जीवन जीने के कुछ अपने ज़रूरी सलीके हैं (कविता)

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By जिगना मेहता | Mar 01, 2018

जीवन जीने के कुछ अपने ज़रूरी सलीके हैं (कविता)

हिंदी काव्य संगम मंच की सर्वश्रेष्ठ लेखिका जिगना मेहता द्वारा स्वरचित कविता 'जीवन जीने के कुछ अपने ज़रूरी सलीके हैं' पाठकों को जीवन के संघर्ष से रूबरू कराती है।

 

 

जीवन जीने के कुछ अपने ज़रूरी सलीके हैं,

 

न्याय करती है कुदरत; उसके अपने तरीके हैं

 

एक अधिकार प्राप्त कर यहाँ हर जीव आता हैं,

 

अव्यक्त सृष्टि की भी यह हमारी पृथ्वी माता है,

 

इंसान को अपने सिवा कुछ ना नज़र आता है,

 

तू सहे तू हाहाकार विध्वंस का क्यूँ मचाता है,

 

रहना तैयार भुगतने को; जो इसके नतीजे है,

 

न्याय करती है कुदरत; उसके अपने तरीके हैं

 

पंचतत्व की पूजा और अर्चना तो करते रहते हैं,

 

उद्दंड ऐसे हैं कि दूषित भी उसे ही करते रहते हैं,

 

जल, वायु, वन-उपवन भी मलिन करते रहते हैं,

 

याद रखना बस यह; करनी का फल भुगतते हैं,

 

ख़ुदपरस्ती के जो यूँ हम पढ़ते ही रहते कसीदे हैं,

 

न्याय करती है कुदरत; उसके अपने तरीके हैं।

 


-जिगना मेहता (गुजरात)

 

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