By अभिनय आकाश | Jan 21, 2022
असम को अगर पूर्वोत्तर की आत्मा कहा जाता है तो मणिपुर को मुकुट कहते हैं। लेकिन इन दोनों राज्यों के जनादेश का असर सेवन सिस्टर्स के शेष पांच राज्यों पर भी पड़ता है। बीते दिनों नागालैंड में सेना की फायरिंग में 14 नागरिकों की मौत के बाद पूर्वोत्तर भारत में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून 1958 एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकता है। नागालैंड में हुई हिंसा के बाद वहां अफस्पा कानून को हटाने की बात शुरू हुई। नागालैंड सरकार के मुताबित राज्य से अफस्पा हटाने के लिए समिति बना दी गई है। जिसकी सिफारिशों के आधार पर राज्य से अफस्पा को वापस लिया जा सकता है।
अफस्पा को वापस लेने की मांग के समर्थन में कांग्रेस
पूरे पूर्वोत्तर में अफ्स्पा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। कांग्रेस सार्वजनिक तौर पर अफ्स्पा को वापस लेने की मांग कर रही है। इसके साथ ही कांग्रेस की तरफ से सत्ता में आने की स्थिति में अफस्पा कानून को तत्काल और पूर्ण रूप से हटाने के लिए जोर देने का वादा करके इस मुद्दे को चुनावी हवा दे रही है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल के दौरान अफस्पा को सात विधानसभा क्षेत्रों (राज्य की राजधानी इंफाल सहित) से तब हटा दिया था।
बीजेपी ने साध रखी चुप्पी
भारतीय जनता पार्टी अफस्पा हटाने के मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। पार्टी ने राज्य में प्रचार तेज कर दिया है। मणिपुर में इनर लाइन परमिट की शुरुआत पर मतदाताओं को ये याद दिलाया कि ये पार्टी का मणिपुर को सबसे बड़ा उपहार है। इनर लाइन परमिट मणिपुर में कुछ समूहों की लंबे समय से मांग रही है।
क्या है अफस्पा कानून
सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून , 1958 (अफस्पा) के तहत केंद्र सरकार राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर किसी राज्य या क्षेत्र को अशांत घोषित कर वहां केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात करती है। अफस्पा के तहत सशस्त्र बलों को कहीं भी अभियान चलाने और बिना पूर्व वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त है। सशस्त्र बलों को अंदेशा होने पर कि विद्रोही या उपद्रवी किसी घर या इमारत में छुपा है ( जहां से हथियार बंद हमले का अंदेशा हो) उस आश्रय स्थल को तबाह किया जा सकता है। सशस्त्र बलों द्वारा गलत कार्यवाही करने की दशा में भी, उनके ऊपर कानूनी कार्यवाही नही की जाती है।