सपा-बसपा के लिए बड़ा खतरा है ओवैसी-राजभर-चन्द्रशेखर का साथ आना

By अजय कुमार | Aug 30, 2021

उत्तर प्रदेश में अगले साल होली के करीब होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग से लेकर राजनैतिक दलों तक में सरगर्मी बढ़ी हुई है। चुनाव आयोग शांति पूर्वक चुनाव कराने और वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए रणनीति बना रहा है। वहीं राजनीतिक दलों को वोट बैंक मजबूत करने की चिंता सता रही है। बैठकों का दौर चुनाव आयोग से लेकर सियासी संगठनों तक में चल रहा है। आयोग के बड़े-बड़े अधिकारी देश के सबसे बड़े सूबे में चुनावी तैयारियों को अमलीजामा पहनाने में लगे हैं तो दूसरी ओर तमाम दलों के दिग्गज नेता चुनाव प्रचार, प्रत्याशियों के चयन और सामाजिक समीकरण साधने के लिए माथापच्ची कर रहे हैं। चुनाव आयोग को जनता की कसौटी पर खरा उतरना है तो राजनैतिक दल को सत्ता की चिंता सता रही है। वह दल तो पूरी ताकत लगा ही रहे हैं जिन्हें उम्मीद है कि उनकी ‘सरकार’ बन सकती है। वहीं वह छोटे दल भी पीछे नहीं रहना चाहते हैं जो सरकार तो नहीं बना सकते हैं लेकिन किसी भी बड़े दल का ‘खेल’ जरूर बिगाड़ सकते हैं। इसीलिए यूपी में सत्ता हासिल करने की दौड़ में भले ही दो-तीन बड़े दल नजर आते हों, लेकिन छोटे दलों की संख्या बेहिसाब है। सबके अपने-अपने दावे हैं। यह बड़े-छोटे सभी दल अपने-अपने सियासी समीकरण बैठाने में लगे हुए हैं। राजनीति के जानकार कहते हैं कि ओवैसी-चन्द्रशेखर ओर ओम प्रकार राजभर के एकजुट होने से सपा-बसपा को बड़ा सियासी नुकसान उठाना पड़ सकता है। 

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बहरहाल, सत्ता की मलाई चाटने की आतुरता के चलते तमाम छोटे-बड़े दलों ने विचारधारा को तिलांजलि दे दी है। तमाम दल किसी तरह से गठबंधन करके या फिर अकेले ही सही चुनाव लड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते हैं। इसी कड़ी में मुस्लिम वोटरों के सहारे आगे बढ़ रही आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) के अध्यक्ष असद्दुदीन ओवैसी ने हाल ही में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर व अपने आप को दलित नेता बताने वाले भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर से मुलाकात की थी। चुनाव से पहले इस मुलाकात के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। इसे दलित, पिछड़े व मुस्लिम वोट बैंक के गठजोड़ के रूप में भी देखा जा रहा है। बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती से चन्द्रशेखर बुआ-भतीजे का रिश्ता बताते हैं। यह और बात है कि मायावती लगातार कहती रहती हैं कि वह किसी की बुआ नहीं हैं। दरअसल, चन्द्रशेखर की नजर जिन दलित वोटरों पर है, वह अभी तक मायावती की थाथी माने जाते हैं। इसीलिए मायावती को चन्द्रशेखर फूटी आंख नहीं सुहाते हैं। खैर, इन सब बातों से बेपहरवाह भीम आर्मी चीफ ने जहां एक तरफ ओवैसी से मुलाकात की तो थोड़ी ही देर बाद वह प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के नेता शिवपाल यादव से भी मुलाकात करने पहुंच गए। बताया जाता है कि गैर भाजपा गठबंधन पर दोनों नेताओं के बीच लम्बी बातचीत हुई। वैसे चर्चा यह भी है कि चाचा शिवपाल के भतीजे अखिलेश यादव के साथ भी संबंध सुधरने लगे हैं। हो सकता है कि चुनाव आते-आते शिवपाल अपनी पार्टी का सपा में विलय करके अखिलेश को अपना नेता मान लें।

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बात ओवैसी और भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर की मुलाकात की कि जाए तो लखनऊ में हुई इस मुलाकात की जानकारी लोगों को शायद नहीं होती यदि मुलाकात के बाद एआइएमआइएम चीफ असद्दुदीन ओवैसी ने अपने ट्विटर अकाउंट से फोटो शेयर न की होती। इस तस्वीर के आते ही तीनों दलों के एक साथ आने की अटकलें तेज हो गईं हैं। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि ओम प्रकाश राजभर की अगुवाई में बने भागीदारी संकल्प मोर्चा में चन्द्रशेखर की आजाद समाज पार्टी भी शामिल हो सकती है। ओवैसी की पार्टी पहले से ही इस गठबंधन में शामिल है। चर्चा यह भी है कि यह तीनों दल एक साथ आते हैं तो विधानसभा चुनाव में कई पार्टियों के लिए राजनीतिक समीकरण बदल जाएंगे। यादव, मुस्लिम, दलित व पिछड़े वोट बैंक के सहारे यूपी की गद्दी पर बैठने का ख्वाब संजोए सपा अध्यक्ष अखिलेश पर भी इस संभावित गठबंधन का प्रभाव पड़ सकता है। भीम आर्मी के कारण बसपा को भी दलित वोटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह और बात है कि अभी तक गठबंधन की तिकड़ी यही कह रही है कि उसका मकसद भाजपा को सत्ता से बाहर करना है। उसका मुकाबला सपा-बसपा या कांग्रेस से नहीं है। सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर तो खुलकर कह भी रहे हैं कि भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए उनके पास तीन विकल्प हैं सपा-बसपा व कांग्रेस। राजभर कहते हैं सात सितंबर के बाद हम चुनाव अभियान चलाएंगे, फिर तय करेंगे कि हम किसके साथ चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि भाजपा के साथ हरगिज नहीं जाएंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा में पिछड़े समाज के नेता लोडर हैं, लीडर नहीं। पिछड़े समाज के नेताओं को उचित सम्मान न मिलने का भाजपा पर आरोप लगाते हुए राजभर ने कहा कि सरकार में सहयोगी रहते हुए उनके साथ भी भेदभाव किया जाता रहा।


-अजय कुमार

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