महामारी ने भले अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारा हो, मगर मोदी की बदौलत फिर से अच्छे दिन आ गये

By प्रह्लाद सबनानी | Apr 09, 2022

वित्तीय वर्ष 2021-22 (अप्रैल 2021 से मार्च 2022) अभी हाल ही में समाप्त हुआ है। भारतीय अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों के वित्तीय वर्ष 2021-22 में निष्पादन सम्बंधी आंकड़े जारी होना शुरू हो गए हैं एवं यह संज्ञान में आ रहा है कि इस वर्ष भारत ने आर्थिक क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं। वर्ष 2020 में एवं इसके बाद कोरोना महामारी पूरे विश्व में फैली थी एवं इस महामारी के चलते विश्व में सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं चरमरा गई थी परंतु जिस गति से भारतीय अर्थव्यवस्था के हालात वापस पटरी पर आए हैं वह निश्चित ही प्रशंसनीय है। कृषि क्षेत्र ने तो कोरोना महामारी के काल में भी भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरा सहारा दिया था एवं केवल कृषि क्षेत्र ही इस कालखंड में भी लगातार विकास दर हासिल करता रहा अन्यथा विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र तो विपरीत रूप से बहुत अधिक प्रभावित हुए थे। अब तो न केवल कृषि क्षेत्र बल्कि विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र के साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्र पटरी पर वापस आ चुके हैं। विशेष रूप से विदेशी व्यापार के क्षेत्र में हुए निष्पादन ने तो सभी को जैसे चौंका दिया है।

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वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत से वस्तुओं के निर्यात 43.18 प्रतिशत की आकर्षक वृद्धि दर हासिल करते हुए 41,781 करोड़ अमेरिकी डॉलर के उच्चतम स्तर पर रहे हैं जो निर्धारित लक्ष्य से भी 5 प्रतिशत अधिक है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत से वस्तुओं के निर्यात 29,181 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे थे। मार्च 2022 में वस्तुओं के निर्यात 4,038 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे हैं जबकि यह मार्च 2021 में 3,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे थे। विशेष रूप से पेट्रोलियम उत्पाद, जेम्स एवं जवेलरी, इंजीनीयरिंग उत्पाद, कृषि उत्पाद आदि क्षेत्रों में वृद्धि दर सराहनीय रही है। यूक्रेन एवं रूस में चल रहे युद्ध के चलते भारत से कुछ उत्पादों, विशेष रूप से कृषि उत्पादों के निर्यात में वृद्धि दर बढ़ी है क्योंकि युद्ध के पूर्व यूक्रेन एवं रूस कृषि उत्पादों का भारी मात्रा में निर्यात करते थे। अब कई देश गेहूं आदि जैसे कृषि पदार्थों के लिए भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। कृषि उत्पादों के निर्यात के क्षेत्र में भी भारत ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में 19.92 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 5,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निर्यात कर एक रिकॉर्ड स्थापित किया है। गेहूं का निर्यात तो इस वर्ष 273 प्रतिशत बढ़ा है और चावल के निर्यात में भारत ने पूरे विश्व के बाजार के 50 प्रतिशत हिस्से पर अपना कब्जा कर लिया है। इसी प्रकार कृषि उत्पादों के अलावा भारत द्वारा निर्मित किये जा रहे अन्य कई उत्पादों की मांग भी विदेशी बाजारों में बहुत बढ़ी है और यह बढ़त वित्तीय वर्ष 2022-23 में बनी रहने की सम्भावना है, जिसके चलते भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर में अच्छी बढ़त जारी रहेगी। वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत से वस्तुओं के निर्यात के साथ-साथ वस्तुओं के आयात भी बहुत तेज गति से बढ़े हैं और यह 54.71 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 61,022 करोड़ डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं। वित्तीय वर्ष 2019-20 एवं 2020-21 में भारत में वस्तुओं का आयात क्रमशः 47,471 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं 39,444 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा था। वस्तुओं के आयात में हो रही भारी वृद्धि का आशय यह है कि भारत में आर्थिक गतिविधियों में अब तेजी आ गई है।


मार्च 2022 माह तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत से चीनी के निर्यात ने भी रिकॉर्ड बनाया है एवं यह 85 लाख टन के स्तर तक पहुंच गया है। देश में चीनी का उत्पादन भी नित नए रिकॉर्ड बनाता जा रहा है जो मार्च तक की अवधि में 309.97 लाख टन के स्तर तक पहुंच गया है जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में देश में चीनी का उत्पादन 278.71 लाख टन का रहा था। भारत ने चीनी के उत्पादन में ब्राजील को पीछे छोड़कर पूरे विश्व में प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया है। इसी प्रकार, नए सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के क्षेत्र में भी भारत ने अमेरिका एवं जापान को पीछे छोड़ते हुए पूरे विश्व में द्वितीय स्थान हासिल कर लिया है एवं मोबाइल उत्पादन, स्टील उत्पादन एवं टेक्स्टायल उत्पादन में भी क्रमशः वियतनाम, जापान एवं इटली को पीछे छोड़कर भारत पूरे विश्व में अब दूसरे स्थान पर आ गया है तथा बिजली उत्पादन में रूस को पीछे छोड़कर भारत अब पूरे विश्व में तीसरे स्थान पर आ गया है। साथ ही ऑटो मार्केट में भी जर्मनी को पीछे छोड़कर भारत पूरे विश्व में चौथे स्थान पर आ गया है। भारत में अब अर्थ के कई क्षेत्रों में इसी प्रकार की प्रगति निरंतर दृष्टिगोचर हो रही है।

