By अभिनय आकाश | May 16, 2019
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के उद्घोष के साथ ही एक बार फिर सबसे बड़े घमासान के लिए जंग लड़ी जा रही है और फिर सबसे बड़ी जंग में हर महारथी अपना सबसे धारदार हथियार आजमाने की कवायद में लगे हैं। ऐसे में चर्चा-ए-आम है कि आखिर किसके वादों का रंग कितना चोखा होगा और किसके वादों का रंग सिर्फ धोखा होगा। दिल्ली दरबार के सियासी तख्त के लिए हो रहे घमासान में मोदी लहर की बानगी एक बार फिर दिखेगी या इस चुनाव में मोदी रथ रुक जाएगा? क्रिकेट अगर अनिश्चितताओं का खेल है तो सियासत को संभावनाओं का खेल कहा जाता है। इस खेल में कब कौन किस मुकाम पर पहुंच जाए, इसकी जीती जागती मिसाल हैं नरेंद्र मोदी।
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चुनावी समर में पूरे देश ने कस ली है कमर कि वो सूबे की तख्त पर किसे बिठाएंगे। जिसके आखिरी पड़ाव में 19 मई को वोट डाले जाएंगे और 23 मई के दिन सभी को परिणाम का इंतजार है। लेकिन आपको वर्तमान की ऊंगली पकड़कर इतिहास के दौर में ले चलें तो साल 2014 में 16 मई यानि आज के दिन की तारीख बेहद अहम थी। आज ही के दिन 16वीं लोकसभा के चुनावी नतीजे आए थे। साल था 2014 का दिल्ली का आसमान बिल्कुल साफ था लेकिन फिजाओं के रंग ने तो जैसे यह मान लिया था कि उन्हें आज गेरुए रंग में ही रंगना है। सुबह के पहले पहर तक यह साफ हो गया था कि सत्ता का केंद्र तिलक के प्रभाव और जनमानस के दवाब में आज राजनीति का नया कहकसा लिखने की ओर बढ़ रहा है।
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शाम होते-होते जब 16वीं लोकसभा के परिणाम पर चुनाव आयोग की मुहर लगी तब तक तो भाजपा के स्वर्णिम काल की इबादत लिखी जा चुकी थी। भारतीय जनता पार्टी ने बहुमत के आंकड़े से 10 सीटें ज्यादा लाकर 282 सीटों पर जीत दर्ज की थी। सत्ता तो भाजपा को अटल और आडवाणी के युग में भी हासिल हुई थी लेकिन अपने दम पर 200 पार का आंकड़ा छू पाना हमेशा से ही उनके लिए मुश्किल रहा था।
2004 से सत्ता से बाहर भाजपा ने 2013 में अटल-आडवाणी के दौर के बाद नए नेता के रूप में अपना चेहरा बनाया था। उस दौर में यह शायद पहला ऐसा मौका था जब भाजपा के किसी अध्यक्ष ने अपने टीम के गठन में इतने बड़े स्तर पर बदलाव किए थेl जिनमें 12 में से दस उपाध्यक्ष और सभी महासचिव नए थेl तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने ऐसा बदलाव इंडियन क्रिकेट टीम से प्रभावित होकर किया था या किसी और वजह से, पर इसमें 60 वर्ष के कम उम्र के नेताओं पर विशेष ध्यान दिया गयाl छह साल पहले संसदीय बोर्ड से हटाए गए नरेन्द्र मोदी को फिर बोर्ड में शामिल कर भाजपा ने अपने इरादे साफ़ जाहिर कर दिए थे। 2014 के सियासी रण में रणवीर बनकर उभरे नरेंद्र मोदी और उनके नेतृत्व में भाजपा ने न केवल अपने दम पर बहुमत पाने में कामयाबी हासिल की बल्कि इसके साथ ही तीन दशकों में किसी पार्टी को बहुमत का स्पष्ट जनादेश मिला।
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उम्मीदों का चुनाव था 2014
देश में 16वीं लोकसभा के लिए सात अप्रैल से मतदान शुरू हुए और नौंवें चरण में 12 मई को मतदान संपन्न हुआ। कुल 66.38 फीसदी वोट पड़े थे और 16 मई को चुनाव के नतीजे आए। 282 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई। भाजपा ने 16वें लोकसभा चुनाव में 428 प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था इनमें से 282 प्रत्याशियों को कामयाबी मिली। यानी बीजेपी की जीत का स्ट्राइक रेट तकरीबन 66 प्रतिशत रहा। भाजपा को करीब 31 प्रतिशत वोट मिले। उल्लेखनीय है कि 1991 के बाद से किसी भी दल को आम चुनावों में 30 प्रतिशत वोट नहीं मिले थे। गुजरात से उठी 'मोदी' नाम की लहर एकाएक देशभर में फैलती चली गई और 2014 के आम चुनाव के बाद जब 16 मई को नतीजे आए तो कांग्रेस समेत एनडीए के सभी विरोधी दलों की नींद उड़ गई।
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2019 में क्या बदला
2014 का चुनाव तो उम्मीदों का चुनाव था लेकिन साल 2019 का चुनाव ऐसा चुनाव है कि आपकी मौजूदगी को हम मानते हैं या नहीं। यह कहा नहीं जा सकता कि 2019 में भाजपा बहुमत ला पाएगी या नहीं। पार्टी अभी भी कर्नाटक को छोड़कर दक्षिण में कमजोर है। उत्तर प्रदेश में गठबंधन स्थिर है। स्थानीय सांसदों के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा है और बंगाल और उड़ीसा में हवा बनाने के बावजूद ममता बनर्जी और नवीन पटनायक मज़बूत विरोधी के तौर पर उभरे हैं। लेकिन नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए अनवरत प्रयास की गूंज ने एक ऐसा माहौल पैदा किया जहां मतदाताओं को यह यक़ीन दिला दिया गया है कि आएगा तो मोदी हीं। हालांकि मतदाताओं का नजरियां तो 23 मई के दिन स्पष्ट हो जाएगा कि भाजपा के तमाम दिग्गजों द्वारा किए जा रहे दावों में कितनी सच्चाई है। दावा सिर्फ एक ही है- मोदी है तो मुमकिन है। जबकि विपक्ष इसे नकारात्मकता के तौर पर पेश करने में जुटा हुआ है।