By अनुराग गुप्ता | Dec 21, 2020
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का आंदोलन पिछले 24 दिनों से जारी है। देश के अलग-अलग हिस्सों में श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजना हो रहा है। जबकि, भाजपा नेता और कार्यकर्ता कृषि कानूनों के समर्थन में अपने अभियान को गति प्रदान कर रहे हैं। पार्टी नेता और सांसद अलग-अलग इलाकों में जाकर लोगों को समझाने का प्रयास कर रहे हैं और इस आंदोलन पंजाब का आंदोलन भी बताए जाने की कोशिश हो रही है। इसके अतिरिक्त भाजपा वाले कृषि सम्मेलनों का भी आयोजन कर रहे हैं और विपक्षी पार्टियों पर निशाना साध रहे। लेकिन भाजपा यह भूल गई कि इस कृषि कानूनों की वजह से उनके घटक दल एनडीए से कई पार्टियां अलग हो गई हैं और कुछ जाने की फिराक में बैठी हैं।
शिरोमणि अकाली दल ने छोड़ा साथ
कृषि कानूनों का विरोध करते हुए एनडीए के सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल अलग हो गई। शिअद की आंतरिक बैठक के बाद पार्टी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने एनडीए से अलग होने की घोषणा कर दी थी। इस दौरान उन्होंने कहा था कि सरकार ने किसानों की भावनाओं का आदर करने के बारे में शिअद की बात नहीं सुनी। आने वाले समय में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में शिअद किसानों को नाराज करने के बारे में सोच भी नहीं सकती है तभी तो शिअद ने कृषि कानूनों के खिलाफ एनडीए से अलग होने का फैसला किया।
हनुमान बेनीवाल भी हुए अलग
एनडीए के सहयोगी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने किसान आंदोलन के समर्थन में संसद की तीन समितियों के सदस्य पद से त्याग पत्र दे दिया। त्याग पत्र देने बाद बेनीवाल ने 26 दिसंबर को दो लाख किसानों के साथ दिल्ली की ओर कूच करने का फैसला किया और कहा कि एनडीए में बने रहने के बारे में उसी दिन फैसला किया जाएगा।
जाट नेता और नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल 26 दिसंबर को ही एनडीए से बाहर निकलने के विषय पर फैसला कर सकते हैं।
चौटाला के पास खट्टर की चाभी !
केंद्र सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच जारी गतिरोध को समाप्त करने के इरादे से जननायक जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला ने हालही में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की थी और उम्मीद जताई थी कि केंद्र सरकार और किसानों के बीच अगले दौर की बातचीत होगी। हालांकि, नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि किसानों के साथ बातचीत जारी है और जल्द ही समस्या का समाधान निकाला जाएगा। लेकिन सरकार कृषि कानूनों को वापस लेने के मूड में बिल्कुल भी नहीं है।
शिअद और हनुमान बेनीवाल ने एनडीए से अलग हो जाने के बाद किसानों का सबसे ज्यादा दवाब दुष्यंत चौटाला की तरफ पड़ सकता है क्योंकि दुष्यंत चौटाला खुद को किसान नेता बताते रहे हैं और अगर दुष्यंत चौटाला कृषि कानूनों के विरोध में एनडीए से अलग हो गए तो केंद्र सरकार को तगड़ा झटका लगेगा और हरियाणा की मनोहरलाल खट्टर सरकार भी गिर सकती है। जबकि शिअद और हनुमान बेनीवाल के एनडीए से अलग होने से सरकार को कुछ खास नुकसान नहीं हुआ