बीते दिनों नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए देश में लागू हो गया है। इस कानून की प्रतीक्षा लंबे समय से थी। 2019 में मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम संसद से पास किया था। जनवरी 2020 में राष्ट्रपति की मुहर लगने के साथ यह कानून अस्तित्व में आ गया था। सीएए को लेकर देश भर में विरोध-प्रदर्शन हुआ था। केंद्र सरकार ने देशभर में एनआरसी लागू करने की बात कही थी। एनआरसी के तहत भारत के नागरिकों का वैध दस्तावेज के आधार पर रजिस्ट्रेशन होना था। सीएए के साथ एनआरसी को मुसलमानों की नागरिकता खत्म करने के रूप में देखा गया था।
इस कानून को लागू किए जाने को लेकर एक तरफ खुशी का माहौल है तो दूसरी ओर विरोध के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं। खुशी उन लोगों को है जो बरसों से भारत की नागरिकता पाने का इंतजार कर रहे थे। इस कानून के लागू होने के बाद उनकी दशकों पुरानी मांग पूरी होने जा रही है। विरोध करने वाली जमात में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले राजनीतिक दल और स्वयंसेवी संगठन हैं। राजनीतिक दल व संगठन इसे पूर्व की भांति तरह अल्पसंख्यक विरोधी बता रहे हैं, वहीं इसे राजनीतिक दांव भी बता रहे हैं।
सीएए लागू होने के बाद विपक्षी दल इस कानून को लेकर देशवासियों को खासकर मुस्लिम समुदाय को भ्रमित कर रहे हैं। असल में, आजादी के बाद से ही अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों की समूची मानसिकता राजनीतिक दलों और उनके संरक्षक बनने का दावा करने वाले स्वयंसेवी संगठनों के ही समझ के अनुसार चलती रही है। सीएए के खिलाफ उठे देशव्यापी विवाद को भी इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। विपक्ष अपने बयानों के माध्यम से मुस्लिम समुदाय को यह संदेश दे रहा है कि इस कानून से उनकी नागरिकता संकट में पड़ जाएगी। सरकार और जिम्मेदार पदों पर आसीन लोग इस कानून से जुड़ी तमाम आशंकाओं को दूर कर रहे हैं। लेकिन, विपक्ष मुस्लिम समुदाय को गलत जानकारी देकर उपद्रव और हिंसक प्रदर्शनों के लिए परोक्ष रूप से उकसाता दिखाई दे रहा है। 2020 में विपक्ष ने परोक्ष रूप से कानून के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों और उपद्रव में सहायता की थी। ये खुला तथ्य है।
नागरिकता संशोधन नियम लागू होने के बाद अब पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आए थे, उन्हें भारतीय नागरिकता बिना वैध पासपोर्ट और भारत के वीजा के बिना मिल सकती है। दरअसल, ये लोग उन देशों में अल्पसंख्यक हैं। जाने किस त्रास या संकट में उन्हें उन देशों को छोड़ कर आना पड़ा। यहां के नागरिक न होते हुए भी दिक्कतों, मुसीबतों को गले लगाकर यहां जीवन बिताना पड़ रहा है। इसलिए इन सबको नागरिकता देकर यहां यानी भारत में सम्मान दिए जाने के इरादे से यह कानून लाया गया है। ऐसे में अब प्रश्न उठता है कि यह कानून भलाई के रूप में सामने लाया जा रहा है तो विपक्ष इसका विरोध क्यों कर रहा है?
