By अजय कुमार | Jul 29, 2021
लखनऊ। नगिरकता संशोधन अधिनियम 2019 (सीएए) के खिलाफ हुए प्रदर्शन और हिंसा के बाद योगी सरकार ने सार्वजनिक सम्पति को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करके खूब वाहवाही लूटी थी। पुलिस ने भी सरकार की मंशा के अनुरूप दंगाइयों पर कार्रवाई करने में हिचक नहीं दिखाई थी,लेकिन साढ़े डेढ़ वर्ष के पश्चात भी 10 प्रतिशत मामलों में पुलिस चार्जशीट ही नहीं लगा पाई और जांच की जगह पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी है। सबसे ज्यादा मामलों में मेरठ जोन में अंतिम रिपोर्ट लगाई गई है। करीब डेढ़ साल बीतने के बाद भी पुलिस अब तक सिर्फ 72 प्रतिशत मामलों में आरोप पत्र दाखिल कर पाई है। डीजीपी मुख्यालय के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सीएए के खिलाफ हुए प्रदर्शन और ंिहंसा के मामले में यूपी में कुल 510 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से पुलिस अभी तक 369 मामलों मेें चार्जशीट दाखिल कर पाई है। जबकि जांच के दौराल गलत पाए जाने पर पुलिस ने 51 मामलों में अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी है। इनमें से सबसे ज्यादा 23 मामलों में फाइनल रिपोर्ट लगाई गई हैं। इसके अलावा बरेली जोन में सात, कानपुर कमिश्नरेट में तीन, प्रयागराज जोन में दो, कानपुर जोन व कमिश्नरेट वाराणसी में एक-एक मामले में एफआर लगाई गई है।
सीएए के खिलाफ प्रदर्शन व हिंसा के सबसेे ज्यादा 105 मामले आगरा जोन में दर्ज हुए थे। इसके बाद दूसरे नंबर पर मेरठ जोन में 104 मामले, बरेली जोन में 92, लखनऊ कमिश्नरेट में 63, प्रयागराज जाने में 48, कानपुर कमिश्नरेट ममें 23, लखनऊ जोन में 19, गोरखपुर जोन में 17, वाराणसी जोन में 15, कानपुर जोन में 12 और वाराणसी कमिश्नरेट में भी 12, मामले दर्ज नहीं किया गया था। सीएए खिलाफ दर्ज हुए 510 मामलों में 4150 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था। जबकि 4223 अभियुक्तों के नाम जांच में सामने आए। पुलिस की जांच में 890 की नामजदगी गलत पाई गई।बहरहाल, ऐसा लगता है कि समय के साथ अब योगी सरकार भी सीएए के खिलाफ धरना-प्रदर्शन और दंगा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के मूड में नहीं है। क्योंकि अब यह चुनावी मसला ही नहीं रह गया है।