By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Aug 22, 2019
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय में गुरुवार को एक याचिका दायर करके गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम में किए गए संशोधनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। इन संशोधनों को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि इनसे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है। यूएपीए में संशोधन संबंधी विधेयक को संसद ने दो अगस्त को पारित किया था और राष्ट्रपति ने नौ अगस्त को इसे मंजूरी दी थी। संशोधन अधिनियम केंद्र को किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने और उसकी संपत्ति को जब्त करने का अधिकार देता है। गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) संशोधन अधिनियम, 2019 मेंकिसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित कर दिये जाने पर ऐसे व्यक्ति के यात्रा करने पर प्रतिबंध लगाने का भी प्रावधान है।
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यह याचिका गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि किसी व्यक्ति का पक्ष सुने बिना उसे आतंकवादी घोषित करना व्यक्ति की प्रतिष्ठा और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का एक पहलू है। याचिका में कहा गया है कि महज सरकार की मान्यता के आधार पर किसी व्यक्ति का पक्ष सुने बिना उसकी निंदा करना अतर्कसंगत, अनुचित, असंगत और उचित प्रक्रिया का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि संशोधन अधिनियम की धारा 35 में इस बात का उल्लेख नहीं है कि कब किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किया जा सकता है।
याचिका में कहा गया कि क्या महज प्राथमिकी दर्ज हो जाने पर या आतंकवाद से संबंधित मामले में दोषी ठहराए जाने पर व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किया जाएगा। महज सरकार की मान्यता के आधार पर किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करना मनमाना और ज्यादती है। याचिका में न्यायालय से गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की धारा 35 और 36 को असंवैधानिक और अमान्य घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है क्योंकि उनसे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।