अंतरराष्ट्रीय मातृत्व दिवस माताओं एवं मातृत्व का सम्मान करने वाला दिन होता है। एक मां ही होती है जो सभी की जगह ले सकती है। लेकिन उनकी जगह कोई और नहीं ले सकता है। मां अपने बच्चों की हर प्रकार से रक्षा और उनकी देखभाल करती है। इसलिए मां को ईश्वर का दूसरा रूप कहा जाता है।
गेरु से चौक पूर कर, सजा रँगोली द्वार ।
हर दिन अम्माँ के लिए, होता था त्योहार ।।
उठतीं पहले भोर से, सोतीं सबके बाद ।
न थकने का था मिला, उनको देव-प्रसाद ।।
पढ़ बाबू की डायरी, खुला राज ये आप ।
अम्माँ भी थी चटपटी, जैसे आलूचाप ।।
अम्मा हुईं पचास की, मिला नहीं विश्राम |
अम्माँ के साथी हुए, मूव, त्रिफला, बाम ।।
आया जब मुश्किल समय, दस्तक देने द्वार ।
चढ़ा चटकनी बन गईं, अम्माँ पहरेदार ।।
धोती सूती छह गजी, अम्माँ की पोशाक ।
एक छोर आँसू पुछे, दूजे बहती नाक ।।
अम्मा ने हरदम किया, सबका ही सम्मान |
रिश्तों में देखा नहीं, नफा और नुकसान ||
खुद से कभी डिगा नहीं, अम्मा का विश्वास |
अम्मा रख कर खुश रहीं, पीडा अपने पास ||
पाँच बरस पूरे हुए, गए गगन के पाथ ।
यादों में अम्माँ रहीं, सदा हमारे साथ ।।
अम्माँ के निर्वाण से, रिक्त हुआ संसार ।
थाली से गायब हुए, चटनी और अचार ।।
अम्माँ के जाते, हुए, सब इतने असहाय ।
दिन-दिन भर दिन भूखे रहे, मिट्ठू, कुत्ता, गाय ।।
अम्माँ जी तुम क्या गईं, हम भूले परवाज ।
छूट गए त्योहार कुछ, बदले रीति रिवाज ।।
पँजीरी का लगा नहीं, ऐसा रहा संयोग ।
अम्माँ जी के बाद फिर, लड्डू जी को भोग ।।
अम्मा से सीखा यही, सारे धरम समान |
तुलसी, मीरा को पढ़ा, साथ पढ़े रसखान ||
अरुण अर्णव खरे
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