इस्लामाबाद। पाकिस्तान ने विवादित सैन्य अदालतों द्वारा आतंकवाद संबंधित अपराधों के दोषी करार दिए गए दो ‘कट्टर’ तालिबानी आतंकियों को फांसी पर चढ़ा दिया है। इन सैन्य अदालतों को मानवाधिकार समूहों के दो साल के विरोध को नजरअंदाज करते हुए बहाल किया गया है। सेना ने मंगलवार देर रात जारी बयान में कहा कि आतंकियों को पंजाब प्रांत की उच्च सुरक्षा वाली जेल में फांसी दी गई। सेना ने अपने बयान में कहा कि ये दो ‘‘कट्टर आतंकी नागरिकों की हत्या, सैन्य बलों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों, पोलियो टीकाकरण दल और एनजीओ के कर्मचारियों पर हमलों समेत आतंकवाद से जुड़े घृणित अपराधों में लिप्त थे।’’
सेना ने इस बात की जानकारी नहीं दी कि मुकदमे कहां चलाए गए और प्रारंभिक सजा की घोषणा कब की गई? दो दोषियों की पहचान मोहम्मद शाहिद उमर और फज्ल-ए-हक के रूप में हुई। दोनों ही तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के सक्रिय सदस्य थे। सैन्य अदालतों की शुरूआती दो वर्षीय मियाद जनवरी में खत्म हो जाने के बाद उन्हें अगले दो साल के लिए पिछले माह बहाल किया गया था। इन अदालतों की स्थापना दिसंबर 2014 में सेना के पेशावर स्थित स्कूल पर आतंकी हमला होने के बाद की गई थी। उस हमले में 150 से ज्यादा लोग मारे गए थे और उनमें अधिकांश बच्चे थे। जब पाकिस्तानी अधिकारी सैन्य अदालतों को आतंकवाद के खिलाफ ‘‘प्रभावी प्रतिरोधक’’ बताते हैं, तो मानवाधिकार समूह मुकदमों की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हैं। ये समूह विशेष प्राधिकरणों से जुड़ी गोपनीयता के चलते ये सवाल उठाते हैं। सैन्य अदालतें 160 से ज्यादा आतंकियों को मौत की सजा सुना चुकी हैं और मंगलवार को दो आतंकियों को मारे जाने बाद अब तक फांसी पर चढ़ाए जा चुके आतंकियों की संख्या 23 हो गई है। इन आतंकियों को जिस दिन फांसी पर चढ़ाया गया, उसी दिन एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक विश्वव्यापी रिपोर्ट में कहा गया कि पाकिस्तान ने वर्ष 2016 में मौत की सजा के मामलों की संख्या एक साल पहले की तुलना में 73 प्रतिशत कम कर ली।