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वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में लगातार हो रही भारी वृद्धि की समस्या को हल करने के उद्देश्य से भारत और रूस के बीच कच्चे तेल की आपूर्ति को लेकर हाल ही में एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ है, जिसके अनुसार रूस भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति डॉलर की जगह रुपए में सस्ती दरों पर करेगा। यह समझौता भारत की शर्तों पर हुआ है, जिसके अंतर्गत रूस भारतीय सीमा के तट तक कच्चे तेल की आपूर्ति करना सुनिश्चित करेगा। यह शर्त रूस पर लगाए गए मौजूदा आर्थिक प्रतिबंधों की जटिलता से बचने के लिए रखी गई है। इस समझौते का सीधा फायदा भारतीय उपभोक्ताओं को मिलने की संभावना है। मौजूदा परिदृश्य में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ी कीमतों को लेकर दुनिया के देशों पर आर्थिक दबाव की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में इस समझौते से भारत को अनेक मोर्चों पर लाभ मिल सकता है।


सबसे अच्छी खबर तो बैंकों के गैर निष्पादनकारी आस्तियों में लगातार हो रहे सुधार से सम्बंधित है। 31 दिसम्बर 2021 को समाप्त अवधि में बैंकों की गैर निष्पादनकारी आस्तियां 7.71 लाख करोड़ रुपए (कुल ऋण राशि का 6.39 प्रतिशत) के स्तर पर नीचे आ गई हैं, यह 31 मार्च 2018 को 10.36 लाख करोड़ रुपए (कुल ऋणराशि का 11.8 प्रतिशत) के स्तर तक पहुंच गईं थीं। यह सराहनीय सुधार केंद्र सरकार द्वारा लिए गए कई आर्थिक निर्णयों के कारण, गैर निष्पादनकारी आस्तियों की सही पहचान, केंद्र सरकार द्वारा सरकारी क्षेत्र के बैंकों को लगातार उपलब्ध करायी जा रही पूंजी एवं बैंकिंग एवं आर्थिक क्षेत्र में लगातार चलाए जा रहे सुधार कार्यक्रम के चलते सम्भव हो पाया है।

     

बैंकों द्वारा प्रदत्त किए जा रहे ऋणों में भी अब तेजी दिखाई देने लगी है एवं 11 मार्च 2022 को समाप्त अवधि में 8.7 प्रतिशत की आकर्षक वृद्धि दर अर्जित की गई है। खुदरा ऋणों में अभी भी सबसे अधिक तेजी बनी हुई है एवं यह 12 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 31.8 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गए हैं। इसके साथ ही उद्योग क्षेत्र को प्रदान की गई ऋणराशि 6.4 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ 30.5 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गई है। 11 मार्च 2022 को बैंकों की ऋणराशि 116.5 लाख करोड़ रुपए के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। कृषि क्षेत्र को प्रदान किए जा रहे ऋणों में भी आकर्षक 10 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की गई है। 

 

फरवरी 2022 माह में 8 मूलभूत औद्योगिक क्षेत्रों में वृद्धि दर 5.8 प्रतिशत की रही है। विशेष रूप से स्टील उत्पादन, कोयला उत्पादन, प्राकृतिक गैस उत्पादन, रिफाईनरी उत्पादन एवं विद्युत उत्पादन में आई तेजी के चलते यह वृद्धि दर सम्भव हो पाई है। कच्चा तेल उत्पादन, खाद उत्पादन एवं सीमेंट उत्पादन के क्षेत्र में निष्पादन तुलनात्मक रूप से कुछ कमजोर रहा है। पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान उक्त वर्णित 8 मूलभूत औद्योगिक क्षेत्र में वृद्धि दर ऋणात्मक 3.3 प्रतिशत की रही थी। देश के कुल औद्योगिक उत्पादन में इन 8 मूलभूत औद्योगिक क्षेत्र का योगदान 40 प्रतिशत से अधिक हो गया है।

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वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए करों की वसूली सम्बंधी निर्धारित लक्ष्यों को भी प्राप्त कर लिया जाएगा। फरवरी 2022 तक की अवधि के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 22.7 लाख करोड़ रुपए की सकल कर वसूली फरवरी 2022 तक की जा चुकी है जबकि वित्तीय वर्ष 2021-22 का लक्ष्य 25.2 लाख करोड़ रुपए का है। मार्च 2022 माह में 2.5 लाख करोड़ रुपए सकल कर वसूली किया जाना शेष है, जोकि मार्च 2022 माह में बहुत आसानी से की जा सकेगी। इस प्रकार बहुत सम्भव है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में निर्धारित लक्ष्य से अधिक की वसूली सम्भव हो सकती है। मार्च 2022 माह में वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण भी अपने उच्चतम स्तर 1.42 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया है।


वैश्विक स्तर पर आ रही कई मुश्किलों यथा यूक्रेन एवं रूस के बीच युद्ध, कई देशों में महंगाई की मार, सप्लाई चैन के क्षेत्र में निरंतर आ रही परेशानियों के बावजूद भारत घरेलू मोर्चे पर निरंतर प्रगति कर रहा है। भारत की वृहद परिप्रेक्ष्य में आर्थिक बुनियाद मजबूत बनी हुई है। उपभोक्ताओं और कारोबारियों दोनों का कारोबारी माहौल के प्रति विश्वास बढ़ रहा है तथा मांग में भी सुधार हो रहा है इसलिए ऐसी आशा की जा रही है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान भारतीय आर्थिक क्षेत्र में और भी कई नए रिकॉर्ड बनेंगे। 

 

-प्रह्लाद सबनानी 

सेवानिवृत्त उप महाप्रबंधक

भारतीय स्टेट बैंक

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