Paramahansa Yogananda Birth Anniversary: परमहंस योगानंद ने पूरी दुनिया को भारतीय योग-दर्शन से कराया रूबरू, ऐसे बनें फॉदर ऑफ योग

By अनन्या मिश्रा | Jan 05, 2024

'योग के जनक' के नाम से विख्यात श्री श्री परमहंस योगानंद जी का जन्म 5 जनवरी को हुआ था। योग की महत्ता से पूरी दुनिया को परिचित कराने में परमहंस योगानंद का अहम योगदान रहा है। उनको पश्चिमी देशों में 'फादर ऑफ योगा' कहा जाता है। परमहंस योगानंद के प्रयासों और कार्यो के जरिए ही पूरे संसार में 'क्रिया योग' फैल चुकी है। उनकी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक शिक्षाओं में समानता लाना और देश की वैज्ञानिक ध्यान प्रणालियों को व्यवस्थित रूप से लोगों के लिए उपलब्ध कराना रहा। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर परमहंस योगानंद के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में 5 जनवरी 1893 को परमहंस योगानंद का जन्म हुआ था। बता दें कि उनके पिता भगवती चरण घोष गोरखपुर रेलवे में अधिकारी थे। परमहंस योगानंद का असली नाम मुकुंदलाल घोष था। बाद वह में परमहंस योगानंद के नाम से पूरी दुनिया में विख्यात हुए। आज का दिन योगदा संन्यासी के लिए काफी महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। क्योंकि इसी दिन उनके गुरु परमहंस योगानंद का प्रादुर्भाव हुआ था। 

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सेल्फ-रियलाइजेशन फेलोशिप

आपको बात दें कि साल 1920 में पहली बार परमहंस योगानंद बॉस्टन में आयोजित धार्मिक उदारवादियों के एक अंतरराष्ट्रीय सभा में भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे थे। वहीं इसी साल भारत देश के प्राचीन दर्शन और ध्यान-विज्ञान पर शिक्षाओं को प्रसारित करने के लिए उन्होंने सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप की स्थापना की थी। फिर साल1925 में वह लॉस एंजेलिस में रहने लगें। इस दौरान उन्होंने लॉस एंजेलिस में अपने संगठन के लिए एक अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय स्थापित किया। विज्ञान, कला और व्यवसाय क्षेत्र की कई प्रमुख हस्तियां परमहंस योगानंद के शिष्य बन गए। 


योग प्रशिक्षण

वहीं साल 1917 में उन्होंने आदर्श जीवन विद्यालय की स्थापना के साथ अपना कार्य आरंभ किया। इस विद्यालय में लोगों को आधुनिक शैक्षणिक तरीकों से योग प्रशिक्षण और आध्यात्मिक आदर्श में जोड़ने का काम किया गया। भारत सरकार ने साल 1977 में पहली बार और साल 2017 में दूसरी बार परमहंस योगानंद और उनकी संस्था के सम्मान में डाक टिकट जारी किए। 


मृत्यु

परमहंस योगानंद को अपनी मृत्यु का एहसास पहले ही हो गया था। बताया जाता है कि लॉस एंजिलिस में 7 मार्च 1952 को उन्होंने महासमाधि में प्रवेश किया। महासमाधि लेने के करीब 20 दिनों बाद भी परमहंस योगानंद की त्वचा का न तो रंग बदला और न ही उनके शरीर में किसी तरह का बदलाव देखने को मिला। परमहंस योगानंद के मुख की आभा उनकी मृत्यु के 20 दिन बाद तक भी ज्यों की त्यों बनी रही। ऐसा अद्भुत वाकया इससे पहले कभी नहीं देखने को मिला।

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