By अनन्या मिश्रा | Apr 25, 2023
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही दिन बाकी है। मध्य कर्नाटक के गडग जिले का शिरहट्टी, प्रदेश के 224 विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। इस सीट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस क्षेत्र के वोटर 'चुनावी मिजाज' भलीभांति समझते हैं। बता दें कि यहां के वोटर जिस दल की जीत सुनिश्चित करती है। वही दल राज्य में सत्ता की बागडोर संभालता है।
राज्य के पिछले 12 विधानसभा चुनावों के नतीजे तो यही कहते हैं। आजादी के बाद हुए 14 चुनावों में से सिर्फ 2 मौके ऐसे रहे। जब शिरहट्टी में जीत किसी एक दल के उम्मीदवार की हुई और राज्य में सरकार अन्य दल की बनी।
यह दोनों चुनाव तब हुए थे, जब कर्नाटक को मौसूर कहा जाता था। साल 1973 में इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के तहत 10 मई को मतदान होने हैं। ऐसे में इस बार भी लोगों की निगाहें इस सीट पर टिकी हुई हैं। ऐसे में लोगों के जहन में यह सवाल भी आ रहा है कि इस विधानसभा क्षेत्र के लोग क्या एक बार फिर से खुद को 'मौसम विज्ञानी' साबित कर पाएंगे। हालांकि 13 मई को चुनाव परिणाम के साथ ही यह स्पष्ट हो पाएगा।
जनता दल-कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुकाबला
इस बार शिरहट्टी सीट पर भाजपा, कांग्रेस और जेडीएस के उम्मीदवारों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। कांग्रेस की सुजाता निंगप्पा डोड्डामणनि, बीजेपी से चंद्रु लमानी और जनता दल (सेक्युलर) के हनुमंथप्पा नायक चुनावी मैदान में उतरे हैं। बता दें कि बीजेपी ने पिछले विधानसभा में जीत दर्ज करने वाले रमप्पा लमानी का टिकट काट दिया। वहीं सरकारी चिकित्सक चंद्रू लमानी पर पार्टी ने दांव लगाया है।
कांग्रेस की सरकार
राज्य के पहले विधानसभा चुनाव साल 1957 में शिरहट्टी से कांग्रेस की जीत हुई। तब राज्य में कांग्रेस की सरकार ने सत्ता संभाली। हालांकि इसके बाद लगातार दो चुनावों में ऐसा हाल देखने को नहीं मिला। साल 1962 और 1967 के निधानसभा चुनाव में इस सीट से स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। लेकि
बीजेपी का समीकरण
राज्य विधानसभा के चुनावों में अब तक यहां से जीत दर्ज करने वाली पार्टी ने ही राज्य में सरकार बनाई। साल 2018 के चुनावों में शिरहट्टी से बीजेपी के रामप्पा ने कांग्रेस के डी आर शिडलिगप्पा को भारी मतों से हराया था। जिसके बाद बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इस दौरान बी एस येदियुरप्पा के हाथों में सत्ता की कमान गई थी। लेकिन 8 सीटें कम करने के कारण सरकार बहुमत नहीं साबित कर पाई, जिसके कारण येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा।
जनता दल
इसके बाद कांग्रेस की मदद से जेडीएक के एच डी कुमारस्वामी राज्य के मुख्यमंत्री बने। हालांकि कांग्रेस के विधायकों के पाला बदलने के कारण 14 महीने के अंदर ही कुमारस्वामी को भी सत्ता से हाथ धोना पड़ा। कई दिनों तक चले खींच-तान के बाद राज्य में फिर से येदियुरप्पा चौथी बार सीएम बनें।
त्रिशंकु सरकार
बता दें कि इसके पहले हुए साल 1983 के विधानसभा चुनाव इस सीट से पहली बार किसी निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली थी। कांग्रेस के तत्कालीन विधायक यू जी फकीरप्पा को टिकट नहीं दिया गया था। जिसके बाद वह बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे और जीत भी हासिल की थी। तब राज्य में विधानसभा त्रिशंकु बनी। उस दौरान जनता पार्टी ने 95 तो कांग्रेस ने 82 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं फकीरप्पा ने जनता दल का समर्थन किया और जनता दल की पार्टी ने सरकार बनाया। तब पहली बार हेगड़े राज्य के सीएम बने थे।