Gyan Ganga: भक्ति करने के लिए साधु-संन्यासी बनना और जंगल में भटकना जरूरी नहीं है

By आरएन तिवारी | Aug 13, 2021

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !

तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नुम: !!


प्रभासाक्षी के धर्म प्रेमियों !


आइए ! श्रीमद भागवत महापुराण की कथा प्रवाह में प्रवेश करें। 


श्रीमद भागवत महापुराण की कथा का आयोजन करने वाला व्यक्ति निमित्त मात्र होता है। निमित्त के रूप में वह वक्ता, श्रोता अथवा आयोजन कर्त्ता हो सकता है। गीता के एकादश अध्याय के 33 वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं– ये कौरवों की सेना पहले से ही मेरे द्वारा मारी जा चुकी है। अर्जुन, तू केवल निमित्त मात्र बन जा।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: धृतराष्ट्र के मन में महाभारत युद्ध के परिणाम के प्रति शुरू में ही क्यों हो गया था संदेह?

तस्मात्वमुतिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रुन् भुंक्ष्व राज्यं समृद्धम्।

मयैवैते निहता: पूर्वमेव निमित्त मात्रं भव सव्य साचिन।


धार्मिक कार्यों के आयोजन में जो कारण बनता है, वह भगवान का प्रिय होता है। जैसे अर्जुन। 

सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति।


मैंने संपूर्ण त्रिभुवन में विश्वरूप का दर्शन केवल तुम्हें ही करवाया है।


भगवान के लीला चरित्र का वर्णन अल्प बुद्धि वाला व्यक्ति नहीं कर सकता---


कालिदास ने स्पष्ट कह दिया है— विशाल सागर को एक छोटी-सी नौका के सहारे भगवत कृपा के बिना नहीं पार किया जा सकता।


1) क्व सूर्य प्रभवो वंश: क्व चाल्प विषया मति: 

तितीर्षु दुस्तरं मोहाद् उडुपेनापि सागरम्।।


2) मंद: कवियश; प्रार्थी: गमिष्यामि उपहास्यताम् 

प्रांशु लभ्ये फले लोभात् उद्बाहुरिव वामन:।।


3) जाकी कृपा लवलेश ते मतिमंद तुलसी दासहूँ।

पायो परम विश्राम राम समान प्रभु नाहीं कहूँ।।

                            

श्री गणेशय नम;  

भागवत माहात्म्य

- ग्रंथ परिचय—  

‘म’ द्वयम ‘भ’ द्वयम चैव व त्रयम् ब चतुष्टयम्

अनाप लिंग कुस्कानि पुराणनि पृथक-पृथक॥ 


- श्रीमद भगवत गीता जीवन को उत्सव बनाती है और श्रीमद भागवत महापुराण मृत्यु को महोत्सव बनाता है। इस अद्भुत पुराण का प्राकट्य ब्रह्मा जी के तप से हुआ है।


श्री मदभागवतम पुराणतिलकम यद वैष्णवानामधनम 

यस्मिन पारमहंसमेवममलम ज्ञानम परम गीयते । 

यत्र ज्ञान विराग भक्ति सहितम नैष्कर्म्यमाविष्कृतम 

तत्श्रिंणवन प्रपठन विचारणपरो भक्त्या विमुच्येत नर: ॥  

   

- भागवत शब्द में चार वर्ण हैं। 

भ से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य, त से तत्व

गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी मुहर लगाई है।

भगति हीन गुन सब सुख ऐसे, लवण बिना बहु व्यंजन जैसे।


भक्ति क्या है भक्ति के स्वरूप का वर्णन करते हुए हमारे आचार्यों ने कहा है—

भक्ति करने के लिए हमें साधु संन्यासी होकर पर्वत की गुफाओं और मंदिर, मस्जिद और जंगल में भटकने की जरूरत नहीं है। गृहस्थ जीवन यापन करते हुए भी भक्ति की जा सकती है।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: भगवान की कृपा से अर्जुन का मोह व संशय नष्ट हो गये और वह आज्ञा का पालन करने लगे

1. भक्ति जब भोजन में प्रवेश करती है तब वह भोजन प्रसाद बन जाता है।

2. भक्ति जब भूख में प्रवेश करती है तब वह भूख व्रत बन जाता है।

3. भक्ति जब पानी में प्रवेश करती है तब वह पानी पंचामृत बन जाता है।

4. भक्ति जब सफर में प्रवेश करती है तब वह सफर तीर्थयात्रा बन जाता है।

5. भक्ति जब संगीत में प्रवेश करती है तब वह संगीत कीर्तन बन जाता है।

6. भक्ति जब घर में प्रवेश करती है तब वह घर मंदिर बन जाता है।

7. भक्ति जब कार्य में प्रवेश करती है तब वह कार्य कर्म बन जाता है।


जहाँ डाल-डाल पर ज्ञान भक्ति का रहता रोज बसेरा, वो धर्म ग्रन्थ है मेरा

जहाँ कृष्ण कन्हैया नंद यशोदा आकर देते फेरा, वो धर्म ग्रन्थ है मेरा


सत्य अहिंसा और प्रेम का होता रोज सबेरा-------------------


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय


- आरएन तिवारी

प्रमुख खबरें

गोवा में बड़ा हादसा, पर्यटकों से भरी नाव पलटी, एक की मौत, 20 लोगों को बचाया गया

AUS vs IND: बॉक्सिंग डे टेस्ट में रोमांचक मुकाबले की संभावना, क्या रोहित करेंगे ओपनिंग, जानें किसका पलड़ा भारी

Importance of Ramcharitmanas: जानिए रामचरितमानस को लाल कपड़े में रखने की परंपरा का क्या है कारण

Arjun Kapoor के मैं सिंगल हूं कमेंट पर Malaika Arora ने दिया रिएक्शन, जानें क्या कहा?