दिल्ली की एक अदालत ने उद्योगपति विजय माल्या के खिलाफ फेरा उल्लंघन मामले में कथित रूप से सम्मन से बचने के लिए आज एक गैर जमानती वारंट जारी किया है जिसकी तामील की कोई तारीख नहीं है। मुख्य मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट सुमित दास ने यह आदेश तब पारित किया जब प्रवर्तन निदेशालय ने कहा कि गत वर्ष चार नवम्बर को अदालत की ओर से जारी गैर जमानती वारंट की तामील नहीं हुई है एवं उसे इसके लिए और समय की जरूरत है। अदालत ने मामले की अगली सुनवायी की तिथि आठ नवम्बर तय की। अदालत ने यद्यपि एजेंसी को इस संबंध में एक प्रगति रिपोर्ट दो महीने में दाखिल करने का निर्देश दिया।
इससे पहले अदालत ने यह भी कहा था कि चार अक्तूबर को उसने विशेष तौर पर यह कहा था कि माल्या अधिकारियों से संपर्क करके भारत लौटने से जुड़े आपात दस्तावेज हासिल कर सकते हैं लेकिन उन्होंने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। कथित तौर पर लंदन में प्रवास कर रहे माल्या ने अदालत के समक्ष नौ सितंबर को कहा था कि वह भारत लौटना चाहते हैं लेकिन पासपोर्ट निरस्त कर दिए जाने की वजह से ‘‘नेक इरादा’’ होने के बावजूद लौट पाने में ‘‘अक्षम’’ हैं।
इस पर प्रवर्तन निदेशालय ने चार अक्तूबर को कहा था कि माल्या का इरादा भारत लौटने का नहीं है और उनका पासपोर्ट उनके अपने व्यवहार के कारण रद्द किया गया। निदेशालय के अनुसार, माल्या को दिसंबर 1995 में लंदन की कंपनी बेनेटन फार्मूला लिमिटेड के साथ हस्ताक्षरित एक अनुबंध के सिलसिले में पूछताछ के लिए चार बार सम्मन किया गया। यह अनुबंध किंगफिशर ब्रांड के विदेशों में प्रचार के लिए किया गया था। जब माल्या इन समन के जवाब में पेश नहीं हुए तो आठ मार्च 2000 को एक अदालत के समक्ष एक शिकायत दर्ज कराई गई। बाद में माल्या के खिलाफ एफईआरए के तहत आरोप तय किए गए।