चिनारों की धरती कश्मीर में अब चिनार नहीं दिखेंगे क्योंकि धरती के स्वर्ग की पहचान चिनार को काटने का सिलसिला प्रतिदिन जारी है। कश्मीर की खुशहाली का यह प्रतीक साथ ही में सूखता भी जा रहा है। वह दिन दूर नहीं जिस दिन चिनारों की धरती से चिनार लुप्तप्रायः हो जाएंगे और कश्मीर को धरती का स्वर्ग कोई नहीं कहेगा।
यह सब आतंकवाद की आड़ में किया गया और किया जा रहा है। इसमें आतंकवादी भी शामिल हैं जो चिनारों को काटने वाले वनाधिकारियों को भी संरक्षण देते आ रहे हैं। हैरानगी की बात तो यह है कि चिनारों की देखरेख तथा रख-रखाव के लिए तैनात अधिकारी भी चिनार की दुख भरी अंतिम यात्राओं के प्रति गहरी चुप्पी साधे हुए हैं। वे अपनी आंखों के समक्ष वर्षों पुराने पेड़ों को कटते भी देखते हैं लेकिन कुछ नहीं बोलते। उनकी चुप्पी के पीछे गहरा राज छुपा हुआ है।
जबसे कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियां आरंभ हुई हैं, दिसम्बर 1989 से, तब से अब तक लोग, आतंकवादी तथा सरकारी एजेंसियां इन 27 सालों के भीतर 20000 से अधिक चिनारों को काट चुके हैं। यह गैर सरकारी आंकड़े हैं जबकि सरकार इस कटाई को स्वीकार तो करती है लेकिन कहती है कि अभी उसने उनकी संख्या के आंकड़े एकत्रित नहीं किए हैं।
अनंतनाग व पुलवामा में सबसे अधिक 5000 चिनार काटे गए हैं जबकि कुपवाड़ा व बारामुला का स्थान दूसरे नम्बर पर है और श्रीनगर व बडगाम तीसरे स्थान पर। वैसे अन्य स्थानों पर काटे गए चिनार के पेड़ों की संख्यां अभी नहीं मिल पाई है। इतना ही नहीं, इन 27 सालों के दौरान लगभग 15000 से अधिक चिनार के पेड़ सूख गए हैं और अब वे मात्र ठूंठ ही रह गए हैं। चिनारों की धरती पर कंक्रीट के जंगल उग आने का परिणाम यह है कि 40000 से अधिक चिनारों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
‘आसपास के क्षेत्रों में कंक्रीट के जंगल तेजी के साथ बढ़ रहे हैं जिन्होंने न सिर्फ इन चिनारों की हवा ही बंद कर दी है बल्कि उनकी जड़ों में पानी की कमी भी होने लगी है। बड़ी-बड़ी सड़कों पर दौड़ने वाले भारी वाहन भी चिनारों को सूख कर ठूंठ बनाने के कार्य में पूरी मदद कर रहे हैं,’ यह बाग और उद्यान विभाग में कार्यरत एक अधिकारी ने इस संवाददाता को बताया था।
ग्रामीण क्षेत्रों में चिनारों की देखरेख, रख-रखाव तथा विकास का कार्य राजस्व विभाग को सौंपा गया है लेकिन यह रख-रखाव, विकास और देखभाल पिछले 27 सालों से नजर ही नहीं आ रहा है जबकि इन चिनारों का तो यह हाल है कि जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो खेत का रखवाला कौन होगा। कश्मीर का गहना चिनार इस समय खत्म होता जा रहा है, दिनोंदिन सूख कर ठूंठ बनने वालों की संख्या में भी बेहताशा वृद्धि होती जा रही है। सुनसान सड़कों, गांवों तथा अन्य स्थानों पर खड़े चिनार राजस्व विभाग के अधिकारियों तथा लकड़ी के तस्करों की कथित सांठगांठ का शिकार हो रहे हैं।
इस गठबंधन या सांठगांठ को वर्तमान आतंकवादी गतिविधियों ने तो सुनहरा अवसर प्रदान किया है। न किसी का भय और न किसी का आतंक तथा उनकी लालच की कुल्हाड़ी बेरहमी से उन चिनारों के वृक्षों पर चल रही है जो कश्मीर का गहना हैं। कई स्थानों पर तो आतंकवादी भी इस अवैध कटाई में पूरी तरह से शरीक रहे हैं लेकिन कश्मीरी आतंकवादी संगठनों का कहना है कि वे तथाकथित आतंकवादी हैं जो उनके आंदोलन को बदनाम करने पर तुले हैं लेकिन इस आरोप में सच्चाई नहीं दिखती है।
सबसे बुरा हाल तो श्रीनगर के राजधानी शहर में चिनारों के साथ हुआ है। सनद रहे कि इस राजधानी शहर में चिनारों की देखरेख, रख-रखाव का जिम्मा बाग और उद्यान विभाग के पास है। वर्ष 1985 की गणना के अनुसार, श्रीनगर शहर की नगरपालिका की सीमा के भीतर 5000 से अधिक चिनार के पेड़ थे और आज उनकी संख्या 2000 से भी कम है।
