जनसंख्या नियंत्रण कानून समय की माँग, इसे विवादित बनाना ठीक नहीं

By अजय कुमार | Jan 18, 2020

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएएस) का राष्ट्रहित का एजेंडा किसी से छिपा नहीं है। संघ ने कश्मीर से 370 हटाए जाने, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, काशी−मथुरा विवाद से दूरी बनाए रखने सहित समान नागरिक संहिता, एनआरसी, सामाजिक समरसता के लिए मंदिरों में दलितों−पिछड़ों को पुजारी बनाने, दो बच्चों का कानून जैसे तमाम विषयों को अपने एजेंडे में जगह दे रखी है। इसको लेकर संघ सक्रिय भी रहता है। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने, अयोध्या विवाद के कोर्ट से सुलझाने, तीन तलाक पर रोक लगने से संघ खुश तो है लेकिन वह संतुष्ट नहीं दिख रहा है। अब आरएसएस ने जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग तेज कर दी है। हालांकि इसको लेकर संघ ज्यादा उन्मादी नहीं है, लेकिन मुरादाबाद में जिज्ञासा सत्र के दौरान स्वयंसेवकों के प्रश्नों का उत्तर देते समय इतना जरूर कह दिया है कि संघ की आगामी योजना दो बच्चों का कानून है। यानी भागवत देश को 'हम दो, हमारे दो' की ओर ले जाना चाहते हैं।

 

देश में जनसंख्या विस्फोट को देखते हुए दो बच्चों का कानून जरूरी भी है, लेकिन मोदी सरकार के लिए यह सब इतना आसान नहीं है। तुष्टिकरण की सियासत करने वाले दल और नेता जिनके लिए देश से आगे उनकी पार्टी और वोट बैंक रहता है, वह शायद ही मोदी को ऐसा करने देंगे। बात हिन्दुओं की कि जाए तो बिना कानून पास हुए भी परिवार नियोजन के मामले में जहां करीब 90 फीसदी हिन्दू एक या दो बच्चों के सिद्धांत पर चल रहे हैं, वहीं कहा जाता है कि इस्लाम में परिवार नियोजन को ही मान्यता नहीं दी गई है। इसलिए भागवत के बयान पर बवाल होना स्वाभाविक है। खैर, दो बच्चों के कानून पर अभी भागवत ने सिर्फ अपना मत ही जाहिर किया है, उनका कहना है कि इस पर फैसला सरकार को लेना है, लेकिन मोहन भागवत के मुंह खोलते ही कथित धर्मनिरपेक्ष शक्तियां हो−हल्ला मचाने लगी हैं।

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बहरहाल, दो बच्चों के कानून की कल्पना कोई नई नहीं है। एक समय था, जब देश के छोटे से छोटे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों से लेकर बड़े−बड़े अस्पतालों तक में परिवार नियोजन से जुड़ा नारा 'हम दो, हमारे दो' लिखा मिल जाता था, इस पर कितना काम हुआ यह तो सब जानते हैं लेकिन यहां ख्याति प्राप्त मध्य प्रदेश के बालकवि बैरागी को याद करना जरूरी है, जिन्होंने छोटा लेकिन प्रसिद्ध स्लोगन, 'हम दो, हमारे दो' तैयार किया था।

 

बताते चलें 'हम दो, हमारे दो' कानून बनाए जाने के लिए 09 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर हुई थी, जिसमें कहा गया था कि दो बच्चे पैदा करने की नीति अनिवार्य की जाए। इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह एक नीतिगत मामला है और कोर्ट इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकती। याचिकाकर्ता ने कहा था कि केंद्र सरकार को परिवार नियोजन को बढ़ावा देना चाहिए और देश के लोगों को दो बच्चे पैदा करने की नीति के लिए जागरूक करना चाहिए। याचिका में कहा गया था कि देश में बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए दो बच्चों की नीति अनिवार्य करने का वक्त आ गया है।

 

कुछ प्रदेशों में लागू है यह नीति

 

दो बच्चों की नीति परिवार नियंत्रण की योजना है। जो माता−पिता को अपने परिवार को दो बच्चों तक सीमित करने के लिए प्रोत्साहित करती है। देश में राष्ट्रीय स्तर पर परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के लिए यह नीति आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों में लागू है। यहां चीन की बात करना जरूरी है, जहां जनसंख्या विस्फोट से बचने के लिए एक बच्चे का कानून बना था। चीन ने 1979 में एक बच्चे की नीति को लागू किया गया था और वर्ष 2016 में एक बच्चे की नीति को समाप्त कर दिया है। इसकी वजह थी, एक बच्चे के चलते देश में बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही थी, उसके अनुपात में युवाओं की जनसंख्या काफी कम हो रही थी। लिहाजा वर्ष 2016 में चीन ने एक बच्चे की नीति को निरस्त कर दो बच्चों की नीति बना दी, लेकिन इसके बाद भी चीन में हालात बदले नहीं हैं। चीन में लोग अब दो बच्चे पैदा करना ही नहीं चाहते। इसकी वजह वहां की महंगी शिक्षा, मेडिकल सुविधाएं और घर के अन्य खर्च हैं। ऐसे में लोग अच्छी परवरिश करने के लिए एक ही बच्चा पैदा कर रहे हैं।

 

-अजय कुमार

 

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