अब पाकिस्तान का सही, पक्का और स्थाई इलाज जरूरी

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By चेतनादित्य आलोक | Apr 28, 2025

अब पाकिस्तान का सही, पक्का और स्थाई इलाज जरूरी

22 अप्रैल को जम्मू−कश्मीर के अनंतनाग जिले के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पहलगाम के लोकप्रिय टूरिस्ट साइट बैसरन घाटी में आतंकवादियों ने जिस प्रकार से धर्म पूछकर निहत्थे, निर्दोष और मासूम पर्यटकों पर गोलियों की बौंछार करके 28 हिंदुओं समेत 30 लाशें बिछा दीं, वह उनकी राक्षसी प्रवृति का परिचायक है। पहलगाम की घाटी बैसरन में बेहद क्रूरतापूर्ण, दुष्टतापूर्ण, अमानवीय एवं असहनीय घटना को अंजाम देने वाले अत्यंत निर्मम, वीभत्स और दैत्य प्रकृति आतंकवादियों को सभ्य मानव समाज के बीच रहने का कोई अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। यही नहीं, उन्हें मानव बस्तियों और समाज से दूर घने और अंधकारपूर्ण जंगलों में भी नहीं रहने दिया जा सकता, क्योंकि यदि उन्हें वहां रहने दिया गया तो जंगली जानवरों और यहां तक कि स्वयं जंगलों का भी महाविनाश निश्चित ही हो जाएगा। ऐसी परिस्थिति में यह प्रश्न किया जाएगा कि फिर वे कहां पर रहें... जाहिर है कि इस प्रश्न का केवल एक ही उत्तर हो सकता है, और वह है कि उनकी अधोगति को उर्ध्वगति में परिवर्तित कर उनका कल्याण कर दिया जाए। यानी उन्हें भी ऊपर भेज दिया जाए, लेकिन यह मामला इतना सहज भी नहीं है, क्योंकि यदि ऐसा किया गया तो मानव अधिकारों की बात करने वाले लोग और संगठन उन 'राक्षसों के भी मानव आकिारों' की वकालत करना शुरू कर देंगे। इतना ही नहीं, ये उन 'राक्षसों के मानव आकिारों' की वकालत बेहद जोर−शोर से करेंगे।


ऐसा ये इसलिए करेंगे, ताकि उनकी आवाज दूर−दूर तक पहुंच सके, अन्यथा भारत के कोने−कोने तथा दूर देशों में बैठे इनके पैरोकारों, सहयोगियों और हमदर्दों से इन्हें पान−फूल और शाबाशियां कैसे मिल पाएंगी। वैसे, देखा जाए तो हम सब इनके कृत्यों के लिए इन्हें व्र्यथ ही बदनाम करते रहते हैं। वास्तव में, इसमें इनका कोई दोष भी नहीं है, क्योंकि इस प्रकार की वकालत करना तो हमेशा से ही, बल्कि कहा जाए कि इनका खानदानी व्यवसाय रहा है। ...और यही कारण है कि यह व्यवसाय इनसे छुड़ाए नहीं छूटता है। जाहिर है कि पुश्तों से 'मुंह की लगी' इतनी आसानी से कैसे छूटेगी भला। खैर, नहीं छूटती तो, न छोड़ें ये, हम इनके इस 'मुंह की लगी' को छुड़ाने का जिम्मा ले लें, यही उचित है। तात्पर्य यह कि ये अपना कार्य (अपनी वकालत) करते रहें... आतंकवादी भी (अपनी राक्षसी प्रवृति को आगे बढ़ाने का) अपना नियत कार्य करते रहें... और हम सभी 142 करोड़ भारतवासी एकजुट होकर अपने कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी से अंजाम तक पहुंचाने के लिए तत्पर रहें, ताकि इनकी 'मुंह की लगी' वकालत को भी सही राह दिखाई जाए और उनकी राक्षसी प्रवृति का समूल नाश भी किया जा सके। स्मरण रहे कि जब तक इनकी 'मुंह की लगी' और उनकी राक्षसी प्रवृति का पूरा−पूरा हिसाब नहीं किया जाएगा, वे हमारे निहत्थे, निर्दोष और मासूम लोगों के साथ धर्म पूछ−पूछकर खून की होली यों ही खेलते रहेंगे।

