पूर्वांचल में सबसे पहले दौरा तो कर आईं प्रियंका गांधी, लेकिन क्या कुछ असर पड़ेगा ?

By अजय कुमार | Mar 22, 2019

पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बनाई गईं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा एक तरफ मतदाताओं को रिझाने में लगी हैं तो दूसरी तरफ विरोधी प्रियंका को आईना दिखा रहे हैं। यूपी का पूर्वांचल वह इलाका है जहां से भाजपा के दिग्गज नेता और प्रधानमंत्री व इसी पद के एक बार फिर दावेदार नरेन्द्र मोदी सहित यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य जैसे दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इन दिग्गजों के समाने प्रियंका को अपनी भी जगह बनानी है। पूर्वांचल में करीब 48 लोकसभा सीटें आती हैं। पूर्वांचल यानी बनारस, प्रयागराज (इलाहाबाद), मिर्जापुर, आजमगढ़, गोरखपुर और बस्ती मंडलों की 48 संसदीय सीटें और 28 जिले। जनसंख्या और भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तर प्रदेश के चार क्षेत्रों में पूर्वांचल नंबर एक पर है। इसके विपरीत साक्षरता में यह तीसरे नंबर पर है। महिला साक्षरता में इसका अंतिम स्थान है।

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नदियों से भरा और उर्वरता का धनी पूर्वांचल दूध उपलब्धता में भी प्रदेश में अंतिम पायदान पर है। प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चे इस क्षेत्र में सबसे अधिक हैं। इन्हीं कारणों से पलायन ऐसा विकराल रोग है जिसका निदान कोई सरकार नहीं कर सकी। पूर्वांचल की सारी समस्याएं इस बीमारी के मूल में हैं। खस्ताहाल सड़कें पूर्वांचल की बहुत बड़ी समस्या हैं। रास्ते भर गड्ढों के बीच सड़क कहीं−कहीं ही नजर आती है। लखनऊ−दिल्ली के बीच पहले भी अच्छी सड़कें थीं, जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश इनके लिए तरसता रहा, लेकिन एक्सप्रेस−वे के लिए पूर्वांचल तरसता रहा। योगी सरकार का पूर्वांचल एक्सप्रेस वे इस क्षेत्र की जनता के घावों पर मरहम है। एक्सप्रेस−वे से छोटे जिलों को जोड़ने की योजना निश्चय ही पूर्वांचल की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेगी। बनारस का पान अब भी चौतरफा अपनी छटा बिखेर रहा है, लेकिन मऊ के साथ आजमगढ़ के बुनकर यहां पर सरकारी इच्छा शक्ति की आस में वर्षों से नष्ट हो रहे हैं।

 

पूर्वांचल की बंद चीनी मिलें गन्ना किसानों की विपदा की कहानी हैं। गाजीपुर के सांसद विश्वनाथ सिंह गहमरी ने कभी संसद में कहा था कि पूर्वांचल में इतनी गरीबी है कि लोग गोबर से दाना बीनकर उसे साफ करके खाते हैं। कह सकते हैं कि हालात बहुत नहीं बदले हैं, लेकिन वाराणसी से मोदी के चुनाव जीतने और गोरखपुर से योगी के सीएम बनने के बाद पूर्वांचल की तस्वीर बदली है। गंगा पहले की तरह गंदी नही दिखाई देती हैं। सड़क भी पूरे क्षेत्र में भले नहीं लेकिन कई जगह दिखने लगी हैं। ऐसे में प्रियंका के लिए यहां पंजा लड़ाना इतना आसान भी नहीं लगता है। प्रियंका जनता से घुलने मिलने की कोशिश तो बहुत कर रही हैं, लेकिन वह इसे वोटों में कितना तब्दील कर पाएंगी यह समय बताएगा।

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बहरहाल, कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव प्रचार का बिगुल फूंक दिया है और मोदी का अभी यहां आना नहीं हुआ है। पूर्वांचल में अंतिम चरण में मतदान होना है, इसलिए बीजेपी और सपा−बसपा के दिग्गज नेता संभवतः अभी यहां कम ही दिखाई दें। खैर, बात प्रियंका की कि जाए तो उनके ऊपर विशेष तौर पर पूर्वांचल की ही जिम्मेदारी है, इस हिसाब से वह फायदे में हैं। उनके पास अन्य दलों के दिग्गजों के मुकाबले समय भी ज्यादा है। प्रियंका ने प्रथम चरण की शुरूआत के प्रथम दिन प्रयागराज में रात बिताई। यहां से कभी प्रियंका के पर दादा पंडित जवाहर लाल नेहरू चुनाव लड़ा करते थे। आज भी प्रयागराज को नेहरू की विरासत समझा जाता है। यह शहर नेहरू के अलावा प्रियंका के दादा फिरोज गांधी के लिए भी याद किया जाता है, लेकिन दुख की बात यह है कि गांधी परिवार हमेशा फिरोज गांधी से दूरी बनाकर चलता है न कभी इंदिरा गांधी ने अपने पति को तवज्जो दी, न ही राजीव और संजय गांधी का फिरोज गांधी के प्रति लगाव दिखता था। यही क्रम अभी भी चला आ रहा है सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी और अब प्रियंका वाड्रा गांधी भी फिरोज गांधी को मानना तो दूर उनके नाम से परहेज करती दिखती हैं। अपवाद के रूप में करीब 15 साल पहले एक बार सोनिया गांधी और लगभग दस साल पहले राहुल गांधी यहां जरूर आए थे। इसीलिए तो 18 मार्च को गंगा में दुग्धाभिषेक, विधि−विधान से पूजा करने वाली प्रियंका शहर के ममफोर्डगंज स्थित पारसी कब्रिस्तान में बनी फिरोज जहांगीर गांधी की कब्रगाह पर फूल चढ़ाने नहीं गईं तो बीजेपी ने प्रियंका को घेरने में कोई देरी नहीं की। बीजेपी नेताओं का आरोप है कि जो सत्ता के लिए अपने दादा फिरोज गांधी का नहीं हो पाया, वह देश का क्या होगा।

