Prabhasakshi NewsRoom: सिर्फ Kailash Gehlot ने AAP नहीं छोड़ी है, पूरा जाट समुदाय Arvind Kejriwal से मुँह मोड़ सकता है

By नीरज कुमार दुबे | Nov 18, 2024

दिल्ली सरकार में मंत्री कैलाश गहलोत के इस्तीफे से आम आदमी पार्टी (आप) ने पार्टी का चर्चित जाट चेहरा खो दिया। माना जा रहा है कि उनके इस्तीफे से फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले महिलाओं को 1000 रुपये मासिक मानदेय देने की आप सरकार की महत्वाकांक्षी योजना प्रभावित हो सकती है। हम आपको बता दें कि कैलाश गहलोत 2015 से पश्चिमी दिल्ली में जाट बहुल नजफगढ़ निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उनके इस्तीफे का असर बाहरी दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में होना निश्चित है, जहां पर इस समुदाय की अच्छी खासी मौजूदगी है। कैलाश गहलोत यदि भाजपा के साथ जुड़ते हैं तो पार्टी को एक बड़ा जाट चेहरा मिल सकता है। हम आपको बता दें कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के निधन के बाद से दिल्ली भाजपा के पास कोई बड़ा जाट चेहरा नहीं है। हालांकि साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा पश्चिमी दिल्ली से दो बार सांसद और महरौली से एक बार विधायक रह चुके हैं लेकिन वह जाट समुदाय को भाजपा के पक्ष में उस तरह गोलबंद नहीं कर पाये जिस तरह उनके पिता ने किया था। देखना होगा कि कैलाश गहलोत यदि भाजपा के साथ जुड़ते हैं तो बाहरी दिल्ली क्षेत्र में खासा प्रभाव रखने वाला जाट समुदाय किस ओर जाता है। हम आपको यह भी बता दें कि हाल में संपन्न हरियाणा विधानसभा चुनावों में सत्ता में भाजपा की लगातार तीसरी बार वापसी में जाट समुदाय ने बड़ी भूमिका निभाई थी। जिस तरह आम आदमी पार्टी की सरकार में बार-बार कैलाश गहलोत को अपमानित करने का कार्य किया गया यदि वह जाट बेल्ट में मुद्दा बना तो आम आदमी पार्टी को बड़ा नुकसान होना तय है।


जहां तक कैलाश गहलोत की बात है तो आपको बता दें कि 50 वर्षीय जाट नेता आतिशी सरकार में परिवहन, गृह, आईटी, प्रशासनिक सुधार और महिला एवं बाल विकास जैसे विभाग संभाल रहे थे। बताया जा रहा है कि महिला एवं बाल विकास विभाग मुख्यमंत्री आतिशी द्वारा 2024-25 के बजट में घोषित ‘मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना’ का मसौदा तैयार कर रहा है। मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव से पहले इसे लागू करने की योजना पर अब असर पड़ेगा, क्योंकि कैलाश गहलोत ही इसका मसौदा तैयार करने से जुड़े थे।

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हम आपको बता दें कि कैलाश गहलोत ने आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को लिखे अपने त्यागपत्र में कई मुद्दे उठाए हैं जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री के पूर्व आधिकारिक आवास ‘शीशमहल’ विवाद, दिल्ली सरकार का केंद्र के साथ टकराव, जिससे लोगों को बुनियादी सेवाएं उपलब्ध कराने में बाधा उत्पन्न हो रही है और यमुना नदी की सफाई में विफलता शामिल है। दिल्ली भाजपा नेताओं ने कैलाश गहलोत के इस्तीफे का स्वागत किया है। इससे इस बात की चर्चा मजबूत हो गई कि वह विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो सकते हैं। भाजपा की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा, ‘‘उन्होंने एक साहसी कदम उठाया। उन्होंने अपने इस्तीफे के लिए वही कारण बताए हैं जो भाजपा केजरीवाल और आप के खिलाफ उठा रही थी।’’


हालांकि, आम आदमी पार्टी के नेताओं ने दावा किया है कि कैलाश गहलोत ने इस्तीफा इसलिए दिया क्योंकि वह प्रवर्तन निदेशालय सहित केंद्रीय एजेंसियों की जांच का सामना कर रहे थे और भाजपा में शामिल होना उनके सामने अंतिम विकल्प था। वैसे माना जा रहा है कि कैलाश गहलोत का इस्तीफा हतप्रभ करने वाला नहीं है लेकिन यह पूरी तरह अप्रत्याशित भी नहीं है, क्योंकि वह आम आदमी पार्टी में ‘‘अलग-थलग’ महसूस कर रहे थे। हम आपको बता दें कि पिछले साल उनसे राजस्व और वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभाग वापस लेकर आतिशी को सौंप दिया गया था। इसके अलावा, इस साल स्वतंत्रता दिवस पर तब जेल में बंद मुख्यमंत्री की ओर से तिरंगा फहराने के लिए एक मंत्री को नामित करने का फैसला करने के दौरान उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया था। हालांकि उपराज्यपाल द्वारा उनके पक्ष में निर्णय लिए जाने के बाद कैलाश गहलोत ने अंततः दिल्ली सरकार के समारोह में राष्ट्रीय ध्वज फहराया, लेकिन केजरीवाल चाहते थे कि आतिशी ऐसा करें। इसके बाद कैलाश गहलोत के सब्र का बांध तब टूट गया जब केजरीवाल ने उनको दरकिनार कर आतिशी को अपना उत्तराधिकारी चुना। इससे कैलाश गहलोत नाराज हो गये थे। 


बताया जाता है कि कैलाश गहलोत के दिल्ली सरकार के नौकरशाहों के साथ-साथ दिल्ली के उप राज्यपाल वीके सक्सेना के कार्यालय से भी अच्छे संबंध हैं। आम आदमी पार्टी की सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव के चरम पर रहने के दौरान भी कैलाश गहलोत ने कभी कड़े शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। आम आदमी पार्टी के सूत्रों का दावा है कि इस बार विधानसभा चुनाव में नजफगढ़ से कैलाश गहलोत का टिकट भी तय नहीं था। आप सूत्रों का कहना है कि कैलाश गहलोत को संभवतः इस बात का अंदेशा हो गया था इसलिए उन्होंने यह कदम उठाया।

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