वैज्ञानिक शोध के महत्व का आकलन उसकी सामाजिक उपयोगिता के पैमाने पर किया जाता है। लेकिन, वैज्ञानिकों द्वारा उपयोग की जाने वाली तकनीकी भाषा में, आम जन के लिए ऐसे शोध कार्यों के महत्व को समझ पाना मुश्किल होता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा शुरू की गई ‘अवसर’ (ऑग्मेंटिंग राइटिंग स्किल्स फॉर आर्टिकुलेटिंग रिसर्च) प्रतियोगिता, सुगम भाषा में समाज को वैज्ञानिक शोध कार्यों के महत्व से परिचित कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
‘अवसर’ एक अखिल भारतीय प्रतियोगिता है, जिसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से जुड़े विभिन्न विषयों में डॉक्टोरल या पोस्ट डॉक्टोरल शोधार्थियों से उनके शोध विषय पर आधारित सुगम आलेख आमंत्रित किए जाते हैं और चयनित किए गए सर्वश्रेष्ठ आलेखों को पुरस्कृत किया जाता है। प्रतिभागियों द्वारा हिंदी या अंग्रेजी भाषा में लिखे गए आलेख 1000 से 1500 शब्दों में होने चाहिए।
प्रतियोगिता के अंतर्गत वैज्ञानिक तथ्यों की सरल शब्दों में प्रस्तुति के लिए सर्वश्रेष्ठ आलेखों को पुरस्कृत किया जाता है। पीएचडी शोधार्थियों के लिए प्रथम पुरस्कार एक लाख रुपये, दूसरा पुरस्कार, 50 हजार रुपये और तीसरा पुरस्कार 25 हजार रुपये है। इसके साथ ही, चयनित किए गए 100 पीएचडी शोधार्थियों के लेखों में प्रत्येक को 10 हजार रुपये का पुरस्कार दिया जाता है। इसी तरह, पोस्ट डॉक्टोरल फेलो वर्ग के तहत उत्कृष्ट लेख के लिए एक लाख रुपये और 20 अन्य चयनित प्रविष्टियों के लिए प्रत्येक को 10 हजार रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा।
‘अवसर’ योजना का प्रमुख उद्देश्य विज्ञान शोधार्थियों को विज्ञान संचारक बनने के लिए प्रोत्साहित करना है, ताकि वे वैज्ञानिक शोध की पेचीदगियों को सरल भाषा में जनसामान्य तक पहुँचा सकें।
राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी संचार परिषद (एनसीएसटीसी) की पहल पर ‘अवसर’ प्रतियोगिता की शुरुआत 24 जनवरी 2018 को की गई थी। इसका उद्देश्य अखबारों, पत्रिकाओं, ब्लॉग्स, सोशल मीडिया के जरिये युवा वैज्ञानिकों की क्षमता का उपयोग विज्ञान को लोकप्रिय बनाने और समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए करना है।
एनसीएसटीसी के प्रमुख डॉ मनोज कुमार पटेरिया ने कहा है कि “अवसर कार्यक्रम, युवा शोधकर्ताओं को विज्ञान संचार की धारा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करता है। इससे उन्हें वैज्ञानिक और विज्ञान संचारक, दोनों भूमिकाओं में कार्य करने एवं उसी के अनुरूप दोहरी विशेषताओं को तराशने का मौका मिलता है।”
अवसर प्रतियोगिता के कार्यान्वयन और समन्वय की जिम्मेदारी विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की स्वायत्त संस्था विज्ञान प्रसार द्वारा वहन की जा रही है। विज्ञान प्रसार के निदेशक डॉ नकुल पाराशर ने कहा है कि "इस पहल से वैज्ञानिक शोधों की जानकारी का प्रसार रोचक ढंग से आसान भाषा में किया जा सकेगा, जिसे सामान्य पाठक भी आसानी से समझ सकें। इससे भारत में हो रहे वैज्ञानिक शोधों और उनके महत्व के बारे में जागरूकता के साथ-साथ नए विज्ञान संचारक तैयार करने में भी मदद मिल सकती है।"
प्रतियोगिता के बारे में अधिक जानकारी www.awsar-dst.in पर मिल सकती है। प्रविष्टि भेजने के लिए प्रतिभागियों को इस वेबसाइट पर जाकर पंजीकरण करना होगा। प्रतियोगिता के अंतर्गत मिली प्रविष्टियों का मूल्यांकन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा गठित वैज्ञानिकों और विज्ञान संचारकों की टीम द्वारा द्वारा किया जाएगा। पीएचडी और पोस्ट डॉक्टोरल, दोनों वर्गों के अंतर्गत चयनित युवा शोधार्थियों को अगले वर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के मौके पर पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे।
पिछले वर्ष प्रतियोगिता के पीएचडी वर्ग के अंतर्गत सेंट्रल लेदर रिसर्च इंस्टीट्यूट, चेन्नई की शोधार्थी एस. क्रिस फेल्सिया को प्रथम पुरस्कार, सीएसआईआर-सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, पिलानी के अभिषेक आनंद एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के सयंतन सूर को द्वितीय पुरस्कार मिला था। पीएचडी वर्ग के तहत तीन तृतीय पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं में चितरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट, कोलकाता के अनिर्बान सरकार, जवाहरलाल नेहरु सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च, बेंगलुरु के चित्रांग दानी और सेंट्रल फूड टेक्नोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, मैसूर की शोधार्थी एम.एल. भव्या शामिल हैं। जबकि, गत वर्ष पोस्ट डॉक्टोरल वर्ग में सर्वश्रेष्ठ लेखन का पुरस्कार मरीन बायोलॉजी रीजनल स्टेशन, जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, चेन्नई के शोधार्थी डॉ आर. चंद्रन और सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय की शोधार्थी डॉ जोयिता सरकार को दिया गया था।
इंडिया साइंस वायर