कश्मीर पर बेसुरा राग अब दुनिया को नहीं भाता, पाक को यह समझ क्यों नहीं आता

By नीरज कुमार दुबे | Aug 10, 2019

भारत ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को समाप्त कर एक बड़ा ऐतिहासिक कदम उठाया तो पाकिस्तान को मिर्ची लग गयी। पाकिस्तान पूरी दुनिया में भारत के इस कदम के खिलाफ चीख-पुकार मचा रहा है लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय लगभग खामोश है। जब दुनिया में कहीं से भी इस द्विपक्षीय मामले में मदद नहीं मिलती दिखी तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को गिड़गिड़ाते हुए कहना पड़ा- ''अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अगर नैतिक बल है तो उसे कश्मीरियों के खिलाफ भारत के ‘‘सैन्य बल’’ के उपयोग को समाप्त करना चाहिए।'' इस पर भी दुनिया के किसी हिस्से से मदद का हाथ आगे नहीं बढ़ा और उलटे पाकिस्तान को संयम बरतने की सलाह दी गयी तो खीझी हुई पाकिस्तान सरकार ने हाथ-पैर पटकने शुरू कर दिये। उनके हाथ में करने को कुछ ज्यादा था नहीं तो पाकिस्तान ने भारतीय उच्चायुक्त को निष्कासित कर नयी दिल्ली के साथ अपने राजनयिक संबंधों को सीमित कर दिया, भारतीय फिल्मों पर प्रतिबंध लगा दिया, समझौता एक्सप्रेस और थार एक्सप्रेस ट्रेन सेवा को रद्द कर दिया और भारत से व्यापारिक रिश्ते तोड़ने की घोषणा कर डाली। लेकिन पाकिस्तान के इन कदमों से हुआ क्या? पाकिस्तान के लोगों को भारतीय फिल्में ही भाती हैं और वहां की सरकार कितनी ही रोक लगा ले वहां के लोग भारतीय फिल्में देखने का कोई ना कोई तरीका निकाल ही लेते हैं। भारतीय फिल्मों पर पाकिस्तान का प्रतिबंध ज्यादा समय नहीं टिकता। बालाकोट पर भारतीय वायुसेना के हमले के बाद भी पाकिस्तान ने भारतीय फिल्मों पर प्रतिबंध लगाया था लेकिन वह कुछ महीनों में ही दम तोड़ गया। जहाँ तक व्यापारिक रिश्ते खत्म करने की बात है तो पाकिस्तान के साथ भारत के कुछ ज्यादा कारोबारी रिश्ते बचे नहीं थे तो उसे तोड़ने की घोषणा करना मूर्खता ही नजर आती है। रही बात समझौता एक्सप्रेस ट्रेन सेवा रद्द करने की तो इसका नुकसान सिर्फ भारत को ही नहीं पाकिस्तान को भी होगा क्योंकि उसके वह लोग जो भारत में अपने नाते-रिश्तेदारों से मिलने आते हैं वह नहीं आ पाएंगे।

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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एकदम सही कहा है कि अनुच्छेद 370 और 35ए का देश के खिलाफ कुछ लोगों की भावनाएं भड़काने के लिये, पाकिस्तान द्वारा एक शस्त्र की तरह इस्तेमाल किया जाता था। अब भारत ने पाकिस्तान से उसका अहम शस्त्र ही छीन लिया है तो उसे ऐसा लग रहा है कि वह निहत्था हो गया है। वह कभी मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जाने तो कभी मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालत में ले जाने की चेतावनी दे रहा है। लेकिन जरा देखिये कि संयुक्त राष्ट्र का इस मुद्दे पर क्या मत है- संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुतारेस ने भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 में हुए शिमला समझौते को याद करते हुए कश्मीर में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से साफ इंकार कर दिया है। जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाने के भारत के फैसले के बाद संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की दूत मलीहा लोधी ने गुतारेस से उचित भूमिका निभाने के लिए कहा था, जिसके बाद उनका यह बयान आया है। यही नहीं जब संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक से पूछा गया कि क्या महासचिव की योजना कश्मीर मुद्दे को सुरक्षा परिषद में उठाने की है, दुजारिक ने जवाब दिया, ‘‘मुझे ऐसी किसी योजना की जानकारी नहीं है।’’ 

