मुद्दों के अभाव में विपक्ष ने किसानों को अपनी राजनीति का मोहरा बना लिया

By राकेश सैन | Sep 17, 2020

गुड़ चढ़ा कर शहर गटकाने में भारतीय नेताओं का कोई सानी नहीं। भाखड़ा बांध का यह कह कर विरोध किया गया कि सरकार किसानों को बिजली निकला हुआ थोथा पानी देगी। सूचना तकनोलोजी पर वामपंथियों ने शोर मचाया कि अब कंप्यूटर से पांच आदमियों का काम एक से लिया जाएगा जिससे चार लोग बेरोजगार हो जाएंगे। दोनों अफवाहें बेबुनियाद निकलीं। भाखड़ा बांध जहां उत्तर भारत के विकास का सारथी बना वहीं कंप्यूटर तकनोलोजी से रोजगार के अवसर बढ़े। इसी तरह केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार व किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए तीन अध्यादेश लाई है लेकिन विपक्ष ने न इसका विरोध किया बल्कि किसानों को बरगलाया भी जा रहा है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के कुछ किसान संगठन विरोध में सड़कों पर भी उतरे हैं। उन्हें यह कह कर भरमाया जा रहा है कि इन सुधारों के बहाने सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था समाप्त करने की ओर बढ़ रही है। सच्चाई यह है कि ये कृषि उपज की बिक्री हेतु पहले की व्यवस्था के साथ-साथ एक समानांतर व्यवस्था बनाई जा रही है। यह किसानों पर निर्भर होगा कि वह किस व्यवस्था के अंतर्गत फसल बेचना चाहते हैं। नई व्यवस्था एक नया विकल्प है, जो वर्तमान मंडी व्यवस्था के साथ-साथ चलती रहेगी।

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केंद्र सरकार ने कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम में सुधार करते हुए किसानों को अधिसूचित मंडियों के अलावा भी अपनी उपज को कहीं भी बेचने की छूट दी है। इस विषय में चार बड़े सुधार किए गए हैं। पहला, अब किसी भी मंडी, बाजार, संग्रह केंद्र, गोदाम, कोल्ड स्टोरेज, कारखाने में फसल बेचने के लिए किसान स्वतंत्र हैं। इससे किसानों का मंडियों में होने वाला शोषण कम होगा और अच्छी कीमत मिलने की संभावना बढ़ेगी। किसानों के लिए पूरा देश एक बाजार होगा। दूसरा, अब मंडी व्यवस्था के बाहर के व्यापारियों को भी फसलों को खरीदने की अनुमति होगी। अधिक व्यापारी किसानों की फसल खरीद सकेंगे जिससे उनमें किसान को अच्छा मूल्य देने की प्रतिस्पर्धा होगी। तीसरा, मंडी के बाहर व्यापार वैध होने के कारण मंडी व्यवस्था के बाहर कृषि व्यापार और भंडारण संबंधित आधारभूत संरचना में निवेश बढ़ेगा। चौथा, अब अन्य राज्यों में उपज की मांग, आपूर्ति और कीमतों का आर्थिक लाभ किसान स्वयं या किसान उत्पादक संगठन बना कर उठा सकते हैं। उन्हें खेत या घर से ही सीधे किसी भी व्यापारी को फसल बेचने का अधिकार होगा। इससे किसान का मंडी तक का भाड़ा भी बचेगा। अभी तक मंडी पहुंचने के बाद सही मूल्य न मिलने पर भी किसान फसल बेचने को मजबूर था, क्योंकि वापसी का भाड़ा देना और नुकसानदायक होता। यदि जल्द खराब होने वाली उपज हो तो मंडी पहुंचने के बाद उसे किसी भी मूल्य पर बेचने की मजबूरी होती है। इसका लाभ बिचौलिये उठाते रहे हैं। अब किसान अपने घर या खेत से उचित मूल्य मिलने पर ही फसल बेचेगा। एक अध्यादेश बुआई से पहले किसान को फसल के तय मानकों और तय कीमत अनुसार बेचने के अनुबंध की सुविधा देता है। इससे किसान फसल तैयार होने पर सही मूल्य न मिलने के जोखिम से बच जाएंगे, दूसरे उन्हें खरीदार ढूंढ़ने के लिए कहीं जाना नहीं होगा। किसान सीधे थोक और खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों, प्रसंस्करण उद्योगों आदि के साथ उनकी आवश्यकताओं और गुणवत्ता के अनुसार फसल उगाने के अनुबंध कर सकते हैं। इससे किसानों को फसल उगाने से पहले ही सुनिश्चित दामों पर फसल का खरीदार तैयार मिलेगा। किसानों की जमीन के मालिकाना अधिकार सुरक्षित रहेंगे और उसकी मर्जी के खिलाफ फसल उगाने की कोई बाध्यता भी नहीं होगी। किसान खरीदार के जोखिम पर अधिक जोखिम वाली फसलों की खेती भी कर सकता है। कृषि जिन्सों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भी सुगम बनाया गया है। कृषि उत्पादों को ई-ट्रेडिंग के माध्यम से बेचने की सुविधा को बेहतर बनाया गया है। किसानों को अपनी उपज के लाभकारी मूल्य प्राप्ति हेतु आवश्यक वस्तु अधिनियम में भी संशोधन किए गए हैं। अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, आलू और प्याज सहित सभी कृषि खाद्य पदार्थ अब नियंत्रण से मुक्त होंगे। इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा या अकाल जैसी विशेष परिस्थितियों के अलावा स्टॉक की सीमा नहीं लगेगी।

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किसान खरीददार के जोखिम पर अधिक जोखिम वाली फसलों की खेती भी कर सकता है। कृषि जिंसों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भी सुगम बनाया जा रहा है। इसी तरह कृषि उत्पादों को ई-ट्रेडिंग के माध्यम से बेचने की सुविधा को बेहतर बनाया जा रहा है। किसानों को अपनी उपज के लाभकारी मूल्य प्राप्ति हेतु आवश्यक वस्तु अधिनियम में भी संशोधन किए गए हैं। अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, आलू और प्याज सहित सभी कृषि खाद्य पदार्थ अब नियंत्रण से मुक्त होंगे। इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा या अकाल जैसी विशेष परिस्थितियों के अलावा स्टॉक की सीमा नहीं लगेगी।


विशेषताओं के बावजूद इन संशोधनों में सुधार की गुंजाइश भी है, चूंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था केवल गेंहू, धान जैसी कुछ फसलों और कुछ राज्यों तक ही वास्तविक रूप से सीमित रही है अत: एमएसपी की वर्तमान व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाया जाना चाहिए। किसानों से एमएसपी से नीचे फसलों की खरीद वर्जित हो और इसके उल्लघंन पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान किया जाए। दोनों व्यवस्थाओं में टैक्स के प्रावधानों में भी एकरूपता होनी चाहिए। दोनों व्यवस्थाओं का समानांतर चलना किसान हित में आवश्यक है। आश्चर्य है कि मुद्दों के अभाव में विपक्ष ने किसानों को ही अपनी राजनीति का मोहरा बना लिया जिसका नुकसान अंतत: किसान व देश को ही होगा।


-राकेश सैन

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