शराब घोटाले के आरोप में छह महीने तिहाड़ जेल में गुजारने के बाद जमानत पर बाहर निकलते ही आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह ने बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि जेल के ताले टूटेंगे। कार्यकर्ताओं को ऐसे नारे बेहद पसंद आते हैं। उन्हें जोश से भर देते हैं। चूंकि आम आदमी पार्टी की तकरीबन पूरा शीर्ष नेतृत्व ही जेल में है, और ऐसे में संजय सिंह का बाहर आना और ऐसे बयान देना स्वाभाविक है। लेकिन क्या ऐसा लगता है कि सचमुच जेल के ताले टूट जाएंगे और धनशोधन या शराब घोटाले में तिहाड़ जेल में न्यायिक हिरासत में बंद आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन निकल आएगे।
जेल का ताला टूटेगा, नारा पहली बार 1977 के आम चुनाव में मुजफ्फरपुर में लगा था, तब बड़ौदा डायनामाइट कांड में बंद समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडिस वहां से चुनाव लड़ रहे थे। इंदिरा सरकार की तानाशाही के खिलाफ तकरीबन समूचा उत्तर भारत एकजुट हो गया था और सत्तहत्तर के चुनाव में कांग्रेस की हार हुई थी। मुजफ्फरपुर से जार्ज भी जीते और जेल का ताला टूटा नहीं, खोला गया। क्योंकि तत्कालीन मोरारजी भाई सरकार में उन्हें मंत्री बनना था। संजय सिंह की राजनीतिक दीक्षा उसी समाजवादी धारा से मिली है, जिसके दुर्धष प्रतिनिधि जार्ज फर्नांडिस रहे। इसलिए संजय ने भी समाजवादी ढंग से नारा दिया है कि जेल के ताले टूटेंगे..ताकि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह बना रहे। चूंकि आम चुनाव चल रहा है, इस दौरान अगर कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं रहेगा तो पार्टी के लिए चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर पाना आसान नहीं होगा।
लेकिन सवाल यह है कि क्या संजय सिंह के जेल से बाहर आने से सिर्फ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं का ही उत्साह बढ़ेगा? अगर गहराई से सोचेंगे तो इस सवाल का जवाब और भी हो सकता है। जब से अरविंद केजरीवाल जेल गए हैं, तब से उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल सामने आने लगी हैं। इसके पहले वे अक्सर नेपथ्य में यानी पर्दे के पीछे रहती थीं। अक्सर वे सार्वजनिक तौर पर सामने आने से बचती रहीं। लेकिन जैसे ही अरविंद केजरीवाल जेल के अंदर गए, तब से वे लगातार सामने आ रही हैं। अब तक अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने तय किया है कि वे दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे, इसके बाद सुनीता की भूमिका बढ़ गई थी। पार्टी कार्यकर्ताओं और अरविंद केजरीवाल के बीच वे सेतु का काम करने लगी थीं। अरविंद केजरीवाल से मिलने के बाद उनका जो संदेश होता है, उसे वह आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं और आम लोगों तक पहुंचाती रही हैं। इसी बीच दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में इंडिया गठबंधन की रैली हुई, उसमें सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, फारूख अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती आदि दिग्गज विपक्षी नेताओं के साथ मंच साझा किया। मंच पर भी उन्होंने आम आदमी पार्टी के तुरूप के पत्ते केजरीवाल का ही संदेश पढ़ा। चूंकि आम चुनाव है, इसलिए दिल्ली और पंजाब तक सिमटी पार्टी के नेता की बजाय सुनीता ने देश को संदेश दिया। अरविंद का संदेश ही देश को था, दिल्ली या पंजाब के लिए ही नहीं।
सुनीता की बढ़ती सक्रियता के बाद माना जाने लगा था कि वे देर-सवेर दिल्ली की मुख्यमंत्री हो सकती हैं। अगर अरविंद केजरीवाल का मामला लंबा चला, वे जेल से जल्द बाहर नहीं निकल पाए, तो सुनीता आम आदमी पार्टी की स्वाभाविक नेता के रूप में भी सुनीता के उभरने की उम्मीद लगाई जा रही थी। वैसे अरविंद के जेल जाने के बाद जिस तरह आतिशी मर्लेना और सौरभ भारद्वाज ने मोर्चा संभाला, उसकी वजह से वे भविष्य के नेता के तौर पर भी उभर रहे थे। लेकिन सुनीता के सामने आने के बाद एक तरह से माना जाने लगा था कि आम आदमी पार्टी की वे ताकत बन सकती हैं। चूंकि चुनाव चल रहा है, इसलिए यह भी माना जाने लगा था कि महिला होने के चलते सुनीता के प्रति कम से कम पंजाब और दिल्ली में विशेषकर महिला वोटरों में सहानुभूति बढ़ सकती है।
लेकिन संजय सिंह के जेल से बाहर आने के बाद स्थितियां बदल सकती हैं। कुछ राजनीतिक जानकार मानते हैं कि संजय सिंह के बाहर आने के बाद आम आदमी पार्टी में सत्ता की एक मात्र केंद्र अब सुनीता नहीं रह जाएंगी। इसकी वजह यह है कि अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के बाद आम आदमी पार्टी में अगर कोई नेता ताकतवर है, तो वह संजय सिंह ही हैं। वे पार्टी की संसद में मुखर आवाज भी हैं। संजय का कार्यकर्ताओं से जुड़ाव भी है। इसलिए यह माना जाने लगा है कि संजय के जमानत पर होने के बाद सुनीता को लेकर जारी फोकस में कमी आएगी। यह भी हो सकता है कि अगर मुख्यमंत्री बदलना पड़े तो सुनीता एक मात्र उम्मीदवार नहीं होंगी, बल्कि कार्यकर्ताओं का फोकस और उनकी राय बंट सकती है। इसके बाद आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं में खींचतान बढ़ सकती है।
कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि संजय की जमानत का ईडी द्वारा विरोध ना किया जाना, केंद्र सरकार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। संजय के बाहर आने के बाद आम आदमी पार्टी में सत्ता के दो केंद्र उभर सकते हैं। अरविंद की मौजूदगी में ऐसा संभव नहीं होता। चूंकि संजय सक्रिय रहे हैं, इसलिए उनका पार्टी कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद है। इसलिए उनके सत्ता के दूसरे केंद्र के रूप में स्थापित होने की पूरी संभावना है। इसकी वजह से सुनीता को लेकर फोकस बदलेगा। जिसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है।
संजय की रिहाई के बाद जेल के ताले टूटेंगे या नहीं, यह तो वक्त बताएगा। लेकिन इतना जरूर है कि आम आदमी पार्टी की राजनीति जरूर बदलेगी। जिसका असर आम आदमी पार्टी की सेहत पर पड़े बिना नहीं रहेगा।
-उमेश चतुर्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)