 

ये तो हुई संयुक्त राष्ट्र की बात। अब जरा अमेरिका को देखिये, जहाँ की यात्रा इमरान खान ने बड़ी उम्मीदों के साथ की थी और वाशिंगटन से जब वह इस्लामाबाद लौटे तो उनका स्वागत ऐसे किया गया था जैसे वह दोबारा क्रिकेट वर्ल्ड कप जीत कर लौटे हों। पाकिस्तान की सरकार ने वैसे तो अमेरिका का बयान देख लिया होगा लेकिन उन्हें एक बार और अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मोर्गन ओर्टागस का बयान देख लेना चाहिए जिसमें अमेरिका की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है कि कश्मीर पर उसकी नीति में कोई बदलाव नहीं आया है और उसने भारत तथा पाकिस्तान से शांति तथा संयम बरतने का आह्वान किया है। पाकिस्तान अगर भूल गया है तो हम उसे याद दिलाना चाहेंगे कि अमेरिका की नीति यह रही है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा है और दोनों देशों को ही इस मुद्दे पर बातचीत की गति और गुंजाइश को लेकर फैसला करना है।

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अमेरिका से अब आपको लिये चलते हैं यूरोपीय संघ। पाकिस्तान का बेसुरा राग यहाँ भी सुना गया जिसके बाद यूरोपीय संघ के विदेशी मामलों की उच्च प्रतिनिधि तथा यूरोपीय कमीशन की उपाध्यक्ष फेडेरिका मोघेरिनी ने भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के साथ टेलीफोन पर बातचीत की। दोनों पक्षों से बातचीत के बाद मोघेरिनी ने क्या कहा ? उन्होंने कहा है, ‘‘यूरोपीय संघ कश्मीर मसले पर भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय राजनीतिक समाधान का समर्थन करता है, जो लंबे समय से लंबित विवाद के हल का एकमात्र रास्ता है।''

 

पाकिस्तान को शायद सबसे ज्यादा उम्मीद संयुक्त अरब अमीरात यानि UAE से रही होगी। लेकिन वहाँ से भी उसे मिला है बड़ा झटका। भारत में संयुक्त अरब अमीरात के राजदूत डॉ. अहमद अल बन्ना ने अपने बयान में स्पष्ट कहा कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधानों को हटाना भारत सरकार का अंदरूनी मामला है। डॉ. अहमद अल बन्ना ने साफ कहा है कि राज्यों का पुनर्गठन स्वतंत्र भारत के इतिहास में अनोखी घटना नहीं है और इसका मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय असमानता को कम करना और दक्षता को बढ़ाना है। अपनी हरकतों से पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ चुके पाकिस्तान को इस बात की निराशा है कि मुस्लिम राष्ट्र भी अब उसके साथ खड़े होने से कतराते हैं। दरअसल अब इन राष्ट्रों को भी समझ में आ गया है कि कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान दशकों से इनकी आंखों में धूल झोंकता रहा और मदद के रूप में धनराशि बटोरता रहा।

 

