By रेनू तिवारी | Aug 01, 2022
जब तक कोई बड़ी फिल्म नहीं आती तब कर लोग सिनेमाघर कम ही जाते हैं। हां कोरोना काल से पहले की बात कुछ और थी। सिनेमाघरों में फिल्म देखने का लोगों का अपना अलग ही क्रेज हुआ करता था। अब हालात ये हैं कि कोरोना काल में फिल्म निर्माताओं ने फिल्म को ओटीटी पर रिलीज करना शुरू कर दिया जिसके बाद लोगों के लिए ओटीटी तीसरे पर्दे के तौर पर उभरा। पसंदीदा प्लेटफॉर्म का रिचार्ज करवाकर लोग महीनेभर नयी-नयी फिल्में देखते हैं। अगर आप जी5 देखते है तो आज हम आपको कुछ सबजेक्टिव फिल्में बताने जा रहे हैं जिनकी सोशल मीडिया पर ज्यादा चर्चा तो नहीं हुई लेकिन यकीन मानिये अच्छी फिल्में हैं जो आपको आइना दिखाकर ही जाएगी।
अर्ध
राजपाल यादव को हमने कॉमेडी करते हुए ही देखा हैं लेकिन फिल्म अर्ध में वह लीड रोल प्ले कर रहे हैं। फिल्म माया नगरी में रहने वाले एक थिएटर आर्टिस्ट की कहानी हैं, जिसका सपना फिल्मों में काम करने का है। वह अपने बच्चे को पढ़ाना चाहता है जिसके लिए वह रोड़ पर हिजड़ाबनकर पैसे मांगता हैं और इस डर में भी रहता है कि किसी दिन ट्रांसजेंडरों को उनकी असलियत के बारे में पता चल गया तो वह उसकों बहुत मारेंगे। फिल्म बिना किसी चमत्कार के एक सच्चाई बयां करती हैं।
जनहित में जारी
कन्या भ्रूण हत्या पर फिल्म छोरी से लोकप्रियता पाने के बाद नुसरत भरूचा अब समाजित मुद्दों पर फिल्म की सीरीज लेकर आ रही हैं। नुसरत भरूचा की फिल्म जनहित में जारी महिलाओं के ऑबोशन को लेकर होने वाली मौतों पर आधारित हैं। फिल्म में कंडोम के इस्तेमाल करने के बारे में बताया गया है। कैसे महिलाओं को संबंध बनाने समय मर्दों से कंडोम का इस्तेमाल करने के लिए कहना चाहिए।
हेटमेट
यह एक कॉमेडी फिल्म हैं। यह भी कंडोम पर ही आधारित है मजाक मजाक में फिल्म समाजिक संदेश देती हैं। फिल्म में एक दोस्तों का समुह कुछ जल्दी पैसा कमाने के लिए बेताब, लकी और उसके दोस्त एक ई-कॉमर्स कंपनी के ट्रक को लूट लेते हैं। लेकिन उनके लिए आश्चर्य की बात यह है कि लूटे गए बक्सों में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के बजाय कंडोम होते हैं। लकी क्या करेगा? इसी पर पूरी फिल्म बनीं हैं।
झुंड
एक सेवानिवृत्त खेल शिक्षक, विजय बोराडे, स्लम सॉकर नामक एक एनजीओ शुरू करते हैं, जो स्लम के बच्चों को फुटबॉल खिलाड़ियों में बदलकर उनके पुनर्वास में मदद करता है। यह फिल्म विजय बरसे के जीवन पर आधारित है।
परीक्षा
वास्तविक जीवन की घटनाओं से प्रेरित यह ZEE5 मूल फिल्म बिहार के एक साधारण रिक्शा चालक के इर्द-गिर्द घूमती है। जो अपने बेटे को सर्वोत्तम संभव शिक्षा देने के लिए संघर्ष कर रहा है।