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पहलगाम की उस बेहद क्रूरतापूर्ण, दुष्टतापूर्ण, अमानवीय एवं असहनीय घटना के बाद से ही देश की मीडिया में और राजनीतिक मंचों पर बार−बार यह बात कही−सुनी जा रही है कि आतंकवादियों ने धर्म पूछकर हिंदुओं की हत्या की है, जबकि सच तो यह है कि पिछले 78 वर्षों से लगातार आतंकवादी धर्म पूछकर हिंदुओं की हत्याएं करते आ रहे हैं। यदि हम इसे नहीं मानते, तो समझिए कि स्वयं को झूठी तसल्ली दे रहे हैं। दरअसल, यह पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रायोजित धार्मिक (इस्लामिक) जिहाद है, जिसकी शुरूआत लगभग 32 वर्ष पूर्व जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ कस्बे के सरयल इलाके में एक यात्री बस से 17 हिन्दुओं को उनकी जांच−पड़ताल कर मौत के घाट उतार दिया था। कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के बाद वह पहला सबसे बड़ा नरसंहार था। उसके उपरांत तो धर्म पूछकर और जांच−पड़ताल कर हत्याएं करने का जो सिलसिला जम्मू कश्मीर में शुरू हुआ, वह 136 नरसंहारों के बाद भी नहीं थमा है। हालाकि, वर्ष 2006 के उपरांत ऐसे नरसंहारों में थोड़ी बहुत कमी आई थी, लेकिन वर्ष 2023 में एक जनवरी की रात आतंकवादियों ने राजौरी जिले के डांगरी गांव में 07 हिन्दुओं के आधार कार्ड जांच कर मार डालने की घटना ने एक बार फिर अधिकारियों को चौंका दिया था।


जम्मू−कश्मीर में हुए हिन्दुओं के कुछ अन्य बड़े नरसंहारों में 13−14 अगस्त 1993 को डोडा जिले के किश्तवाड़ कस्बे में सरथल−किश्तवाड़ मार्ग पर यात्री बस से उतार कर 17 हिन्दू यात्रियों को मारना, 14 मई 1995 को दोहरी भरथ में 06 हिन्दुओं की हत्या करना, 15 जनवरी 1996 को डोडा जिले के किश्तवाड़ कस्बे के बरशाला क्षेत्र में 16 हिन्दुओं की हत्या करना, 12 जनवरी 1996 को डोडा जिले के भद्रवाह कस्बे में 07 हिन्दुओं की हत्या करना, 06 मई 1996 को डोडा की रामबन तहसील के सुम्बर गांव में 17 हिन्दुओं की हत्या करना, 07−08 जून 1996 को डोडा जिले के कमलाड़ी गांव में 09 हिन्दुओं की हत्या करना, 25 जून 1996 को डोडा के सियुधार क्षेत्र में 13 हिंदुओं की हत्या करना, 07 अप्रैल 1997 को कश्मीर घाटी के संग्रामपुरा गांव में 07 कश्मीरी पंडितों की हत्या करना, 24 सितम्बर 1997 को राजौरी जिले के सवाड़ी गांव में 08 हिन्दुओं की हत्या करना, 26 जनवरी 1998 को कश्मीर के वंदहामा गांव में 23 कश्मीरी पंडितों की हत्या करना, 16 अप्रैल 1998 को डोडा के देस्सा क्षेत्र में 09 की हत्या करना, 17 अप्रैल 1998 को उधमपुर के प्राणकोट एवं ढाकीकोट गांवों में 29 लोगों की हत्या करना, 05 मई 199 को पुंछ के सुरनकोट क्षेत्र में 05 हिन्दुओं की हत्या करना और 06 मई 1998 को डोडा के देस्सा गांव में 11 सुरक्षा समिति के हिन्दू सदस्यों की हत्या करना शामिल है।


