साक्षात्कारः अंडमान निकोबार के द्वीपों के नाम योद्धओं के नाम पर रखे जाने से खुश हैं परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव

By डॉ. रमेश ठाकुर | Jan 30, 2023

अंडमान एवं निकोबार के 21 द्वीपों का नामांकरण उन सभी 21 सैन्य योद्धाओं के नाम पर रखा गया है जिन्हें अभी तक सेना के सर्वोच्च सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से नवाजा गया है। हालांकि अधिकांश वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं। मात्र तीन योद्धा जीवित हैं उनमें एक कारगिल हीरो सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव हैं जिन्होंने 17 गोली खाकर भी दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती के मौके पर पोर्ट ब्लेयर में आयोजित विशेष समारोह में गृह मंत्री अमित शाह ने योगेंद्र सिंह यादव को आमंत्रित कर उनके नाम से भी एक द्वीप का नामकरण किया। इस गौरवपूर्ण क्षण को सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव ने कैसे महसूस किया, उसे डॉ. रमेश ठाकुर ने उनकी जुबानी से जानना चाहा। पेश हैं इस बातचीत के मुख्य अंश-


प्रश्नः कारगिल के हीरो हैं आप, अब आपके साथ एक अध्याय और जुड़ गया?


उत्तर- ये बड़ा सम्मान है हमारे लिए। निश्चित रूप से मेरे नाम का वो द्वीप खुद मुझे जीते जी शौर्यता, साहस और पराक्रम का अहसास दिलाता रहेगा। एक सैनिक को और क्या चाहिए, यही तो चाहिए होता है। सैनिक के लिए उसका सम्मान और धरती मां की रक्षा सदैव सर्वोपरि होती है। एक सैनिक की दो माएं होती हैं, पहली जो जन्म देती हैं और दूसरी वो धरती जिस पर ताउम्र रहता है। हाल ही में मेरी जन्म देने वाली मां का निधन हुआ है, लेकिन मैं खुद का अनाथ फिर भी नहीं मानता क्योंकि एक मां मेरे साथ है और वो है धरती। दोनों के हम कर्जदार हैं। उन्हें कुछ भी दे दें, तब भी कर्ज नहीं चुका सकते।


प्रश्नः एक द्वीप का नामकरण आपके नाम से किया जाएगा, इसकी सूचना कैसे पहुंची आप तक?


उत्तर- सेना की ओर से मुझे सूचित किया गया। संदेश नवंबर-2022 में मिल गया था। पहले कार्यक्रम दिसबंर में प्रस्तावित था, लेकिन कुछ कारणों से आगे बढ़ाया गया। सरकार ने सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर ये कार्यक्रम रखा, जो वास्तव में काबिलेतारीफ है। बोस ने यहीं से आजादी की अलख जगाई थी और विजय का झंड़ा बुंलद किया था। ये कार्यक्रम विशेष अवसरों पर करने से उनकी खुबसूरती और बढ़ जाती है।


प्रश्नः इससे वास्तविक संदेश देने का क्या मकसद है?


उत्तर- ये काम मकसद से नहीं, सच्ची भावनाओं से किए जाते हैं। इन द्वीपों में जो नाम गोदे गए हैं वो हमारे युवाओं को देशभक्ति की प्रेरणा देने का संदेश देंगे और उनकी स्मृतियां समूचे देश को एक सूत्र में जोड़े रखने का काम करेंगी। मुल्क का हर वो सैनिक जो भारत मां की रक्षा में तत्पर है, उनमें देशभक्ति की भावना जागेगी। सरकार का ये कदम निःसंदेह भारतीय जवानों के सम्मान में उठाया गया बेहद सराहनीय कदम है। साथ ही द्वीपों का नामकरण राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीर सपूतों को सच्ची श्रद्धांजलि भी है।

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प्रश्नः क्या परमवीर चक्र विजेताओं की शौर्यता का वर्णन किया जाएगा इन द्वीपों के जरिए?