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काशी क्षेत्र के भाजपा अध्यक्ष महेश चंद्र कहते हैं कि प्रियंका का गंगा प्रेम आडंबर है। जिन्हें अपने पुरखों का सम्मान करना नहीं आता, वो आमजन का क्या सम्मान करेंगी। मजार पर प्रियंका के न जाने से फिरोज गांधी की आत्मा को भी दुख पहुंचा होगा। प्रियंका फिरोज गांधी का नाम भले नहीं लेती हों, लेकिन वह पंडित जवाहरल लाल नेहरू और दादी इंदिरा गांधी की चर्चा खूब करती हैं। प्रियंका पूर्वांचल को पारिवारिक भावनाओं में बहाकर पूर्वांचल फतह करना चाहती हैं। वैसे भी प्रयागराज में कांग्रेस अपने पुरखों की कुर्बानी और देश को आजाद कराने की कहानियों के जरिए नई पीढ़ी तक पहुंचने की जुगत में हमेशा से रही है। सत्ता तक पहुंचने के लिए गंगा के घाटों, कछारी गांवों में खेतों की पगडंडियों से लेकर शहर की चौड़ी सड़कों तक नापने में लगीं प्रियंका वाड्रा की सारी कवायद अपनी अलग नई छवि बनाने और दिखाने की है। प्रयाग से काशी तक गंगा यात्रा के पहले और दूसरे दिन रास्ते में आने वाले हर धार्मिक स्थल पर सिर नवाया। मंदिर में तिलक से लेकर मजारों की चादरपोशी का मौका हाथ से नहीं गंवाया। वहीं हर दर पर जाने वाली प्रियंका जब अपने पुरखों के घर विरासत के हल से चुनावी फसल उगाने के लिए पहुंचीं तो नाना और दादी के घर से चंद कदम दूर दादा फिरोज जहांगीर गांधी की मजार पर न तो फूल चढ़ाया और न ही चादर।

 

गौरतलब है कि शहर के मम्फोर्डगंज मुहल्ले में पारसी समाज के लोगों का कब्रिस्तान है। वहां फिरोज सुपुर्द−ए−खाक किए गए थे। प्रियंका के स्वराज भवन में रुकने के साथ यह कयास लगाए जा रहे थे कि वह दादा की मजार पर जाएंगी। इसको लेकर वहां पर साफ−सफाई भी करा दी गई थी, पर ऐसा हुआ नहीं। भाजपा ने प्रियंका की यह कमजोर नस पकड़ ली। हो सकता है आने वाले दिनों में प्रियंका वाड्रा सियासी मजबूरी के चक्कर में एक बार यहां तक आ भी जाएं, लेकिन अब तीर तो कमान से छूट ही चुका है। वह जाएंगी भी तो विरोधी प्रियंका को छोड़ेंगे नहीं। प्रियंका तीन दिन की गंगा यात्रा के दौरान पांच लोकसभा सीटों- इलाहाबाद, फूलपुर, भदोही, मिर्जापुर और वाराणसी से गुजरीं। वोट के लिए प्रियंका गांधी की यह बोट यात्रा कितनी सफल होती है यह तो समय ही बताएगा, लेकिन जिन सीटों से प्रियंका गुजरीं वहां, वाराणसी को छोड़कर 1984 के बाद किसी भी सीट पर कांग्रेस जीत नहीं सकी है।

 

 

वाराणसी लोकसभा सीट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से वीवीआईपी हो चुकी है। पिछले 35 साल में यहां कांग्रेस सिर्फ एक बार जीती है। 1984 के बाद हुए आठ लोकसभा चुनावों में छह बार यह सीट भाजपा के खाते में आई। 1989 में यहां जनता दल जीता था। सिर्फ एक बार 2004 में ये सीट कांग्रेस जीत सकी है। 2004 में कांग्रेस के राजेश कुमार मिश्रा ने भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल को हराया था। पिछले चुनाव में नरेंद्र मोदी को 5,81,022 वोट मिले तो अरविंद केजरीवाल को 2,09,238 वोट मिले थे वहीं कांग्रेस के अजय राय को केवल 75,614 वोटों से संतोष करना पड़ा।

 

उधर, इलाहाबाद (अब प्रयागराज) संसदीय सीट ने भी देश को बड़ी राजनीतिक शख्सियतें दी हैं। देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, वीपी सिंह, मुरली मनोहर जोशी, जनेश्वर मिश्र जैसे राजनीतिक दिग्गज यहां से चुनाव जीते हैं। हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे दिग्गज को हराकर अमिताभ बच्चन भी यहां के सांसद रह चुके हैं। यहां पहले सांसद श्रीप्रकाश स्वतंत्रता सेनानी थे और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे। उनके बाद लाल बहादुर शास्त्री 1957 में यहां से सांसद चुने गए। इलाहाबाद की ही फूलपूर संसदीय सीट से पंडित जवाहर लाल नेहरू चुनाव लड़ते और जीतते रहे थे।

 

-अजय कुमार

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