विभाग के अधिकारी अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि सड़कों को चौड़ा किए जाने, उन पर तारकोल बिछाने तथा आसपास के क्षेत्रों में कंक्रीट के जंगलों की बढ़ोतरी की प्रक्रिया के कारण ही चिनारों को अधिक क्षति पहुंच रही है जिसका नतीजा यह है कि चिनार सूखते जा रहे हैं। हालांकि वे यह समझाने में नाकाम रहे हैं कि इन चिनारों को बचाने के लिए क्या उपाय किए गए हैं या किए जा रहे हैं।
सारी कश्मीर घाटी में इस समय चिनार के घने जंगल कहीं नहीं मिलेंगे क्योंकि वे बेदर्द और बेरहम कुल्हाड़ियों की धार के शिकार हो चुके हैं। पर्यटन केंद्र, दूरदर्शन केंद्र, एम्पोरियम गार्डन के बाहरी तरफ, बटमालू तथा कमरवाड़ी से इनका पूरी तरह से बेदर्दी के साथ सफाया किया जा चुका है। इन स्थानों पर आवासीय बस्तियां उग गई हैं जो इनकी मौत की असल जिम्मेदार हैं। अमर सिंह कलब के पास स्थित चिनार का घना जंगल अब नहीं रहा है क्योंकि वहां क्रिकेट का मैदान बना डाला गया है। वैसे शहर के मध्य में यह स्थान एक बहुत ही बढ़िया नजारा पेश करता था। इतना ही नहीं डल झील के बीच में प्रसिद्ध चार चिनार जो कभी प्रत्येक आने जाने वाले को अपनी ओर आकर्षित करते थे आज अकेले पड़ गए हैं क्योंकि प्रकृति प्रेमियों का प्रिय स्थल चार चिनार अब मुरझा गया है। इनमें से दो मृत हो चुके हैं और एक अन्य मौत की ओर धीरे धीरे कदम बढ़ा रहा है।
खूबसूरत समतल मैदान से भरा, कुदरती सुंदर घास के खेतों से भरा, चिनारों की ठंडी छांव से भरपूर नसीम बाग आज कंक्रीट के बहुत भरे हुए जंगल में बदल चुका है क्योंकि वहां कश्मीर विश्वविद्यालय का निर्माण किया जा चुका है। अनेकों बड़े बूढ़ों की नजरों के आगे आज भी नसीम बाग का नजारा घूमता है। नसीम बाग से डल झील का दृश्य दुनिया का सबसे खूबसूरत, रोमांचक तथा मस्ती भरा हुआ करता था।
कभी महाराजा जहांगीर ने भी कहा था कि धरती के इस स्वर्ग पर नसीम बाग की परछाई डल झील में इस कदर खूबसूरत लगती है जैसे किसी परी या हूर का चेहरा हो। लेकिन आज डल झील में ऊंची इमारतों की परछाईयां ही दिखती हैं जो धरती के स्वर्ग पर कलंक की तरह लगती हैं। चिनार की धरती की खूबसूरत वस्तु चिनार पर राजनीतिज्ञों की कुल्हाड़ियों ने ही अन्य लोगों में इनको काटने का उत्साह भरा है।
इस समय सोनावर तथा कानवेंट मार्ग पर जबकि निशात तथा शालीमार बागों में भी चिनारों के घने वनों की जिन्दगियों को भारी खतरा पैदा हो गया है। वे किसी भी समय मौत का ग्रास बन सकते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इन स्थानों पर सड़कों तथा इमारतों के विस्तार का कार्य बहुत ही तेजी के साथ चल रहा है।
चिनारों को एक नए तरीके से भी लोग मौत दे रहे हैं। वे उसके आसपास पानी एकत्र कर देते हैं जो आहिस्ता आहिस्ता उसे गला कर रख देता है। श्रीनगर के पोलो ग्राउंड तथा पम्पोर-पुलवामा रोड पर खुले खेतों में स्थित चिनारों के घने जंगल भी अपने दिनों को गिन गिन कर काट रहे हैं।
श्रीनगर के चिनार विकास अधिकारी का कहना था कि उनके कंधों पर चिनारों की देखरेख करने का भार तो है लेकिन उनके पास आदमियों की इतनी कमी है कि वे कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। वे इस सबके लिए आतंकवादी गतिविधियों को ही दोषी ठहराते हैं। 'अवैध कटान को रोक पाना हमारे लिए कठिन होता जा रहा है,’ उसने स्वीकार किया था। हालांकि उसका दावा था कि पिछले 10 सालों के भीतर उनका विभाग चिनार की पैदावार बढ़ाने के इरादों से 20 हजार से अधिक चिनार के पौधे बांट चुका है लेकिन उनका क्या किया गया, इसके प्रति वह खामोश था।