By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Oct 01, 2019
नयी दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के बाद अब न्यायमूर्ति बी आर गवई ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में दर्ज प्राथमिकी रद्द करने से इंकार करने संबंधी बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा की अपील पर सुनवाई से खुद को मंगलवार को अलग कर लिया। न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ के समक्ष मंगलवार को नवलखा की अपील सुनवाई के लिये आयी। इस पर न्यायमूर्ति गवई ने नवलखा की अपील पर सुनवाई करने से खुद को अलग कर लिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि नवलखा की अपील अब तीन अक्टूबर को किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध की जायेगी। इससे पहले, सोमवार को गौतम नवलखा की याचिका प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुयी थी, लेकिन प्रधान न्यायाधीश ने इसकी सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
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इस मामले में महाराष्ट्र सरकार ने कैविएट दाखिल कर रखी है ताकि उसका पक्ष सुने बगैर कोई आदेश पारित नहीं किया जाये। उच्च न्यायालय ने 2017 में कोरेगांव-भीमा हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में दर्ज प्राथमिकी निरस्त करने से 13 सितंबर को इंकार कर दिया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस मामले में पहली नजर में ठोस सामग्री है।उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुये इसकी गहराई से जांच की आवश्यकता है। पुणे जिले के कोरेगांव भीमा में 31 दिसंबर, 2017 को आयोजित एलगार परिषद् के बाद हुयी कथित हिंसा की घटना के सिलसिले में पुणे पुलिस ने जनवरी, 2018 में नवलखा और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। नवलखा, वरवर राव, अरूण फरेरा, वेरनॉन गोन्जाल्विस और सुधा भारद्वाज के खिलाफ गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है।