इनके अतिरिक्त, 19 जून 1998 को डोडा के चम्पनारी में 29 हिन्दू बारातियों की हत्या करना, जिनमें 03 दूल्हे भी शामिल थे। 27 जुलाई 1998 को डोडा में किश्तवाड़ के छिन्नाठकुराई एवं श्रवण गांवों में 20 हिन्दुओं की हत्या करना, 28 जुलाई 1998 को डोडा के सरवान क्षेत्र में 08 लोगों की हत्या करना, 19 फरवरी 1999 को राजौरी जिले के बल−चराल गांव में 09 हिन्दू बारातियों की हत्या करना, 19 फरवरी 1999 को राजौरी में कालाकोट क्षेत्र के बनियारी में 10 हिन्दुओं की हत्या करना, 29 जून 1999 को अनंतनाग के संथू गांव में 12 बिहारी श्रमिकों की हत्या करना, 01 जुलाई 1999 को मेंढर के आड़ी गांव में दो हिन्दू परिवारों के 09 सदस्यों की हत्या करना, 19 जुलाई 1999 को डोडा के काठरी गांव में 05 हिन्दू परिवारों के 15 सदस्यों की हत्या करना, 28 फरवरी 2000 को पुंछ के मेंढर कस्बे में 05 हिन्दुओं की हत्या करना, 29 फरवरी 2000 को काजीगुंड में 05 सिख ट्रक चालकों की हत्या करना, 20 मार्च 2000 को कश्मीर के छत्तीसिंह पोरा में 36 सिखों की हत्या करना, 01 अगस्त 2000 को पहलगाम में 32 हिंदुओं की हत्या करना, जिनमें 29 अमरनाथ यात्री भी शामिल थे, 02 अगस्त 2000 को डोडा के बनिहाल कस्बे के पोगल में 12 हिन्दुओं की हत्या करना तथा 02 अगस्त सन् 2000 को अनंतनाग के अच्छावल में आठ प्रवासी श्रमिकों की हत्या करना शामिल है।


इसी प्रकार, 02 अगस्त 2000 को अनंतनाग के काजीगुंड में 19 प्रवासी श्रमिकों की हत्या किया जाना, 22 नवम्बर 2000 को बनिहाल में राजमार्ग पर 05 हिन्दू−सिख ट्रक ड्राइवरों की हत्या करना, 24 नवम्बर 2000 को डोडा के किश्तवाड़ कस्बे में 05 हिन्दुओं की हत्या किया जाना, 03 फरवरी 2001 को श्रीनगर के महजूर नगर में 08 सिखों की हत्या करना, 10 मई 2001 को किश्तवाड़ के अठोली−पाडर के सजार कस्बे में 08 हिन्दुओं की गला रेत कर हत्या करना, 21 जुलाई 2001 को अमरनाथ यात्रा के पड़ाव स्थल शेषनाग में 07 तीर्थयात्रियों सहित 13. की हत्या किया जाना, 21 जुलाई 2001 को डोडा जिले के किश्तवाड़ तहसील के छात्रू क्षेत्र में 05 हिन्दुओं की हत्या करना, 21 जुलाई 2001 को डोडा जिले की किश्तवाड़ तहसील के वाडवान क्षेत्र में चिरजी मोहड़ा गांव में 15 हिन्दुओं की हत्या किया जाना, 04 अगस्त 2001 को डोडा जिले के किश्तवाड़ तहसील के सरूतधार क्षेत्र में 16 हिन्दुओं की हत्या करना, 01 जनवरी 2002 को पुंछ के मगवार गांव में एक हिन्दू परिवार के 06 सदस्यों की हत्या करना, 31 जनवरी 2002 को उधमपुर के रियासी कस्बे में 04 प्रवासी श्रमिकों की हत्या किया जाना, 17 फरवरी 2002 को राजौरी के कालाकोट क्षेत्र के निराला गांव में एक हिन्दू परिवार के 08 सदस्यों की हत्या करना एवं 30 मार्च 2002 को जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर हमला कर 08 हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया जाना शामिल है।


