वर्तमान समय में प्रदूषण की बढती चिंता ने पर्यावरण संरक्षण के लिए सोचने को मजबूर कर दिया है। हाल के दिनों में जब महामारी के कारण अफरातफरी की स्थिति आई तो एकबार फिर प्रकृति और पर्यावरण की ओर सभी का ध्यान गया। खासकर ऑक्सीजन की कमी ने सभी को एक अलग अहसास करा दिया कि पर्यावरण के प्रति हमारा पहला कर्तव्य होना चाहिए। आज सरकार और सामाजिक संगठन इसके पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी मुखर हैं। केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद इस ओर गंभीरता से ध्यान दिया गया है। वैसे भारतीय संस्कृति में भी पर्यावरण के संरक्षण को हमेशा से महत्त्व दिया गया है। भारत में मानव जीवन को पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्र, नदी, वृक्ष एवं पशु-पक्षी आदि के साहचर्य में ही देखा गया है। पर्यावरण शब्द का अर्थ है हमारे चारों ओर का वातावरण। पर्यावरण संरक्षण का तात्पर्य है कि हम अपने चारों ओर के वातावरण को संरक्षित करें तथा उसे जीवन के अनुकूल बनाए रखें। पर्यावरण और प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित हैं।
भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण की इस विराट अवधारणा की सार्थकता है, जिसकी प्रासंगिकता आज इतनी बढ़ गई है। पर्यावरण संरक्षण का समस्त प्राणियों के जीवन तथा इस धरती के समस्त प्राकृतिक परिवेश से घनिष्ठ सम्बन्ध है। भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण का भाव पुरातनकाल में भी मौजूद था, भले ही उस काल में कोई राष्ट्रीय वन नीति या पर्यावरण पर काम करने वाली संस्थाएं नहीं थीं। लेकिन, पर्यावरण का संरक्षण हमारे दैनिक और अन्य क्रियाकलापों से ही जुड़ा हुआ था। भारतीय दर्शन की तो यह मान्यता रही है कि मानव शरीर की रचना पर्यावरण के महत्त्वपूर्ण घटकों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से ही हुई है। श्रीकृष्ण की गोवर्धन पर्वत की पूजा की शुरुआत का लौकिक पक्ष यही है कि मिट्टी, पर्वत, वृक्ष एवं वनस्पति का आदर करना सीखें।
जिस प्रकार राष्ट्रीय वन-नीति के अनुसार सन्तुलन बनाए रखने हेतु 33 प्रतिशत भू-भाग वनाच्छादित होना चाहिए, ठीक इसी प्रकार प्राचीन काल में जीवन का एक तिहाई भाग प्राकृतिक संरक्षण के लिये समर्पित था, जिससे कि मानव प्रकृति को भली-भाँति समझकर उसका समुचित उपयोग कर सके और प्रकृति का सन्तुलन बना रहे। सिंधु सभ्यता की मोहरों पर पशुओं एवं वृक्षों का अंकन, सम्राटों द्वारा अपने राज-चिन्ह के रूप में वृक्षों एवं पशुओं को स्थान देना, गुप्त सम्राटों द्वारा बाज को पूज्य मानना, मार्गों में वृक्ष लगवाना, कुएँ खुदवाना, दूसरे प्रदेशों से वृक्ष मँगवाना आदि तात्कालिक प्रयास पर्यावरण प्रेम को ही प्रदर्शित करते हैं।
स्कंद पुराण में एक सुंदर श्लोक है-
अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च।
पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।
अश्वत्थः = पीपल (100% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
पिचुमन्दः = नीम(80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
न्यग्रोधः = वटवृक्ष (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
चिञ्चिणी = इमली (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
कपित्थः = कविट (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
बिल्वः = बेल (85% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आमलकः = आवला (74% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आम्रः = आम (70% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
अर्थात् जो कोई इन वृक्षों के पौधों का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा, उसे नरक के दर्शन नहीं करने पड़ेंगे।
इस सीख का अनुसरण न करने के कारण हमें आज इस परिस्थिति के स्वरूप में नरक के दर्शन हो रहे हैं। अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है, हम अभी भी अपनी गलती सुधार सकते हैं और गुलमोहर, नीलगिरि- जैसे वृक्ष हमारे देश के पर्यावरण के लिए घातक हैं। पश्चिमी देशों का अंधानुकरण कर हमने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है। पीपल, बड और नीम जैसे वृक्ष रोपना बंद होने के कारण से सूखे की समस्या बढ़ रही है। ये सारे वृक्ष वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते हैं। साथ ही धरती के तापमान को भी कम करते है। हमने इन वृक्षों के पूजने की परंपरा को अन्धविश्वास मानकर फटाफट संस्कृति के चक्कर में इन वृक्षों से दूरी बनाकर यूकेलिप्टस (नीलगिरि) के वृक्ष सड़क के दोनों ओर लगाने की शुरुआत की। यूकेलिप्टस तेजी से बढ़ते हैं लेकिन ये वृक्ष दलदली जमीन को सुखाने के लिए लगाए जाते हैं। इन वृक्षों से पृथ्वी का जलस्तर घट जाता है। विगत 40 वर्षों में नीलगिरि के वृक्षों को बहुतायात में लगा कर पर्यावरण की हानि की गई है।
