अश्विनी उपाध्याय ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को आखिर किस आधार पर चुनौती दी है?

By नीरज कुमार दुबे | May 18, 2022

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 आजकल काफी चर्चा में है। ज्ञानवापी प्रकरण में कई राजनीतिक दल और मुस्लिम संगठन इसी एक्ट का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि निचली अदालत ने सर्वे का जो आदेश दिया था वह असंवैधानिक है। लेकिन भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधानों पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट से इसे असंवैधानिक घोषित करने की गुहार लगाई गई थी। अश्विनी उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधान मनमाने और असंवैधानिक हैं। याचिका में कहा गया है कि यह एक्ट हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध लोगों को उनके पूजा स्थल पर अवैध अतिक्रमण के खिलाफ दावे करने से रोकता है और उन्हें अपने धार्मिक स्थल दोबारा पाने के लिए विवाद की स्थिति में कोर्ट जाने से रोकता है।

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सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की धारा 2, 3 और 4 को विशेष रूप से चुनौती देते हुए उसे असंवैधानिक घोषित करने की गुहार लगाई गई है। अश्विनी उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेदों 14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करता है। उपाध्याय ने कहा है कि यह एक्ट संविधान में दिए गए समानता के अधिकार, जीवन के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में दखल देता है। उपाध्याय का कहना है कि केंद्र सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर यह कानून बनाया है। अश्विनी उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि जिन धार्मिक स्थलों पर आक्रमणकारियों ने अवैध तरीके से अतिक्रमण किया है, उस अतिक्रमण को हटाने और अपने धार्मिक स्थल वापस पाने का कानूनी मार्ग प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के माध्यम से बंद कर दिया गया है। अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि केंद्र सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी विषय पर लोगों का कोर्ट जाने का अधिकार छीन ले।

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प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ याचिकाकर्ता ने जिन बिंदुओं को आधार बनाया है वह इस प्रकार हैं-

 

 

-इस अधिनियम में भगवान राम के जन्मस्थान को शामिल नहीं किया गया है, लेकिन इसमें भगवान कृष्ण का जन्मस्थान शामिल है, हालांकि दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार हैं और पूरे संसार में समान रूप से पूजे जाते हैं। इसलिए यह एक्ट मनमाना, तर्कहीन और अनुच्छेद 14-15 का उल्लंघन करता है।


-याचिका में कहा गया है कि न्याय का अधिकार, न्यायिक उपचार का अधिकार, गरिमा का अधिकार अनुच्छेद 21 के अभिन्न अंग हैं, लेकिन यह अधिनियम उनका हनन करता है। 


-याचिका में कहा गया है कि हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख को धर्म के प्रचार के अधिकार की गारंटी अनुच्छेद 25 के तहत दी गयी है। लेकिन यह अधिनियम इसका उल्लंघन करता है।

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