By Anoop Prajapati | Sep 05, 2024
छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति ढहने के बाद से महाराष्ट्र के सिद्धदुर्ग में में शुरू हुआ बवाल थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। विपक्षी नेता राज्य सरकार पर सिद्धदुर्ग में शिवाजी की मूर्ति के ढहने के बाद से लगातार हमले कर रहे हैं। जबकि इस घटना के तुरंत बाद शिंदे सरकार एक्शन में भी आ गई थी और मूर्तिकार और ऑडिट के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ तुरंत एफआईआर भी दर्ज करवाई गई है।
इसके अलावा भी प्रदेश सरकार ने एक जांच समिति बनाई और घटना पर माफी मांगते हुए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उसी जगह पर एक नई मूर्ति बनाने का ऐलान भी किया है। इसके बावजूद भी यह घटना महाराष्ट्र में राजनीतिक पैंतरेबाजी का मुख्य केंद्र बन गई है। राज्य में विपक्ष की हरकतों को सांप्रदायिक तनाव भड़काते हुए अपने एजेंडे के लिए स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। बता दें कि अंबादास दानवे, जयंत पाटिल, विजय वडेट्टीवार, सतेज पाटिल और आदित्य ठाकरे समेत विपक्षी नेताओं ने घटना के बाद सिंद्धदुर्ग में घटनास्थलस्थल पर पहुंचे और उन्होंने स्थिति से निपटने के लिए सरकार के तरीके की आलोचना की है। इसके अलावा सोशल मीडिया पर गिरी हुई मूर्ति की तस्वीरें साझा कीं, जिसे धार्मिक तनाव भड़काने की कोशिश माना गया।
क्या विरोध की जगह सिर्फ राजनीतिक फायदा उठाने पहुंचे हैं विपक्षी नेता?
विपक्ष के ये नेता प्रतिमा गिरने से पहले उसे देखने नहीं गए थे, लेकिन घटना के बाद राजकोट में एकत्रित हुए। कथित तौर पर, विपक्ष ने किले में पार्टी के झंडे लहराते हुए सांसद नारायण राणे और उनके कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार भी किया है। इस व्यवहार को समर्थन हासिल करने और विभिन्न समुदायों के बीच संघर्ष पैदा करने की राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा गया।
राज्य में विपक्षी नेताओं पर लगा है ये गंभीर आरोप
महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले, एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार और शिवसेना (यूबीटी) उद्धव ठाकरे द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में जातिगत मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए आलोचना का सामना भी करना पड़ा है। इन विपक्षी नेताओं पर सांप्रदायिक तनाव फैलाने और राज्य के भीतर विभाजन पैदा करने का प्रयास करने का आरोप भी लगाया गया है।
विपक्ष ने भी सरकार पर लगाया ये आरोप
खबरों के अनुसार, ये भी बताया गया है कि कांग्रेस और एनसीपी मुगल बादशाह औरंगजेब के नाम पर बने शहर औरंगाबाद का नाम बदलने में विफल रही। मुगलों की प्रशंसा करने और छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ हुए अन्याय की अनदेखी करने का विपक्षी नेताओं पर आरोप लगाया गया।
क्या मूर्ति ढहने पर महाराष्ट्र को भी बांग्लादेश बनाने की रणनीति है ?
विपक्ष के इन नेताओं की हरकतों को महाराष्ट्र में बांग्लादेश जैसी स्थिति पैदा करने की कोशिश बताया जा रहा है। उन पर राजनीतिक लाभ के लिए शिवाजी महाराज की विरासत को धोखा देने का आरोप है। शरद पवार की खास तौर पर आलोचना इस बात के लिए की जाती है कि वे राजनीतिक लाभ के लिए ब्राह्मणों और गैर-ब्राह्मणों के बीच दरार पैदा कर रहे हैं।