दुनिया भर के देश पाकिस्तान से मुँह फेर रहे हैं यह तो समझ में आता है लेकिन देखिये कि पाकिस्तान ने जिस तालिबान को पाला पोसा, उसे ट्रेनिंग के लिए अपनी सरजमीं मुहैया कराई उसने भी कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को झटका दे दिया है। तालिबान के प्रवक्ता जबीहउल्लाह मुजाहिद ने एक बयान में कहा है कि कश्मीर के मुद्दे को कुछ पक्षों की ओर से अफगानिस्तान से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। इससे संकट से निपटने में कोई मदद नहीं मिलेगी क्योंकि अफगानिस्तान के मुद्दे का इससे कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल कश्मीर मुद्दे को अफगानिस्तान से जोड़ने का खेल पाकिस्तान ने इसलिए खेला क्योंकि उसे लगता है कि यदि इस्लामाबाद अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया में मदद करता है तो अमेरिका उसे कश्मीर मसले के हल में सहयोग कर सकता है। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने भी कहा है कि 'अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया को कश्मीर में अपने उद्देश्य से जोड़ना, साबित करता है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान को महज एक रणनीतिक उपकरण के तौर पर देखता है।' करजई ने अपने एक ट्वीट में साफ कहा है, 'हम उम्मीद करते हैं कि जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत सरकार का फैसला राज्य और भारत के लोगों की बेहतरी वाला साबित होगा।' 

 

तो इतनी सारी मायूसी हाथ लगने के बाद अब पाकिस्तान कह रहा है कि वह कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जाएगा और उसके विदेश मंत्री क्षेत्र में हालिया घटनाक्रमों पर विचार-विमर्श के लिए जल्द ही चीन जाएंगे। लेकिन पाकिस्तान को हाल के उन घटनाक्रमों पर नजर दौड़ा लेनी चाहिए जिसमें संयुक्त राष्ट्र में भी उसका साथ किसी ने नहीं दिया। यही नहीं मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने की राह में बाधा के रूप में खड़े चीन ने भी अंतिम समय में पाकिस्तान को झटका दे दिया था। पाकिस्तान को जो विश्व भर में झटका मिल रहा है यह उसके आतंकवाद की फैक्ट्री बनने, अपने फरेबों, मक्कारी और झूठ की राजनीति की वजह से तो है ही साथ ही भारत ने पाकिस्तान को विश्व भर में अलग-थलग करने का जो कूटनीतिक अभियान छेड़ा हुआ है, यह उसकी भी बड़ी जीत है। भारत ने जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष दर्जा समाप्त करने और दो केंद्र शासित प्रदेशों में राज्य के विभाजन के फैसले के तुरंत बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों सहित कई देशों की सरकार को इसके बारे में विस्तृत रूप से अवगत कराया।

 

इसे खीझ नहीं तो और क्या कहेंगे कि पाकिस्तान में एक तरह से सेना की ओर से मनोनीत किये गये प्रधानमंत्री इमरान खान चेतावनी दे रहे हैं कि भाजपा सरकार कश्मीरियों के खिलाफ अधिक सैन्य बल का उपयोग कर स्वतंत्रता आंदोलन नहीं रोक पायेगी तो उन्हें पता होना चाहिए कि स्वतंत्रता आंदोलन कश्मीर में नहीं बलूचिस्तान में चल रहा है। और जिन कश्मीरियों को वह भड़काने की कोशिश कर रहे हैं वह अच्छी तरह जानते हैं कि यह फैसला कश्मीरियों के हित में ही लिया गया है और यकीनन अब जम्मू-कश्मीर की जनता अलगाववाद को परास्त करके नई आशाओं के साथ आगे बढ़ेगी। इमरान खान को ये नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा देने की पाकिस्तानी साजिशों के विरोध में जम्मू-कश्मीर के ही देशभक्त लोग हमेशा डटकर खड़े हुए हैं।

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बहरहाल, पाकिस्तान ने अपने यहाँ भारतीय नाटकों और फिल्मों पर तो प्रतिबंध लगा दिया लेकिन वह खुद कितना बड़ा नाटक करता है वह इस बात से पता लग जाता है कि उसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दिखाने के लिए कहा है कि वह सभी धर्मों का और लोगों के बीच संपर्क में बाधा नहीं खड़ी करना चाहता इसीलिए करतारपुर कॉरिडोर का काम जारी रहेगा। यहाँ इमरान खान से यह पूछा जाना चाहिए कि जो समझौता ट्रेन और थार एक्सप्रेस लोगों का आपसी संपर्क करा रही थीं उसे क्यों बंद कर दिया।

 

-नीरज कुमार दुबे

 

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