संसद ने कामकाज का नया रिकॉर्ड बना कर जन-विश्वास में अभूतपूर्व वृद्धि की

By प्रभात झा | Aug 10, 2019

गत दो दशकों से देश के दोनों सदनों और राज्य के विधानसभाओं में सत्रों की अवधि को लेकर सदैव चर्चा रही। एक चलन-सा बन गया था कि सत्र ही कम दिनों का बुलाया जाए। जिससे हो हल्ला न हो और हो भी तो कम समय में विधायिका या संसदीय कार्य तत्काल पूरा कर लिया जाए। आम नागरिकों में भी इस बात की चर्चा चल पड़ी थी। अनेक आलेख भी समाचार पत्रों में आते रहे। लोकतंत्र के इन मंदिरों में लोकतंत्र तभी जीवित रहेगा, जब तक यहां पक्ष-विपक्ष दोनों के बीच देश और राज्यों के प्रमुख विषयों पर खुले मन से राष्ट्र या राज्य हित में चर्चा हो। इस श्रृंखला में आई टूटन से देश चिंतित हो रहा था। उम्मीदों पर ही आकाश टिका हुआ है।

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पिछले यानी 17वीं लोकसभा के गठन के बाद लोकसभा और राज्यसभा में जो कार्य हुए, वे देश के नागरिकों में विश्वास ही नहीं बल्कि लोकतंत्र की भावना को मजबूत करता है। वर्षों से लंबित बिलों का पारित होना स्वयं यह दर्शाता है कि देश का मन-मस्तिष्क बदल रहा है। लोगों ने अब अपने अलावा देश के बारे में भी सोचना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि 17वीं लोकसभा और राज्यसभा के (37) सैंतीस दिनों की कुल बैठकों में 32 बिल लोकसभा और 37 बिल राज्य सभा में चर्चा के बाद पारित हुए।

 

17 जून 2019 से 6 अगस्त 2019 तक चले इस सत्र में कुल 37 बैठकें हुईं और करीब 280 घंटे तक कार्यवाही चली। कुल 37 बैठकों में 36 बिल पारित हुए तो शून्यकाल के दौरान पहली बार 1000 से अधिक मुद्दे उठाये गए। 1952 के बाद यह पहला मौक़ा है जब 37 बैठकों के बावजूद एक दिन भी कार्यवाही बाधित नहीं रही। 1952 के बाद पहली बार है जब सदन का व्यवधान शून्य रहा और इसमें सदन के सदस्यों की अहम भूमिका रही है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर 13.47 घंटे तक चर्चा हुई। 183 तारांकित प्रश्न पूछे गए, 1086 लोकहित से जुड़े मुद्दे शून्यकाल के दौरान उठाये गए। इसमें भी सबसे अच्छी बात यह रही कि ज्यादा से ज्यादा नए सदस्यों को बोलने का मौका दिया गया। इस सत्र में शून्यकाल में 265 नए सदस्यों में से 229 सदस्यों को अपनी बात कहने का मौक़ा मिला। 46 नई महिला सांसदों में 42 को शून्यकाल के दौरान बोलने का मौक़ा मिला।

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लोकसभा में लगभग 137 प्रतिशत काम हुआ, जबकि राज्यसभा में 103 प्रतिशत काम हुआ। राज्यसभा का 249वां सत्र 27 बैठकों में 32 विधेयक पारित करा कर सम्पन्न हुआ। उच्च सदन में यह 17 साल में सबसे सफल सत्र रहा।

 

देश आश्चर्यचकित था, जब राज्यसभा में तीन-तलाक बिल पारित हुआ। लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था। लोकसभा में तो भाजपा और एनडीए की संख्या दो-तिहाई से अधिक है। वहां पर बिलों का पास होना लगभग तय ही होता है। पर राज्य सभा जहां भाजपा या एनडीए के पास अभी बहुमत नहीं है, से भी तीन तलाक बिल के पास हो जाने से, सभी हैरत में रह गए। स्वयं कांग्रेसी चक्कर में पड़ गए। वे यह मानकर चल रहे थे कि लोक सभा में इनका संख्याबल है पर राज्य सभा में तो बिल पास नहीं होने देंगे। पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा भारत के गृहमंत्री अमित शाह की कुशल रणनीति से राज्य सभा में भी विपक्ष 84 और सत्ता पक्ष 100 मत प्राप्त कर तीन तलाक विधेयक पर मंजूरी हासिल करने में सफल रहा तो सभी को लगा कि अब राज्य सभा में कांग्रेस और विपक्ष में कोई एकता नहीं है। तीन तलाक पर अच्छी बहस हुई। चर्चा के दौरान कुछ दलों ने बहिष्कार किया पर अधिकतर दलों ने मतदान किया।

