By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Feb 04, 2021
नयीदिल्ली। संसद की एक समिति ने करीब सवासौ वर्ष पुराने महामारी अधिनियम 1897 की समीक्षा और संशोधित करने की सिफारिश करते हुए कहा कि इसे भविष्य में महामारियों के अप्रत्याशित हमले से उत्पन्न चुनौतियों का मुकाबला करने में पूर्ण रूप से समर्थ बनाया जाना चाहिए। संसद के दोनों सदनों में पेश ‘ कोविड -19 महामारी का प्रबंधन और संबंधित मुद्दे ’पर गृहमंत्रालय संबंधी संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है , ‘‘यद्यपि महामारी अधिनियम 1997के उपबंधों से कोविड -19 के प्रबंधन में सहायता मिली परंतु यह अधिनियम पुराना पड़ चुका है क्योंकि यह 1918 की स्पैनिशफ्लू से भी का फी पहले औपनिवेशिक युग में बनाया गया था।’’
समिति ने सिफारिश की कि महामारी अधिनियम 1897 की समीक्षा तथा इसे अद्यतन और संशोधित किया जाना चाहिए ताकि यह भविष्य में महामारियों अप्रत्याशित हमले से उत्पन्न चुनौतियों का मुकाबला करने में पूर्ण रूप से सुसज्जित हो। रिपोर्ट के अनुसार, समिति ने यह भी कहा कि कोविड-19 महामारी का प्रकोप लंबे समय तक रह सकता है। इस महामारी से निपटने के बारे में परिसंकल्पना तैयार कर ली गई है और इसे आपदा प्रबंधन अधिनियम (एनडीएमए) 2005 और महामारी अधिनियम 1897 के उपबंधों के अधीन निर्देशित किया जा रहा है। समिति ने कहा कि महामारी/संक्रमण रोग मूल रूप से आपदा से अलग होते हैं क्योंकि आपदाएं कुछ समय के लिएहर साल आती हैं जबकि महामारियां दशकों बाद या सदी में एक बार ही आती हैं।
इसमें कहा गया है कि एनडीएमए के उपबंधों से कोविड-19 महामारी के दौरान समय रहते हस्तक्षेप और कार्रवाई करने में सहायता मिली, फिर भी यह भविष्य में महमारियों/संक्रामक रोग से निपटने के लिये नहीं बना है। समिति ने यह भी कहा कि ऐसा कोई तरीका नहीं है कि भविष्य में इतने बड़े पैमाने की महामारियों या इससे भी बुरी बीमारियों को फैलाने वाले नए एजेंटों (कारकों) की विशेषताओं के बारे में कोई भविष्यवाणी की जा सके। समिति ने ध्यान दिलाया कि गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के उपबंधों की समीक्षा की जा रही है।