ऐसे ही, 08 अप्रैल 2002 को उधमपुर के अरनास गांव में सात हिन्दुओं की सामूहिक हत्या करना, 14 मई 2002 को जम्मू के कालूचक में किए गए भीषण नरसंहार में 34 हिन्दुओं की हत्या करना, 15 जून 2002 को डोडा के किश्तवाड़ क्षेत्र में एक धार्मिक यात्रा पर हमला कर 05 हिन्दुओं की हत्या करना, 16 जून 2002 को उधमपुर के बडर गांव में एक ही हिन्दू परिवार के 05 सदस्यों की हत्या किया जाना, 18 जुलाई 2002 को जम्मू के कासिम नगर में 29 लोगों की हत्या करना, जिनमें मरने वाले सभी प्रवासी श्रमिक थे, 06 अंगस्त 2002 को नुनवान−पहलगाम में 10 अमरनाथ श्रद्धालुओं का नरसंहार करना, 23 नवम्बर 2002 को रघुनाथ मंदिर पर हुए दूसरा आत्मघाती हमला कर 14 हिंदुओं की हत्या किया जाना, जिनमें 11 नागरिक, 01 सुरक्षाकर्मी एव 02 आतंकवादी शामिल थे, एक अन्य आतंकी हमले में जम्मू में 15 पुलिसकर्मियों और 02 नागरिकों की हत्या करना, 23 मार्च 2003 को कश्मीर के पुलवामा जिले में शोपियां के पास नाड़ीमर्ग गांव में आतंकवादियों द्वारा 24 कश्मीरी पंडितों की हत्या करना तथा 30 अप्रैल 2006 को उधमपुर के बसंतगढ़ में 07 हिन्दुओं और डोडा के कुलहान इलाके में 22 हिन्दुओं की हत्या किया जाना शामिल है। दरअसल, उन आतंकवादियों की फितरत ही यही है। वे हमेशा से पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रायोजित धार्मिक (इस्लामिक) जिहाद के अंतर्गत ऐसे ही योजनाएं बनाकर हिंदुओं की हत्याएं करते आए हैं।


गौरतलब है कि हाल ही में, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री, अन्य मंत्रियों, संत्रियों, आर्मी अफसरों, फौजियों आदि की मौजूदगी में हिंदुओं के विरूद्ध जहरीली तकरीर दी थी। उसने हिंदुओं को मुसलिमों से बदतर बताया तथा धार्मिक (इस्लामिक) जिहाद के लिए पाकिस्तानी फौज एवं आतंकवादियों को प्रेरित और प्रोत्साहित किया था, जिसके महज कुछ ही दिनों के भीतर उसके पाले−पोसे कुत्तों ने पहलगाम के लोकप्रिय टूरिस्ट साइट बैसरन घाटी में 28 हिंदुओं का कत्लेआम कर दिया। इससे पहले, 14 फरवरी 2019 को सीआरपीएफ के काफिले पर हुआ पुलवामा अटैक भी इसी जनरल मुनीर ने कराया था, जबकि हम उनके आतंकियों को मारकर अपनी पीठ थपथपाते रहे। पता नहीं हम इस बात को क्यों नहीं समझ पाते हैं कि हिंदुओं की हत्याओं का ये सिलसिला तब तक नहीं रूकने वाला, जब तक कि पाकिस्तान का सही, पक्का और स्थाई ईलाज नहीं किया जाएगा। इसके लिए सबसे जरूरी यह है कि हम समस्या की जड़, यानी भारत और 142 करोड़ भारतीयों के वास्तविक दुश्मन को पहचानें। वह दुश्मन पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल मुनीर है, मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे आतंकी नहीं। ये आतंकी तो महज उसके प्यादे हैं, जिनका उपयोग कर पाकिस्तान बार−बार भारत की आत्मा को लहूलुहान करता रहता है। जाहिर है कि हमें भी अब अपना एजेंडा बदलना होगा। हमें पाकिस्तानी पंजाबी फौजियों का खून बहाना होगा, ताकि उन्हें उस जगह पर चोट लगे, जहां उन्हें सबसे अधिक दर्द होता है। यकीन मानिए, यदि हमने ऐसा कर दिया तो उनका सही, पक्का और स्थाई इलाज हो जाएगा। इसलिए बिना देर किए भारत सरकार और एजेंसियों को पाकिस्तान का सही, पक्का और स्थाई ईलाज करने में जुट जाना चाहिए।


−चेतनादित्य आलोक, 

वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार, स्तंभकार एवं राजनीतिक विश्लेषक, रांची, झारखंड

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