    

राज्यसभा में कांग्रेस सहित विपक्ष की पोल तब खुली जब सूचना के अधिकार का बिल आया। इस बिल पर कांग्रेस ने विरोध जताया। उनका साथ कुछ विपक्षी दलों ने भी दिया। पर जब मत विभाजन हुआ तो एनडीए को 117 और कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दलों को 75 मत मिले। इस बिल के बाद भाजपा का राज्य सभा में हौसला बुलंद हो गया। भाजपा को यह विश्वास हो गया कि यदि अब कोई भी कठिन से कठिन बिल यदि देश हित में लाया जाएगा तो भाजपा मत विभाजन में जीत सकती है।

 

यही कारण था कि जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक को लेकर लाया गया। संकल्प सबसे पहले राज्य सभा में लाने का निर्णय प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने लिया। राज्यसभा और लोकसभा के सत्र को बढ़ाने की बात हो गई तो देशवासियों और मीडिया को लगा कि कोई महत्वपूर्ण बिल आएगा। लेकिन देश में किसी ने नहीं सोचा था कि धारा 370 और 35A को समाप्त करने वाला विधेयक लाया जाएगा। राज्य सभा का वह दिन 5 अगस्त था। जैसे ही भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर में 10 प्रतिशत आरक्षण और जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन का बिल प्रस्तुत किया, सत्ता पक्ष की बांछें खिल गईं। मेजों की थपथपाहट से निकले स्वर में ''भारत माता की जय'' का स्वर निकल रहा था। वहीं विपक्ष की ओर सन्नाटा खिंच गया था। सदन हत-प्रभ था। कांग्रेसी और टीएमसी सहित डीएमके और सपा ने विरोध के स्वर उठाये, पर लोकतंत्र के मंदिर में भारत माता की स्वर कहानियां जिस तरह से अमित शाह ने रखीं, वह साहसिक और ऐतिहासिक था। राज्यसभा में सभी ने बहस में भाग लिया। सभी के द्वारा उठाये गए एक-एक प्रश्नों का उत्तर अमित शाह ने दिया। इसी बीच प्रधानमंत्री आ गए। विपक्षियों ने मत विभाजन मांगा। मत विभाजन में कांग्रेस सहित विपक्षियों को मात्र 61 और भाजपा को 125 मत मिले। सदन के इस फैसले के साथ ही पूरा देश झूम उठा। सदन के भीतर भारत माता जिंदाबाद के नारे लगने लगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गृहमंत्री अमित शाह की पीठ ठोंकी। सदन में इतिहास रचते इस घटना को पूरे भारत ने देखा।

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स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार से संबंधित चार विधेयक- राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक 2019, होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संशोधन) विधेयक 2019, भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) विधेयक 2019 तथा दंत चिकित्सक (संशोधन) विधेयक 2019, दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिए गए। विशेष रूप से राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक 2019 चिकित्सा क्षेत्र में एक क्रांतिकारी सुधार है जो चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा व्‍यवसाय और चिकित्सा संस्थानों से संबंधित सभी पहलुओं के विकास और विनियमन के लिए एक राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के गठन तथा आयोग को सलाह देने और सिफारिश करने के लिए एक चिकित्सा सलाहकार परिषद के गठन का प्रावधान करता है।

 

देश में सामाजिक और लैंगिक न्याय प्रणाली को और मजबूती प्रदान करने के लिए भी कुछ विधेयकों को इस सत्र में पारित किया गया। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 पोर्नोग्राफी में बच्चे के चित्रण को अपराध घोषित करने के अलावा बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों के लिए ज्‍यादा कठोर सजा का प्रावधान करता है, जो बीस साल तक या कुछ मामलों में शेष जीवन के लिए कारावास तक बढ़ायी जा सकती है।

 

राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र को मजबूत बनाने और राष्ट्रीय सुरक्षा पहलुओं और मानवाधिकारों के बीच संतुलन कायम करने के लिए इस सत्र के दौरान राष्ट्रीय जांच एजेंसी (संशोधन) विधेयक 2019, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन विधेयक 2019 और मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2019 पारित किये गए हैं। 

 

इसके साथ ही वेतन अधिनियम 1936, न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948, बोनस भुगतान अधिनियम 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 को आपस में मिलाकर वेतन संहिता विधेयक, 2019 को कानून का रूप दिया गया है। उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019, पहले के कानून को रद्द करके और उपभोक्ता अधिकारों के प्रोत्‍साहन, संरक्षण और उन्हें लागू करने के लिए केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान करके उपभोक्ता संरक्षण तंत्र में आमूल-चूल परिवर्तन लाने का प्रावधान करता।

 

इसी तरह मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2019 का उद्देश्य सड़क सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को सुलझाना, नागरिकों को सहूलियत देना, सार्वजनिक परिवहन, स्वचालन एवं कंप्यूटरीकरण को सुदृढ़ करना, अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन पर जुर्माना राशि बढ़ाना और सड़क हादसों में घायलों की मदद करने वालों की सुरक्षा के लिए प्रावधान करना शामिल हैं।

 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के गतिशील नेतृत्‍व में संसदीय कार्य मंत्रालय के मंत्रियों द्वारा दोनों ही सदनों में उत्‍कृष्‍ट सामंजस्‍य स्‍थापित करने की बदौलत ही उपर्युक्‍त उल्‍लेखनीय नतीजे सामने आ पाए हैं। विपक्षी दलों के सदस्‍यों के सुझावों पर राज्‍यसभा में राष्‍ट्रीय चिकित्‍सा आयोग विधेयक 2019 और मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक 2019 पर विचार-विमर्श के दौरान संबंधित मंत्रालयों ने सुझावों को स्‍वीकार किया और उनसे संबंधित आधिकारिक संशोधन पेश किए गए, जो सदन के पटल पर राजनीतिक दलों के बीच समन्‍वय एवं सहयोग के सटीक उदाहरण हैं।

 

कांग्रेस द्वारा तीन तलाक और जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन, दोनों विधेयकों का विरोध करना उनकी नासमझी नहीं बल्कि उनके विवेक पर सवाल खड़ा करता है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने रश्मिरथी में लिखा है:-


जब नाश मनुज पर छाता है, 

पहले विवेक मर जाता है।

 

विचारों का विरोध सदैव जीवित रहना चाहिये। विचार की प्रतिबद्धता उतनी ही होनी चाहिए। कांग्रेस में उंगली पर गिनने वाले बचे हैं, जो प्रतिबद्धता से जुड़े हों। कांग्रेस परिवारधारा से इतनी जुड़ गई कि उसकी विचारधारा खो सी गई है।

          

पिछले पांच-छह वर्षों के दौरान राज्यसभादृलोकसभा चैनल को देखने के प्रति देश की जनता की रुचि बढ़ी है। इन दोनों चैनलों के माध्यम से देश के नेताओं, सांसदों का आकलन शुरू हुआ है। इसीलिए अब हर पार्टी के सांसदों, नेताओं को दोनों सदनों में सावधान रहना पड़ेगा।

 

70 साल देश की जनतांत्रिक राजनीति में युगांतकारी परिवर्तन हुए हैं। उसका ताजा उदाहरण 2019 का आम चुनाव रहा है। इस लोकसभा चुनाव में जनता स्वयं आगे आकर चुनाव लड़ी थी। जनता समझती है कि देश कहां सुरक्षित है, किसके हाथ में सुरक्षित है, किसे चुनना चाहिए। जनतंत्र की परीक्षा में जनता अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण हुई। अब देश के जनप्रतिनिधियों को भी अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण होते रहना चाहिए। अब देश में जहाँ दोनों सदनों पर पुन: देश का अटूट विश्वास जागेगा, वहीँ राज्यों के विधानसभाओं को काम चलाऊ सत्रों की बजाये उत्कृष्ट कार्य करने वाले अधिक दिनों का सत्र चलाना ही होगा। लोकतंत्र संवाद और बहस से मजबूत होता है न कि इससे भागने से।

 

-प्रभात झा 

सांसद (राज्य सभा)

एवं भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष

 

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