शास्त्रों में पीपल को वृक्षों का राजा कहा गया है।
मूले ब्रह्मा त्वचा विष्णु शाखा शंकरमेवच।
पत्रे पत्रे सर्वदेवायाम् वृक्ष राज्ञो नमोस्तुते।।
भावार्थ- जिस वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा जी तने पर श्री हरि विष्णु जी एवं शाखाओं पर देव आदि देव महादेव भगवान शंकर जी का निवास है और उस वृक्ष के पत्ते पत्ते पर सभी देवताओं का वास है ऐसे वृक्षों के राजा पीपल को नमस्कार है।
आज दुनिया में अनेक स्तरों पर यह कोशिश हो रही है कि आम आदमी को इस चुनौती के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराया जाये, ताकि उसके अस्तित्व को संकट में डालने वाले तथ्यों की उसे समय रहते जानकारी हो और स्थिति सुधारने के उपाय भी गम्भीरता से किये जा सकें। प्रकृति के प्रति प्रेम व आदर की भावना, सादगीपूर्ण जीवन पद्धति और वानिकी के प्रति नई चेतना जागृत करनी होगी। आज हमें यह स्वीकारना होगा कि हरा-भरा पर्यावरण, मानव जीवन की प्रतीकात्मक शक्ति है और इसमें समय के साथ-साथ हो रही कमी से हमारी वास्तविक ऊर्जा में भी कमी आई है। वैज्ञानिकों का मत है कि पूरे विश्व में पर्यावरण रक्षा की सार्थक पहल ही पर्यावरण को सन्तुलित बनाए रखने की दिशा में किये जाने वाले प्रयासों में गति ला सकती है।
पिछले कई वर्षों में जलवायु परिवर्तन, ऐसी चुनौती बनकर सामने आई है, जिसने वैज्ञानिकों ही नहीं बल्कि आम आदमी को भी चेताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास एवं उनके द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न अभियानों के कारण आज एक सामान्य व्यक्ति इसके प्रति सजग नजर आता है और अपनी राय भी रखता है जो कि बहुत अच्छी बात है। आज विश्व का हर देश इस दिशा में काम करने के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर करता है। भारत ने एक पहल की और एक उदाहरण पेश किया कि आप वातावरण के साथ सामंजस्य बनाकर भी अपने देश की तरक्की कर सकते हैं। भारत ने ब्रिक्स देशों से भी सहयोग देने और इस दिशा में काम करने की अपील की। इसके सकारात्मक संकेत भी दिखने लगे हैं। भारत सरकार ने भविष्य में कुछ ऐसे ही अभियान चलाने का निर्णय लिया है जैसे- फ्रेश एयर, सेव वाटर, सेव एनर्जी, ग्रो मोर प्लांट्स, अर्बन ग्रीन आदि। इन सभी कैंपेन का मकसद, वातावरण की रक्षा करना है।
भारत सरकार की तत्परता के बाद गैर सरकारी संस्थानों द्वारा भी इस दिशा में कार्य किए जा रहे हैं जो वेस्ट मैनेजमेंट से लेकर ईको-टूरिज्म तक से जुड़े हैं। आज हम कुछ ऐसी ही संस्थाओं के बारे में बात करेंगे, जिन्होंने वातावरण के लिए काम करने की ठानी है और विश्व भर में एक मिसाल कायम की। आज पूरी दुनिया पर्यावरण संरक्षण के लिए चिंतित है तो महान साधक और समाज सेवक पं. गणेश प्रसाद मिश्र जी जैसे दूरदृष्टि वाले विभूतियों ने दशकों पूर्व वृक्षारोपण अभियान चलाकर बुन्देलखण्ड की धरती को हरा भरा करने में महती भूमिका निभायी। उनकी स्मृतियों को संजोने, उनके संदेश से समाज को सशक्त बनाने के लिए स्थापित पं. गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास, सतना की ओर से “अपना सपना- हरा भरा सतना” के तहत बड़े पैमाने पर अनेकों बार वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अभियान में अपने पूर्वजों की स्मृति में घर के नजदीक ही राशि देकर पेड़ लगाया जा सकता है। एक ग्रीन एम्बुलेंस व कार्यकर्ताओं के माध्यम से हर लावारिश पेड़ की परवरिश बच्चे के समान की जाती है। आइये आप भी अपनों की स्मृति में वृक्ष लगायें, प्राणवायु बढ़ायें।
आगामी वर्षों में प्रत्येक 500 मीटर के अंतर पर यदि एक एक पीपल, बड़, नीम आदि का वृक्षारोपण किया जाएगा, तभी अपना भारत देश प्रदूषणमुक्त होगा। घरों में तुलसी के पौधे लगाने होंगे। आइए हम पीपल, बड़, बेल, नीम, आंवला एवं आम आदि वृक्षों को लगाकर आने वाली पीढ़ी को निरोगी एवं "सुजलां सुफलां पर्यावरण" देने का प्रयत्न करें।
-डॉ. राकेश मिश्र
(कार्यकारी सचिव, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी)