बिहार में राजनीतिक सरगर्मियां तेज होती जा रही है। विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टी अपनी अपनी रणनीति को अब जमीन पर उतारने की शुरुआत कर चुकी हैं। इसी कड़ी में लगभग सभी पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है या फिर एक-दो दिन के अंदर कर देंगे। लेकिन इस दौरान एक पार्टी से दूसरे पार्टी में जाने और आने वाले नेताओं का सिलसिला भी लगातार जारी है। टिकट मिलने के दौर में पिछड़ने के बाद नेता लगातार अपनी पार्टी छोड़कर दूसरे पार्टी का रुख कर रहे है। पिछले साल भर से मेहनत करने के बाद जब उन्हें टिकट को लेकर नारागरी दिख रही तो वह दूसरे दल में जाने से कतरा भी नहीं रहे।
एनडीए और महागठबंधन के अलावा इस बार बिहार में तीसरे और चौथे मोर्चे की भी बात है। ऐसे में इन दो गठबंधनों जिन्हें टिकट नहीं मिल पाया है वह तीसरे या चौथे मोर्चे में अपनी जगह बनाने में जुटे हुए हैं। इसके अलावा फिलहाल लोजपा ने अपने दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। इसी वजह से सबसे ज्यादा बागी नेता लोजपा से ही जुड़ रहे हैं। आरजेडी जदयू और भाजपा छोड़ कई बड़े नेता लोजपा का दामन थाम चुके हैं। गठबंधन की वजह से जिन नेताओं को उनके इच्छा अनुसार टिकट नहीं मिल पाया वह अब दूसरे दलों से अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश में है। हालांकि चुनाव घोषणा से पहले ही आरजेडी के कई विधायक जदयू का दामन थाम चुके हैं। वही, श्याम रजक जैसे सरकार में बड़े मंत्री ने भी जदयू छोड़ आरजेडी में वापस लौट गए थे।
हाल फिलहाल की बात करें तो बीजेपी के कद्दावर नेता रामेश्वर चौरसिया लोजपा का दामन थाम चुके हैं। नोखा सीट से भाजपा के टिकट पर तीन बार विधायक रहे हैं। चौरसिया नीतीश विरोधी नेता माने जाते हैं। इस बार नोखा सीट बीजेपी के खाते में चली गई जिसके बाद रामेश्वर चौरसिया ने एलजीपी का दामन थाम लिया और अब दावा कर रहे हैं कि बिहार में लोजपा और भाजपा की सरकार बनेगी। इसके पहले भाजपा के ही प्रदेश उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह ने एलजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली। दिनारा सीट जदयू के खाते में चली गई। राजेंद्र सिंह दिनारा से चुनाव लड़ना चाहते थे। ऐसे में वो अपनी इच्छा को पूरी करने के लिए लोजपा का दामन थाम चुके हैं। बीजेपी की एक और बड़ी नेता डॉ उषा विद्यार्थी ने भी लोजपा का दामन थाम लिया है। वह पटना के पालीगंज सीट से विधायक रह चुकी हैं। इस बार पालीगंज सीट जदयू के खाते में चली गई है। ऐसे में वह भाजपा छोड़ लोजपा में शामिल होकर चुनावी मैदान में उतर सकती हैं।
जदयू और आरजेडी के भी कुछ नेता लोजपा में शामिल हो रहे हैं। इसके अलावा रालोसपा के राष्ट्रीय महासचिव राजद का दामन थाम चुके हैं। आने वाले दिनों में कई और बड़े नेता अपना पाला बदल सकते हैं। बगावत की राजनीति बिहार में हावी होती जा रही है। टिकटों के बंटवारे को लेकर जमीनी कार्यकर्ता भी कहीं नाराज हो रहे हैं तो कहीं उत्सव मना रहे हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिर आने वाले दिनों में पार्टियां किस तरीके से अपने मजबूत उम्मीदवार के पक्ष में माहौल बनाने में कामयाब होती हैं।