By नीरज कुमार दुबे | Dec 01, 2023
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी28) में भाग लेने वैसे तो दुनिया के कई राष्ट्राध्यक्ष आये लेकिन जैसा स्वागत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हुआ वैसा किसी अन्य का नहीं हुआ। दरअसल अक्सर ऐसे वैश्विक सम्मेलनों में देखने को मिलता है कि आयोजक देश प्रतिभागी राष्ट्रों के नेताओं का प्रोटोकॉल के मुताबिक स्वागत करता है। लेकिन जब जिक्र मोदी का आता है तो प्रोटोकॉल भी टूटते हैं और अलग मंजर भी नजर आता है। मोदी के आगमन पर विभिन्न राष्ट्राध्यक्ष उनकी अगवानी करने हवाई अड्डे पर पहुँच जाते हैं तो कभी कोई राष्ट्राध्यक्ष मोदी के आगमन पर उनके पैर छू लेता है तो कोई उन्हें देखते ही गले लगा लेता है। लेकिन इस सबसे बढ़कर एक दृश्य और देखने को मिलता है वह यह कि मोदी जब भी किसी देश में जाते हैं तो वहां पर रह रहा भारतीय समुदाय उनका जोरदार स्वागत करता है। ऐसा दृश्य किसी और नेता के मामले में देखने को नहीं मिलता इसलिए मोदी हर समारोह में छा जाते हैं और सुर्खियों में आ जाते हैं।
अब मोदी की दुबई यात्रा को ही लीजिये। यह बहुत छोटा और बेहद व्यस्त दौरा था। लेकिन प्रधानमंत्री के स्वागत में जिस तरह स्थानीय सरकार और प्रशासन ने पलक पांवड़े बिछाये और भारतीय समुदाय ने मोदी मोदी के नारों तथा फिर एक बार मोदी सरकार जैसे नारों से आकाश को गुंजायमान किया वह दृश्य देखने लायक थे। संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी 28) की शुरुआत से पहले जब उपस्थित नेताओं का सामूहिक चित्र लिया जा रहा था उस दौरान भी वैश्विक नेताओं के बीच मोदी से मिलने और दो मिनट में अपनी बात उन तक पहुँचा देने की होड़ लगी रही। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कार्यक्रम स्थल पर मोदी का जिस गर्मजोशी से स्वागत किया वह देखने लायक थी। इस सम्मेलन की खास बात यह रही कि प्रधानमंत्री ने 2028 में भारत में COP33 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने का प्रस्ताव रख कर दुनिया को संदेश दिया है कि भारत वैश्विक सम्मेलनों का नया केंद्र बनने की राह पर है। हम आपको याद दिला दें कि इस साल सितंबर महीने में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान भी भारत ने अपनी शानदार मेजबानी से पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया था।
सीओपी28 में मोदी के संबोधन पर गौर करें तो उन्होंने बड़ी ही प्रखरता के साथ दुनिया को बताया कि भारत ने पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के बीच बेहतरीन संतुलन बनाकर दुनिया के सामने विकास का एक मॉडल पेश किया है। दुबई में सीओपी28 सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने यह बड़ा ऐलान भी किया कि भारत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह पर है। प्रधानमंत्री ने दुनिया को यह भी बताया कि भारत ने निर्धारित समय सीमा से 11 साल पहले ही अपने उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य हासिल कर लिए हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि अपने सभ्यतागत लोकाचार को ध्यान में रखते हुए भारत ने हमेशा जलवायु कार्रवाई पर जोर दिया है, यहां तक कि हम सामाजिक और आर्थिक विकास को आगे बढ़ा रहे हैं। देखा जाये तो भारत की जी20 की अध्यक्षता के दौरान जलवायु हमारी प्राथमिकता में सबसे ऊपर थी। नयी दिल्ली घोषणापत्र में जलवायु कार्रवाई और सतत विकास पर कई ठोस कदम शामिल हैं।
हम आपको यह भी बता दें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विकासशील देशों को अपेक्षित जलवायु वित्तपोषण और प्रौद्योगिकी संबंधी हस्तांतरण सुनिश्चित करने का आह्वान करते हुए कहा है कि इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि विकासशील देशों ने जलवायु समस्या पैदा करने में कोई योगदान नहीं दिया है लेकिन फिर भी वे इसके समाधान का हिस्सा बनने के इच्छुक हैं। देखा जाये तो जलवायु परिवर्तन एक सामूहिक चुनौती है जिससे निपटने के लिए एकीकृत वैश्विक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। हम आपको बता दें कि भारत समेत विकासशील देशों ने यह भी दावा किया है कि बदलावों से निपटने में मदद करने की जिम्मेदारी अमीर देशों की है, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से ये वही देश हैं जिन्होंने पृथ्वी को गर्म करने वाले कार्बन उत्सर्जन में अधिक योगदान दिया है।
हम आपको यह भी बता दें कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता सीओपी28 एक सकारात्मक संकेत के साथ शुरू हुई, जिसमें विभिन्न देशों ने हानि और क्षति कोष के संचालन पर शुरुआती समझौता किया। भारत ने“सकारात्मक संकेत” के तौर पर इसका स्वागत किया है। हालांकि इस कोष को लेकर हुए समझौते पर ‘ग्लोबल साउथ’ से मिलीजुली प्रतिक्रिया सामने आई है। दरअसल, ग्लोबल साउथ के देश लंबे समय से बाढ़, सूखे और गर्मी सहित आपदाओं से निपटने के लिये पर्याप्त धन की कमी की ओर इशारा कर रहे हैं और अमीर देशों को इससे उबरने के लिये पर्याप्त धन नहीं देने का दोषी ठहरा रहे हैं। हम आपको बता दें कि ग्लोबल साउथ से तात्पर्य उन देशों से है जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित के रूप में जाना जाता है। यहां यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि पिछले साल मिस्र के शर्म अल-शेख में आयोजित सीओपी27 में अमीर देशों ने हानि और क्षति कोष स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की थी। हालांकि, धन आवंटन, लाभार्थियों और प्रशासन पर फैसले लटकाए रखे गए थे। दरअसल, विकासशील देश कोष रखने के लिए एक नयी और स्वतंत्र इकाई चाहते थे, लेकिन अगले चार वर्षों के लिए अस्थायी रूप से ही सही और अनिच्छा से विश्व बैंक को स्वीकार किया था। इस कोष को चालू करने के निर्णय के तुरंत बाद, संयुक्त अरब अमीरात और जर्मनी ने घोषणा की कि वे इस कोष में 10-10 करोड़ अमेरिकी डॉलर का योगदान देंगे।
बहरहाल, पूरा विश्व सीओपी28 सम्मेलन की सफलता की कामना कर रहा है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र की मौसम एजेंसी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने कहा है कि 2023 सबसे गर्म वर्ष होना निश्चित है और चिंताजनक प्रवृत्तियां भविष्य में बाढ़, जंगल की आग, हिमनद पिघलने और भीषण गर्मी में वृद्धि का संकेत देती हैं। डब्ल्यूएमओ ने यह भी चेतावनी दी है कि वर्ष 2023 का औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक काल से लगभग 1.4 डिग्री सेल्सियस ऊपर है। इसके साथ ही यह भी भविष्यवाणी की गयी है कि साल 2024 सबसे ज्यादा गर्म रह सकता है। इसलिए देखना होगा कि सीओपी28 सम्मेलन जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मलेन और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में प्रभावी जलवायु कार्रवाई और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को नई गति दे पाता है या नहीं?
-नीरज कुमार दुबे