उत्तर- बिल्कुल। परमवीर चक्र विजेताओं की कष्टपूर्ण यात्रा, उनके अदम्य कौशल, साहसिक शौर्य कार्य और विकट विषम परिस्थितियों में मुल्क की रक्षा के बंधन को निभाने का इतिहास बताया जाएगा। युवाओं को इन योद्धाओं के संबंध में जानने को मिलेगा कि उन्होंने किन जज्बों के साथ देश की आन, बान और शान की रक्षा की। वहां एक म्यूजियम भी बनेगा और एक लाइट एंड साउंड शो भी स्थापित होगा जिनमें उनकी पूर्व स्मृतियों से सबको रूबरू करवाया करेगा। युद्ध में दुश्मनों द्वारा दी यातनाओं को कैसे क्रांतिवीरों ने सहन किया था। मरते-मरते भी उन्होंने कैसे दुश्मनों को पराजित किया, उन सभी अनकहे किस्सों का दीदार लोग यहां आकर कर सकेंगे।


प्रश्नः आपको ‘परमवीर चक्र सम्मान’ कैसे मिला?


उत्तर- कहानी थोड़ी फिल्मी और सस्पेंस से भरी है। कारगिल युद्ध में मैं जब गंभीर रूप से घायल हुआ, उसके बाद मुझे आर्मी अस्पताल दिल्ली लाया गया। करीब 16 महीने तक इलाज चला, तभी कारगिल युद्ध की लड़ाई के लिए परमवीर चक्र देने की घोषणा हुई, मेरी ही बटालियन में एक और योगेंद्र सिंह यादव नाम के सैनिक थे जो वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। मीडिया में उनका फोटो दिखाया गया। मुझे भी अस्पताल में किसी ने बताया कि आपके साथी को सरकार ने परमवीर चक्र देने की घोषण की है। मुझे बहुत खुशी हुई, लेकिन थोड़ी हलचल अजीब तरह से होने लगी। आर्मी के कई लोग मेरे पास आए, पिताजी, माता का नाम पूछने लगे, घर-गांव का पता जानने लगे। ये जांच पड़ताल एक घंटे में बहुत तेजी से कई दौरों से गुजरी, तभी घंटे भर बाद मुझे बताया गया कि अच्छे कपड़े पहनकर बैठ जाओ, आर्मी चीफ आ रहे हैं, आपसे मिलेंगे। करीब आधे घंटे बाद आर्मी चीफ आए, उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया, पास बैठकर बोले बधाई हो योगेंद्र। मैं तब तक समझ नहीं पाया, डरते हुए पलट कर पूछा सर किस बात की बधाई, कमरे में लगी टीवी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, ये टीवी किसके लिए लगी है, देखते नहीं, तभी उन्होंने बताया कि आपको परमवीर चक्र सम्मान देने की घोषणा हुई है। कुछ मिस्टेक के चलते गड़गड़ी हुई थी। वरना, घोषणा पूर्व में भी मेरे नाम की ही हुई थी।


प्रश्नः कारगिल में आपके शौर्य की गाथा तो बहुत अद्भुत है, थोड़ा विस्तार से बताएं?


उत्तर- उन लम्हों को याद कर रौंगटे आज भी खड़े हो जाते हैं। बर्फ से ढंकी करीब 15-20 हजार फीट गंगनचुंबी टाइगर हिल की पहाड़ी पर मैं अपने 21 सैनिक साथियों के साथ माइनस-30 डिग्री तापमान में चढ़ रहा था, तभी दूसरी तरफ से घात लगाए बैठे दुश्मनों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी, मात्र कुछ सेकेण्ड में मेरे 14 साथी शहीद हो गए, बाकी साथियों के साथ मैंने ऊंची पहाड़ी पर चढ़कर पाकिस्तानी बंकरों को तहस-नहस किया। तब तक मेरे बाकी साथी भी वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। मेरे सीने में, हाथ-पांव और बाकी हिस्सों में करीब 17 गोलियां घुस चुकी थीं, मुझे मरा समझकर पाकिस्तानी आर्मी जाने लगी। उनके पैरों की आहट ने मुझमें हल्की-हल्की चेतना जगाई और पास में पड़ा ग्रेनेड मैंने उन पर फेंक दिया, वो सभी ढेर हो गए, फिर मैं पास में बह रहे नाले में बहकर अपने साथियों तक पहुंचा।

  

प्रश्नः आप देश की धरोहर हैं, केंद्र सरकार को आप जैसों को राज्यसभा या गवर्नर जैसे पदों पर सुशोभित करना चाहिए?


उत्तर- सैनिक अपने लिए कभी कुछ नहीं मांगता। इस तरह के निर्णय सरकारों पर निर्भर करते हैं। हम अपना पूरा जीवन देश को समर्पित करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। मुझे भी अगर सरकार कोई जिम्मेदारी देगी या उस लायक समझेगी, तो मैं खुशनसीब होउंगा।


-जैसे सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव (PVC) ने डॉ. रमेश ठाकुर से कहा।

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