओबीसी) 2019-2022, बृजलाल खाबरी (एससी) 2022-2023, अजय राय (सवर्ण) (2023-वर्तमान)


ऐसे में स्वाभाविक सवाल है कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले आखिर, नई लीडरशिप के पीछे कांग्रेस की क्या मंशा है और उनकी टीम से क्या उम्मीदें हैं? क्योंकि वरिष्ठ नेताओं को भरोसा है कि लगातार 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद देश में भाजपा के खिलाफ जो माहौल बन रहा है, उसका फायदा कांग्रेस को ही मिलेगा। क्योंकि राहुल गांधी लगातार जनता के बीच रहकर देश में माहौल बना रहे हैं। इसलिए अब जरूरत है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में सुस्त पड़ी कांग्रेस में जान फूंकी जाए। इसकी सकारात्मक शुरुआत भी यूपी जोड़ो यात्रा से हो चुकी है। कहना न होगा कि यह काम यहां आक्रामक तेवरों के साथ ही हो सकता है, जैसा कि हमने टीबी डिबेट्स में कड़ा रुख अपनाया है। इसी तरह से राष्ट्रीय और प्रदेश दोनों स्तर पर जब काम होगा, तभी यहां से कुछ हासिल हो सकता है, अन्यथा नहीं।


हमें यह याद रखना चाहिए कि कांग्रेस ही एक ऐसी राष्ट्रीय पार्टी है, जो सबको साथ लेकर चल सकती है। यह महसूस किया जाता है कि जब तक वह केंद्र में अच्छी स्थिति में नहीं आएगी, तब तक प्रदेश में हुए बदलावों से बहुत कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला। इस लिहाज से भी मिशन 2024 महत्वपूर्ण है। यदि आप 2009 का ही उदाहरण लें तो उससे पहले 2004 में कांग्रेस केंद्र की सत्ता में यूपीए गठबंधन बनाकर लौट आई थी। इसके अगले लोकसभा चुनाव 2009 में यूपी में 21 सीटों पर पहुंच गई। एक और उपचुनाव जीतकर सीटों की संख्या 22 हो गई थी। हालांकि केंद्र की सत्ता के जाते ही यह फिर ढलान की ओर बढ़ती गई। इसलिए, यूपी में इस बार भी राह आसान नहीं है। क्योंकि उत्तर प्रदेश में 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था और उसे सिर्फ दो सीट पर जीत मिली थी।


यही वजह है कि लोकसभा चुनाव से पहले यूपी कांग्रेस ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। पार्टी ने 80 लोकसभा सीटों को तीन श्रेणियां में बांटा है। पहली और दूसरी श्रेणी मे 30- 30 सीट तथा तीसरी श्रेणी में 20 सीटें रखी गई। इसमें पहले 30 सीटें वह सीटें हैं जहां कांग्रेस पिछले 20 सालों में मजबूत रही है। यूपी कांग्रेस की दिसम्बर के तीसरे सप्ताह में दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व के साथ हुई बैठक में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति पर मंथन हुई, जिसमें  यूपी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने अपने 4 महीने के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड भी दिया।  


पार्टी मुख्यालय में हुई इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा, प्रदेश अध्यक्ष अजय राय, वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी, राजीव शुक्ला, सलमान खुर्शीद, विधायक आराधना मिश्रा मोना, विधायक वीरेंद्र चौधरी, महामंत्री संगठन अनिल यादव, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी, अजय कुमार लल्लू, राजेश मिश्रा, डॉ निर्मल खत्री सहित 41 लोगों को आमंत्रित किया गया था।


- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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