सीमा पर सख्ती के चलते स्थानीय युवकों को ट्रेनिंग दे रहे हैं पाक आतंकी

By सुरेश डुग्गर | Feb 18, 2019

पुलवामा के ताजा हमले के बाद सारे जम्मू-कश्मीर में हाई अलर्ट जारी करने की बात कही गई है पर बावजूद उसके सारा राज्य सहमा हुआ है। विशेषकर प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के आसपास रहने वाले और कश्मीर घाटी के वाशिंदे ज्यादा सहमे हुए नजर आ रहे हैं। धार्मिक स्थलों के आसपास रहने वालों को आतंकी हमलों की पुनरावृत्ति का डर है तो कश्मीर में कार बमों की दहशत चेहरों की हवाईयां उड़ा रही हैं। अधिकारियों ने दावा किया है कि पुलवामा के ताजा हमले के बाद सारे राज्य में सतर्कता को बढ़ाया तो गया लेकिन खुफिया एजेंसियों की खबरों के कारण दहशत फैल रही है। उनका कहना था कि कुछ लोगों द्वारा खुफिया रिपोर्टों को प्रमुखता दिए जाने के बाद लोग अपने आपको असुरक्षित महसूस करने लगे हैं।


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असल में खुफिया रिपोर्टें कहती हैं कि आतंकी जम्मू-कश्मीर में भी धार्मिक स्थलों पर हमलों को अंजाम दे सकते हैं। यूं तो रघुनाथ मंदिर पर दो बार आतंकी हमला हो चुका है। वैष्णो देवी गुफा तक आतंकी पहुंचे तो कई बार पर हर बार सुरक्षा बलों को सफलता मिली थी। और अब ताजा रपटों के बकौल, वैष्णो देवी का तीर्थस्थान आतंकी हिट लिस्ट में सबसे ऊपर है। अधिकारी इसे मानते हैं कि बहुत बड़े भूभाग में फैले वैष्णो देवी तीर्थस्थल की सुरक्षा कर पाना संभव भी नहीं है। तभी तो तीर्थस्थान के बेस कैम्प कटड़ा में एक बार हथगोले का हमला सात श्रद्धालुओं की जान लील चुका है। चारों ओर पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण आतंकी कई बार शार्टकट रास्तों का इस्तेमाल कर गुफा से मात्र एक-डेढ़ किमी की दूरी पर घात लगा चुके हैं। ‘एक करोड़ से अधिक लोगों को सुरक्षा प्रदान कर पाना कितना कठिन काम है आप बेहतर समझ सकते हैं,’ कटड़ा में तैनात एक वरिष्ठ सीआरपीएफ अधिकारी का कहना था।

 

ऐसा ही हाल अन्य धार्मिक स्थानों का भी है। जम्मू का रेलवे स्टेशन भी दो हमलों को झेल चुका है। हालांकि लोगों की आस्था कम तो नहीं हुई मगर दहशत और आतंक का साम्राज्य जरूर पुनः फैल रहा है। ऐसा ही साम्राज्य कश्मीर घाटी में प्रतिदिन उस समय फैलता है जब कारों में बमों को लेकर घूमते आतंकवादियों के प्रति खबरें फैलती हैं। आतंकी हमलों के बाद कश्मीर घाटी परेशान है क्योंकि पुलवामा हमले के बाद ऐसी अफवाहें उड़ रही हैं कि कुछ कारें चोरी चली गई हैं जिनका इस्तेमाल आतंकियों द्वारा कार-बम के रूप में किया जा सकता है। कोई भी इन अफवाहों को हल्के तौर पर इसलिए नहीं लेना चाहता क्योंकि अभी तक कश्मीर 30 सालों में 200 के करीब कार बम हमलों को सहन कर चुका है और इनमें सैंकड़ों की जानें जा चुकी हैं।


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हालत तो यह है कि अम्बेसडर तथा मारूति कारें मौत के परकाले दिखने लगी हैं। और किसी में अगर लाल बत्ती लगी हो तो डर खतरे के निशान से ऊपर इसलिए पहुंच जाता है क्योंकि आतंकवादियों द्वारा कार बमों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अधिकतर कारों पर ऐसी ही लाल बत्तियां नजर आई थीं। स्थिति नियंत्रण में नहीं कही जा रही है। अधिकारी मानते हैं कि सुरक्षा बलों की कामयाबियों ने आतंकवादियों के जो पांव उखाड़े हैं उन्हें पुनः जमाने के लिए वे एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। और इसी जोर के तहत वे जहां मौका मिले उसे चूकने नहीं देना चाहते।

 

दूसरी ओर, कश्मीर में आतंकवाद से निपट रहे सुरक्षा बलों के होश अब फाख्ता भी होने लगे हैं। कारण मुठभेड़ों में मारे जाने वाले अधिकतर आतंकी अब विदेशी नहीं बल्कि स्थानीय युवक हैं। अभी तक मरने वाले विदेशी और स्थानीय नागरिकों का अनुपात 10:1 का होता था जो अब 2:10 में बदल गया है। यही नहीं इससे भी अधिक चिंता का विषय यह है कि यह स्थानीय आतंकी कश्मीर के भीतर ही स्थापित किए जाने वाले ट्रेनिंग कैम्पों में प्रशिक्षण पाने लगे हैं जिन्हें अभी तक तलाश ही नहीं किया जा सका है।

 

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इस साल पहली जनवरी से लेकर अभी तक मारे गए 12 के करीब आतंकियों में 10 स्थानीय नागरिक थे। पिछले साल इसी अवधि में मरने वाले 12 में से 10 विदेशी नागरिक थे और दोनों की मौतों में अंतर यह था कि इस बार सारे कश्मीर के भीतर मारे गए हैं और पिछले साल मरने वालों को एलओसी पर ढेर किया गया था। अधिकारी इसे चिंताजनक स्थिति निरूपित करते थे। पिछले कई सालों से आतंकवाद विरोधी अभियानों में लिप्त एक सुरक्षधिकारी के बकौल: ‘स्थानीय आतंकियों का आतंकवाद की ओर आकर्षण कश्मीर को 1990 की स्थिति में ले जाएगा और अगर ऐसा हुआ तो कश्मीर को फिर संभाल पाना बहुत कठिन होगा।’

 

वर्ष 2016 में 8 जुलाई को हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकी कमांडर और पोस्टर ब्वॉय के रूप में प्रसिद्ध बुरहान वानी की मौत के बाद ही कश्मीरी युवाओं का रूख आतंकवाद की ओर तेजी से हुआ है। आधिकारिक आंकड़ा आप कहता है कि बुरहान वानी की मौत के बाद 390 से अधिक युवा आतंकवादियों के साथ हो लिए। यह इससे भी साबित होता है कि बुरहान की मौत के बाद मरने वाले स्थानीय आतंकियों का आतंकवाद के साथ जुड़ाव 8 घंटों से से लेकर 60 दिन तक का था।

 

 

यह क्रम रूका नहीं है। रोकने की तमाम कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं। सुरक्षाधिकारी सिर्फ अभिभावकों को समझाने के सिवाय कुछ नहीं कर पा रहे हैं। पत्थरबाजों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है। इतना जरूर था कि कश्मीरी आरोप लगाते थे कि सुरक्षा बलों के कथित अत्याचारों के कारण ही कश्मीरी युवा बंदूक उठाने को मजबूर हो रहे हैं। स्थानीय युवाओं का आतंकवाद की ओर बढ़ता आकर्षण पहले ही से सुरक्षा बलों के लिए चिंता का विषय बना हुआ था और अब यह जानकारियां सामने आने के बाद उनकी परेशानी और बढ़ गई है कि स्थानीय युवा प्रशिक्षण की खातिर सीमा पार नहीं जा रहे हैं। उन्हें पुराने आतंकियों या फिर एलओसी पार से आने वाले आतंकियों द्वारा कश्मीर के भीतर ही ट्रेनिंग दी जा रही है। उन्हें सबसे पहले पुलिसवालों के हथियार छीनने का काम सौंपा जा रहा है। अधिकारियों ने माना है कि पुलिसकर्मियों से हथियार छीनने की अधिकतर घटनाओं में स्थानीय युवाओं का ही हाथ पाया गया है। ऐसा वे इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि सीमाओं पर सख्ती के कारण हथियारों की खेपें आनी लगभग रूक सी गई हैं।

 

- सुरेश डुग्गर

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