By शुभा दुबे | Sep 20, 2021
हिन्दू धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि हर मनुष्य पर तीन तरह के ऋण हैं। यह हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण व पितृ ऋण। मान्यता है कि इन तीनों में से पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक है। क्योंकि जिन माता पिता ने हमारी आयु, आरोग्यता तथा सुख सौभाग्य की अभिवृद्धि के लिए अनेक प्रयास किये, उनके ऋण से मुक्त नहीं होने पर हमारा जन्म लेना निरर्थक होता है। हर साल श्राद्ध पक्ष के दौरान पंद्रह दिन ऐसे आते हैं जब हम पितृ ऋण से मुक्त हो सकते हैं। पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए माता या पिता की मृत्यु वाली तिथि पर सर्वसुलभ जल, तिल, यव, कुश और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध सम्पन्न करने और गौ ग्रास देकर एक, तीन या पांच ब्राह्मणों को भोजन कराना होता है।
साल 2021 का श्राद्ध पक्ष कब से शुरू होकर कब तक है?
इस साल पितृ पक्ष 21 सितम्बर से शुरू होकर 6 अक्टूबर तक चलेगा। हालांकि 20 सितम्बर को ही श्राद्ध पक्ष शुरू हो जा रहा है लेकिन चूंकि इस दिन षोष्ठपदी पूर्णिमा का श्राद्ध है और पूर्णिमा के दिन अगस्त मुनि का तर्पण करके उनको ही जल दिया जाता है और उसके अगले दिन यानि प्रतिपदा तिथि से पितरों को जल दिया जाता है।
जिसके कोई पुत्र नहीं हो वह कैसे करे श्राद्ध?
इसके लिए हिन्दू पंचांग के अनुसार जिस मास की तिथि को माता या पिता की मृत्यु हुई हो, उस तिथि को श्राद्ध आदि करने के अलावा आश्विन कृष्ण पक्ष में उसी तिथि को श्राद्ध, तर्पण, गौ ग्रास और ब्राह्मणों को भोजन कराना आवश्यक है। इससे पितृगण प्रसन्न होते हैं और हमें सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जिस स्त्री के कोई पुत्र न हो, वह स्वयं ही अपने पति का श्राद्ध कर सकती है। यदि भाई नहीं हो तो लड़की अपने माता पिता का श्राद्ध अपने बेटे से करा सकती है यदि लड़की अविवाहित है तो वह खुद भी अपने माता पिता का श्राद्ध कर सकती है। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से प्रारम्भ करके आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिन तक पितरों को तर्पण और विशेष तिथि को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। इस प्रकार करने से यथोचित रूप में पितृ व्रत पूर्ण होता है।
श्राद्ध पक्ष के बारे में मान्यता क्या है?
इन दिनों के बारे में मान्यता है कि पूर्वज श्राद्ध पक्ष के दौरान अपने परिवारों में आते हैं और इस दौरान परिजनों द्वारा उनकी मुक्ति के लिए जो कर्म किया जाता है उसे श्राद्ध कहा जाता है। जिन परिवारों को अपने पितरों की तिथि याद नहीं रहती है उनका श्राद्ध अमावस्या को कर देने से पितर संतुष्ट हो जाते हैं। इस दिन शाम को दीपक जलाकर पूड़ी पकवान आदि खाद्य पदार्थ दरवाजे पर रखे जाते हैं। जिसका अर्थ है कि जाते समय पितर भूखे न जायें। इसी तरह दीपक जलाने का आशय उनके मार्ग को आलोकित करना है। कुछ लोग कौओं, कुत्तों और गायों के लिए भी भोजन का अंश निकालते हैं। मान्यता है कि कुत्ता और कौवा यम के नजदीकी हैं और गाय वैतरणी पार कराती है। जो लोग जीवन रहते माता या पिता की सेवा नहीं कर पाते, यदि वह चाहें तो अपने पूर्वजों को श्राद्ध कर्म पूरी श्रद्धा के साथ करके प्रसन्न कर सकते हैं।
सभी गलतियों के लिए पूर्वजों से श्राद्ध पक्ष में मांग सकते हैं माफी
वेदों में कहा गया है कि सावन की पूर्णिमा से ही पितर मृत्यु लोक में आ जाते हैं और कुशा की नोकों पर विराजमान हो जाते हैं। पितृ पक्ष में हम जो भी पितरों के नाम का निकालते हैं, उसे वह सूक्ष्म रूप में आकर ग्रहण करते हैं। वेदों के अनुसार, मनुष्यों के पास यह एक मौका होता है कि यदि उनसे अपने पूर्वजों के प्रति कोई गलती हुई हो तो वह इस दौरान उसके लिए क्षमा मांग लें। पितर भी इस दौरान अपने बच्चों की सभी गलतियों को माफ कर देते हैं और उन्हें सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। श्राद्ध पक्ष से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।
श्राद्ध पक्ष 2021 की तिथियां
पूर्णिमा श्राद्ध– 20 सितंबर
प्रतिपदा श्राद्ध– 21 सितंबर
द्वितीया श्राद्ध– 22 सितंबर
तृतीया श्राद्ध– 23 सितंबर
चतुर्थी श्राद्ध– 24 सितंबर
पंचमी श्राद्ध– 25 सितंबर
षष्ठी श्राद्ध– 27 सितंबर
सप्तमी श्राद्ध– 28 सितंबर
अष्टमी श्राद्ध- 29 सितंबर
नवमी श्राद्ध– 30 सितंबर
दशमी श्राद्ध– 1 अक्टूबर
एकादशी श्राद्ध– 2 अक्टूबर
द्वादशी श्राद्ध- 3 अक्टूबर
त्रयोदशी श्राद्ध– 4 अक्टूबर
चतुर्दशी श्राद्ध- 5 अक्टूबर
अमावस्या श्राद्ध- 6 अक्टूबर
-शुभा दुबे