जनसंख्या वृद्धि: किसी भी राष्ट्र के विकास की सबसे बड़ी बाधक

By अंकित सिंह | Dec 25, 2019

किसी भी देश की वर्तमान स्थिति का आकलन वहां की आर्थिक विकास और जनसंख्या के ही हिसाब से तय किया जाता है। यह दोनों एक राष्ट्र के विकास के सबसे बड़े कारक होते हैं। भारत जैसे देश में जनसंख्या वृद्धि एक खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। भले ही हम विश्व के सबसे ज्यादा युवा वाला देश होने का दावा करते हैं पर सच यही है कि अब हमारे देश की जनसंख्या यहां की आर्थिक स्थिति को काफी नुकसान पहुंचा रही हैं। जनसंख्या किसी भी देश के विकास के लिए सबसे बड़ा अवरोध पैदा कर सकती है। 2011 के के जनगणना के आंकड़ों के लिहाज से देखें तो हमारे देश की जनसंख्या 121.27 करोड़ हो गई है यानी कि 2001 की जनसंख्या में लगभग 17.7 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है। यह इजाफा भारत जैसे विकासशील देश के समक्ष कई समस्याओं और चुनौतियों को भी जन्म देता है। जनसंख्या वृद्धि ने हमारे देश के समक्ष बेरोजगारी, खाद्य समस्या, कुपोषण, प्रति व्यक्ति आय, गरीबी, मकानों की कमी, महंगाई, कृषि विकास में बाधा, बचत एवं पूंजी में कमी, शहरी क्षेत्रों में घनत्व जैसी ढेर सारी समस्याओं को उत्पन्न कर चुका है। हम इन समस्याओं से निपटने की लगातार कोशिश तो कर रहे हैं पर समाधान बहुत कम निकल कर सामने आ रहे हैं।

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आज देश में सबसे ज्यादा चर्चा बेरोजगारी को लेकर है और इसकी सबसे बड़ी वजह जनसंख्या को ही बताया जा रहा है क्योंकि जनसंख्या वृद्धि के कारण देश की पूंजीगत साधनों में कमी हुई है जिससे रोजगार सृजन में व्यवधान उत्पन्न हो रहे हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है और लगातार जनसंख्या वृद्धि के कारण यहां की उपजाऊ जमीनों में कमी देखने को मिल रही है जिससे कि देश की कृषि उत्पादन क्षमता में काफी कमी आई है। यह कमी हमारे आर्थिक नुकसान का एक बहुत बड़ा कारण है। साथ ही साथ कुपोषण की भी समस्या से हम लगातार ग्रसित होते जा रहे हैं। हम हर लोगों तक के मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंचा पा रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मानव के विकास के लिए जरूरी चीजों के लिए भी बड़ा घातक है। जनसंख्या वृद्ध हमारी सरकारों के लिए भी काफी संशय वाली स्थिति पैदा करती हैं। सरकार को बिजली, परिवहन, चिकित्सा, जलापूर्ति, भवन निर्माण इत्यादि जैसी सेवाओं के लिए अधिक व्यय करना पड़ता है जिससे कि अन्य क्षेत्र प्रभावित होते रहते है। इस जनसंख्या विस्फोट का असर हमारे देश में दिखने लगा है। हमारी सुविधाएं सिकुड़ने लगी है। दैनिक जीवन लगातार मुश्किलों में ग्रसित होता जा रहा है। सड़क हो, मेट्रो स्टेशन हो या फिर स्टेशन हो या फिर एयरपोर्ट हो, हर जगह हम इस जनसंख्या के नुकसान को देख सकते है। 

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लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। अकेले भारत की जनसंख्या लगभग एक अरब 35 करोड़ के आसपास है जो कि विश्व की जनसंख्या का 17. 50 है। चीन भारत से अत्यधिक बड़ा होने के बावजूद विश्व में उसे देश की जनसंख्या 18.1 प्रतिशत के आसपास है। इतना ही नहीं जनसंख्या विस्फोट की वजह से भ्रष्टाचार, चोरी, अनैतिकता और अराजकता तथा अपराध में भी काफी इजाफा हुआ है। आजादी के समय हमारे देश की जनसंख्या लगभग 35 करोड़ के आसपास थी जो आज 4 गुना ज्यादा बढ़ चुकी है। इस जनसंख्या वृद्धि के लिए कई अनेक कारण जिम्मेदार हैं जैसे कि परिवार नियोजन के कमजोर तरीकें, शिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का अभाव, अंधविश्वास तथा विकासन्मुखी सोच की कमी है। 

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हालांकि हम इस बात से भी इनकार नहीं कर सकते हैं कि किसी भी राष्ट्र के विकास में जनसंख्या की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है और सभी संसाधनों में सर्वाधिक शक्तिशाली एवं सबसे महत्वपूर्ण जो ताकत होती है वह मानव संसाधन की ही होती है। लेकिन अतिशय जनसंख्या वृद्धि कहीं ना कहीं एक राष्ट्र की सेहत के लिए ठीक नहीं है। हमें उन उपायों पर सोचना होगा जिससे कि इस जनसंख्या विस्फोट से बचा जा सके। परिवार नियोजन, जागरूकता, विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि करना, शिक्षा और सेक्स शिक्षा पर जोर देने के अलावा लोगों को राष्ट्र और समाज के प्रति उसके कार्यों का आभास दिलाना भी होगा। 

 

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