हिन्दी कविता के छायावादी दौर में सुमित्रा नंदन पंत एक ऐसे कवि थे जो अपने प्रकृति प्रेम के कारण काफी विख्यात हुए और उनकी रचनाओं में प्रकृति की विभिन्न मनोरम छवियां विशेष तौर पर उभर कर सामने आती हैं। जयशंकर प्रसाद और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के साथ छायावाद के तीसरे स्तंभ के रूप में विख्यात पंत के कविता संसार में उषा संध्या, तारों की चुनरी ओढ़े आकाश, चांदनी रात जैसे प्रकृति से जुड़े बिंब बार−बार आते हैं। समीक्षकों के अनुसार उनकी कविताओं में विशिष्ट छंद भी प्रमुखता से उभरते हैं। प्रकृति की मनुष्य की मदद और उसका पालन करने संबंधी पंत की धारणा में हालांकि बाद में बदलाव आया। समीक्षकों के अनुसार यह बदलाव महर्षि अरविन्द के प्रभाव के कारण आया।
परवर्ती काल में अरविन्द के दर्शन के अलावा पंत का रुझान मार्क्सवाद की तरफ भी हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय में जानकी देवी महाविद्यालय की पूर्व प्रधानाध्यापिका हेम भटनागर ने बताया कि पंत की छायावादी कविताएं अपनी कोमलकांत पदावलियों, अपने प्रकृति चित्रण और अपने छंदों के कारण विख्यात हैं। लेकिन उन्हें पंत की कविताओं की गेयता सबसे ज्यादा आकर्षित करती है। उन्होंने कहा कि छायावाद में प्रसाद ने जहां प्रकृति के अच्छे और बुरे दोनों पक्षों का चित्रण किया है वहीं महादेवी की कविताओं में प्रकृति के रहस्य वाले पक्ष को चित्रित किया गया। उन्होंने कहा कि पंत की कविताओं में प्रकृति की मनोहर छवियां पाई जाती हैं।
पंत का जन्म कुंमाऊं के बेहद मनोरम पहाड़ी अंचल कौसानी में 20 मई 1900 को हुआ। उनका मूल नाम गुसाई दत्त था। लेकिन कवि हृदय पंत को अपने इस नाम में संभवतः काव्यात्मक सौन्दर्य नजर नहीं आया और बाद में उन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रा नंदन पंत कर लिया। जन्म लेने के कुछ ही घंटों बाद पंत की माता का निधन होने के कारण उनका प्रकृति की ओर रुझान होना स्वाभाविक था। आसपास के पहाड़ी क्षेत्र का सुरम्य वातावरण उनके बाल मन पर इस तरह रच बस गया कि उसकी छवियां उनकी रचनाओं में बहुत बाद तक देखने को मिलती हैं।
उन्होंने सात वर्ष की उम्र से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। शिक्षा के लिए पंत अपने भाई के साथ वाराणसी आये। बाद में उन्होंने इलाहाबाद आकर इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। इसी दौरान आजादी के आंदोलन में उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर कालेज की पढ़ाई छोड़ दी और घर पर ही हिन्दी, संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन किया।
पंत की आरंभिक कविताओं को वीणा नामक संग्रह में संकलित किया गया है। उच्छवास पल्लव आदि काव्य संग्रह में उनकी प्रमुख छायावादी कविताएं हैं। उनकी अन्य प्रमुख कृतियों में ग्रंथी गुंजन लोकायतन ग्राम्या युगांत स्वर्ण किरण स्वर्ण धूलि कला और बूढ़ा चांद चिदंबरा शामिल हैं। साहित्य में योगदान के लिए उन्हें तमाम पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पंत को चिदंबरा के लिए ज्ञानपीठ और लोकायतन के लिए सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया। छायावाद के इस प्रमुख स्तंभ का निधन 28 दिसंबर 1977 को हुआ।