विपक्ष का कहना है कि इस कानून में खासतौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया है। उनका तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो समानता के अधिकार की बात करता है। इस कानून में इन तीन देशों से आए मुसलमानों को नागरिकता देने से बाहर रखा गया है। कई आलोचकों का मानना है कि इस कानून से मुसलमानों से भेदभाव हो रहा है और ये भारत में समानता की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन करता है। जहां तक विपक्ष के विरोध का सवाल है उसका कहना है कि इस कानून में मुस्लिमों को वंचित क्यों रखा गया? यह समानता के कानून का उपहास उड़ाने की तरह है।
सरकार का कहना है कि जिन देशों के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया जा रहा है, वहां मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं, बल्कि बहुसंख्यक हैं। इसलिए उन्हें इस देश में यानी भारत में नागरिकता देने का कोई मतलब नहीं है। वो उनके देश हैं, वे वहां खुशी से रहें। भारत सरकार वंचितों की मदद करना चाहती है, इसलिए इन तीनों देशों के वे गैर मुस्लिम नागरिक जो वर्षों पहले यहां आ गए थे उन्हें सम्मान दिया जा रहा है। इसमें गलत क्या है? लेकिन अब विपक्ष के इस विरोध की सच्चाई और इसके पीछे छिपी कुत्सित इरादे देशवासियों को समझ आने लगे हैं।
यह कानून किसी की नागरिकता का हनन नहीं कर रहा बल्कि वंचितों को कानूनन अधिकार दे रहा है। यह अधिनियम किसी को बुलाकर भी नागरिकता नहीं दे रहा बल्कि जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 तक भारत में प्रवेश कर लिया वे ही भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकेंगे। भारत के मुस्लिमों या किसी भी धर्म और समुदाय के लोगों की नागरिकता को इस कानून से कोई खतरा नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा गृह मंत्री अमित शाह समेत तमाम बड़े मंत्री और जिम्मेदार लोग इस बात को कई बार कह चुके हैं कि सीएए नागरिकता देने का कानून है, किसी की नागरिकता छीनने का नहीं।
असल में, मोदी सरकार के दस सालों के कार्यकाल में देष में बड़े परिवर्तन और काम हुए हैं। देश की जनता का भरोसा मोदी की गारंटी पर है। दस साल के कार्यकाल के बाद भी पीएम मोदी की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। मोदी सरकार की लोकप्रियता और देशवासियों के उसके प्रति विश्वास से विपक्ष में बेचैनी का माहौल है। ऐसे में कुंठित और मुद्दा विहीन विपक्ष जात पात की राजनीति और मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा किसी मुद्दे की तलाश में रहता है।
चार साल पहले सीएए कानून बनने के बाद पर्दे के पीछे रहकर विपक्ष दलों ने मुस्लिम समुदाय को भ्रमित कर भड़काया था। नतीजतन देष में अशांति और भय का माहौल बना। हिंसक प्रदर्शनों में जान माल का नुकसान हुआ। आज भी विपक्ष चार साल पहले वाला माहौल बनाना चाहता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बार-बार कह रही हैं कि वे पश्चिम बंगाल में सीएए को लागू नहीं होने देंगी। हालांकि संसद के पारित कानून को लागू न करने देना अवैधानिक ही माना जाएगा। आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल सीएए के मुद्दे पर लगातार विभाजनकारी बयानबाजी कर रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के अलावा कांग्रेस, सपा, राजद, वाम दल तथा मुस्लिम तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों के पेट में मरोड़ उठ रहा है।
देश में शरणार्थियों की संख्या की बात करें एक रिपोर्ट के अनुसार 199,931 हैं। यह आंकड़ा 2014 तक का है। 2022 की बात करें तो देश में 242,835.00 शरणार्थी हैं। लेकिन जो 2014 तक भारत आए थे सिर्फ उन्हें ही नागरिकता देने का प्रावधान है। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने दिसंबर 2021 में राज्यसभा में बताया था कि वर्ष 2018, 2019, 2020 और 2021 के दौरान पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए कुल 3,117 अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता दी गई। हालांकि आवेदन 8,244 मिले थे। वहीं गृह मंत्रालय की 2021-22 की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल-दिसंबर 2021 में कुल 1,414 विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई।
पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के जो अल्पसंख्यक जान बचाकर भारत आने में सफल रहे थे वे यहां की नागरिकता पाने का इंतजार बरसों से कर रहे हैं। उनकी संख्या अच्छी-खासी है। वे अल्पसंख्यक होने के कारण ही इन तीनों देशों में प्रताड़ित किए गए। उनके पास प्रताड़ना से बचने के लिए भारत आने के अलावा और कोई उपाय नहीं था। विपक्ष को इस मुद्दे पर राजनीति से बाज आना चाहिए। वहीं मुस्लिम समुदाय को भी जमीनी हकीकत को समझना चाहिए। राजनीतिक दलों के बहकावे में आकर कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए जो देश और संविधान के खिलाफ हो। आखिरकार यहां सवाल उन हजारों लोगों की जिंदगियों का है जो भारत की नागरिकता लेकर अमन चैन से अपनी जिंदगी बसर करने की ख्वाहिश रखते हैं।
- डॉ. आशीष वशिष्ठ
(लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं)