पर्यावरण दिवसः धरती की सुरक्षा का घेरा है ओजोन परत

By डॉ. शंकर सुवन सिंह | Jun 05, 2021

मानव प्रकृति का हिस्सा है। प्रकृति व मानव एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति के बिना मानव की परिकल्पना नहीं की जा सकती। प्रकृति दो शब्दों से मिलकर बनी है- प्र और कृति। प्र अर्थात प्रकृष्टि (श्रेष्ठ/उत्तम) और कृति का अर्थ है रचना। ईश्वर की श्रेष्ठ रचना अर्थात सृष्टि। प्रकृति से सृष्टि का बोध होता है। प्रकृति अर्थात वह मूलत्व जिसका परिणाम जगत है। कहने का तात्पर्य प्रकृति के द्वारा ही समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की गई है। पर्यावरण से हम हैं और हमसे पर्यावरण। पारिस्थितिकी तंत्र का पृथ्वी से घनिष्ठ सम्बन्ध है। पर्यावरण पर हमारे चारों ओर के वातावरण का प्रभाव पड़ता है। ये वातावरण, वायुमंडलीय प्रभाव से निर्मित होता है। हमारा वायु मंडल मजबूत होगा तो वातावरण भी शुद्ध होगा। वातावरण शुद्ध होगा तो हमारा पर्यावरण भी शुद्ध होगा। पृथ्वी की रक्षा के लिए वायुमंडलीय सतह पर एक परत होती है। यह परत पराबैंगनी किरणों से हमारी व हमारे पर्यावरण की रक्षा करती है, जिसे ओजोन परत कहते हैं। वायुमंडल के ऊपरी सतह पर पराबैंगनी किरणों के प्रभाव में ऑक्सीजन विभाजन एटमो में होने लगा। तत्पश्चात एटमो ने मिलकर ओजोन का रूप धारण कर समताप मंडल में सांद्रित होकर ओजोन परत का निर्माण किया।

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पृथ्वी की बाहरी सतह मुख्यतः चार वर्गो में विभक्त है- 1. लिथोस्फीयर (पृथ्वी का आवरण), 2. हाइड्रो स्फीयर (समुद्र, नदियाँ  और झीलें), 3. एटमास्फीयर (पृथ्वी का आवरण), 4. बायोस्फियर (यह तीनों का समावेश है)। आरम्भ में जब पृथ्वी का उदभव हुआ तो ऑक्सीजन गैस नहीं थी। ज्वालामुखियों के निरंतर टूटते-फूटते रहने से सम्पूर्ण वायुमंडल कार्बन डाई ऑक्साइड व मीथेन से भरपूर था। कुछ समय बाद समुद्रों के भीतर जीवन का उदभव हुआ, जो कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित कर ऑक्सीजन का प्रजनन करने लगे। इस ऑक्सीजन ने पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल की ओर एकत्र होना शुरू कर दिया, जहां पराबैगनी किरणों के प्रभाव में ऑक्सीजन का विभाजन एटमो में होने लगा। तत्पश्चात एटमो ने मिलकर ओजोन का रूप धारण कर समताप मंडल में सांद्रित होकर ओजोन परत का निर्माण किया। ओजोन परत, पृथ्वी को पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणों से बचाने में एक छलनी समान,सुरक्षा कवच का काम करती है। ओजोन में ऑक्सीजन के तीन एटम बाउंड होते हैं। ओजोन एक रंग विहीन तथा तीखी गंध वाली गैस होती है। ओजोन परत पृथ्वी के ऊपर सोलह से पचास किलोमीटर (अर्थात 34 किलोमीटर मोती परत) ऊंचाई पर स्थित है। ओजोन का निर्माण सौर विकिरण द्वारा लगातार होता रहता है। जिसका स्तर 300 मिलियन टन प्रतिदिन है और इतनी ही मात्रा में यह प्राकृतिक रूप से नष्ट भी होती रहती है। ओजोन परत के कारण समताप मंडल (स्ट्रैटोस्फियर) का तापमान ट्रोपोस्फियर (क्षोभ मंडल) की अपेक्षाकृत अत्यधिक होता है।

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ओजोन परत पराबैंगनी किरणों को शोषित करता है और विकिरण के हानिकारक प्रभाव से पृथ्वी के सम्पूर्ण जीवन की रक्षा करता है। पराबैंगनी किरणों के अवशोषण के कारण ओजोन परत समताप मंडल को गर्म करता है। ओजोन की मोटी परत (34 किलोमीटर) से पराबैंगनी किरणें छन कर ट्रोपोस्फियर (क्षोभ मंडल) में प्रवेश करती हैं। ओजोन परत सबस्क्रीन की भांति काम करती है और खतरनाक पराबैंगनी बी सौर तरंगों के बड़े भाग को क्षोभ मंडल में प्रवेश करने से रोकती है। पराबैंगनी बी का वह क्षीण प्रवाह जो भू सतह के वायुमंडल तक पंहुचता है- त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद आदि बीमारियां फैलाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं यदि समताप मंडल में ओजोन का निर्माण न हुआ होता तो आधुनिक समय में जीवन स्वरूपों का उदभव शायद ही संभव होता। ओजोन की कमी से पराबैंगनी बी का क्षोभ मंडल में अत्यधिक मात्रा में होना मानव पर ही नहीं अपितु पेड़-पौधों पर भी प्रभाव डालते हैं। पौधों में स्टोमेटा के द्वारा ओजोन प्रवेश कर जाती है। यह पत्तियों को हानि पंहुचाती है जिससे पौधों की उत्पादन क्षमता में कमी और उनकी गुणवत्ता घटती है। ओजोन में कमी का मुख्य कारक है "क्लोरीन गैस"। क्लोरीन भारी होने के कारण स्ट्रैटोस्फियर की ऊंचाई तक नहीं पंहुच पाती जहां ओजोन परत विद्यमान है। घरेलु एवं सामूहिक रसायनों से उत्पन्न क्लोरीन गैस निचले वायुमंडल में विघटित हो वर्षा में बह जाती है। 


कई ऐसे स्थाई और हलके रसायन भी हैं जो वाष्पशील स्वभाव के होते हैं एवं विघटित होकर क्लोरीन का निर्माण करते हैं। इन्हे ओजोन डिप्लीटिंग सब्स्टेंस (ओ.डी.एस) कहते हैं| क्लोरो फ्लोरो कार्बन, कार्बन टेट्रा क्लोराइड आदि कुछ ऐसे ओजोन डिप्लीटिंग सब्स्टेंस हैं जिनमे क्लोरीन होती है| क्लोरो फ्लोरो कार्बन सर्वाधिक विनाशकारी सिद्ध हुई। एक क्लोरीन एटम लगभग 1,00,000 ओजोन मॉलिक्यूल्स को तोड़ कर वहां से हटा देता है। ग्रीन हाउस गैस के लगातार वृद्धि से भी ओजोन मात्रा घटती है। ग्रीन हाउस गैस प्रजनन के लिए उत्तरदायी स्रोत- लकड़ी के दहन से कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन, पशु, मानव-विष्टा एवं जैव सड़ाव से मीथेन उत्सर्जन और हाइड्रोकार्बन एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड के प्रभाव में ट्रोपोस्फियर के भीतर मीथेन गैस का निर्माण। लम्बी तरंग धैर्य विकिरण का कुछ भाग वायुमंडल के ऊपरी ठन्डे भाग में उपस्थित ट्रेस गैसों द्धारा अवशोषित हो जाता है। इन्ही ट्रेस गैसों को ग्रीन हाउस गैस कहते हैं। पृथ्वी की प्राकृतिक जलवायु निरन्तर बदलती रही है। ग्रीन हाउस प्रभाव के द्वारा पृथ्वी की सतह गर्म हो रही है। ग्रीन हाउस प्रभाव- सूर्य की किरणें, कुछ गैसों और वायुमण्डल में उपस्थित कुछ कणों से मिलकर होने की जटिल प्रक्रिया है। कुछ सूर्य की ऊष्मा वायुमण्डल से परावर्तित होकर बाहर चली जाती हैं। लेकिन कुछ ग्रीन हाउस गैसों के द्वारा बनाई हुई परत के कारण बाहर नहीं जाती है। अतः पृथ्वी का निम्न वायुमंडल गर्म हो जाता है। ग्रीन हाउस प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है तथा यह जीवन को प्रभावित करती है। 


पर्यावरण में बढ़ी हुई ऑक्सीजन, ओजोन परत को मोटी रखने में सहायक होती है। यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ओजोन परत और ऑक्सीजन दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। अतएव जल जंगल और जमीन तीनो को ध्यान में रख कर पृथ्वी का विकास करना चाहिए। ओजोन की मोटी परत सभी हानिकारक तत्वों को पृथ्वी पर आने से रोकती हैं। विश्व पर्यावरण दिवस पर जहां पर्यावरण संरक्षण को लेकर लोग सचेत हैं वहां मानव जीवन निरोगी और स्वस्थ्य होगा। ओजोन परत का संरक्षण कर हम पर्यावरण और पृथ्वी दोनों को सुरक्षित रख सकते हैं। विश्व पर्यावरण दिवस- 2021 में हम सभी को ग्रीन हाउस गैसों के निष्कासन में कमी की आवश्यकता पर ध्यान देना होगा| ग्रीन हाउस गैसों के निष्कासन में कमी करना कठिन है परन्तु असंभव नहीं है।

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कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य जिनके द्वारा इसके निष्कासन को कम किया जा सकता है,वो इस प्रकार है- 


1. खपत तथा उत्पादन में ऊर्जीय क्षमता की बढ़त होनी चाहिए। 


2. वाहनों में पूर्ण रूप से ईंधन का दहन होना चाहिए जो की ठीक रख-रखाव से संभव है। नई स्वचलित वाहन तकनीक पर जोर देने की आवश्यकता है। 


3. ऊर्जा के नए स्रोतों का प्रयोग करना चहिए जैसे- सौर ऊर्जा, जल विद्युत ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा इत्यादि। 


4. उद्योगों से निकलने वाले जहरीले पदार्थों के निष्कासन को कम करन चाहिए। 


5. हैलोकार्बन के उत्पादन को कम करना चाहिए जैसे- फ्रिज, एयरकन्डीशन, में पुनः चक्रीय रसायनों का प्रयोग करना चाहिए। 


6. ईंधन वाले वाहनों का प्रयोग कम करना चाहिए। 


7. वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए तथा जंगलों को कटने से रोकना चाहिए। 


8. समुद्रीय शैवाल बढ़ाना चाहिए ताकि प्रकाश संश्लेषण के द्वारा कार्बन डाइआक्साइड का प्रयोग किया जा सके। ये सारे तथ्य पर्यावरण संरक्षण में सहायक साबित होते हैं। इन तथ्यों को अपनाकर ग्रीन हाउस प्रभाव को कम करके उसके द्वारा उत्पन्न जटिल समस्याओं को रोका जा सकता है। जिससे पर्यावरण बचाव मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से निपटा जा सकता है, ताकि एक बेहतर भविष्य बने। पृथ्वी को ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव से बचाना होगा तभी हमारी पृथ्वी स्वस्थ्य और निर्भीक बनेगी। अतएव हम कह सकते हैं कि ओजोन परत, भू-मंडल का सुरक्षा कवच है।


- डॉ. शंकर सुवन सिंह

वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक

असिस्टेंट प्रोफेसर, शुएट्स, नैनी,प्रयागराज (यू.पी.)

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