By डॉ. रमेश ठाकुर | Feb 18, 2023
संसद में बीते तीन वर्षों में गुम हुए बच्चों का मुद्दा उठा। विपक्ष द्वारा पूछा गया कि कितने बच्चे परिवारों से बिछड़े और कितनों को खोजा गया। जिस पर सरकार ने आंकड़ों के साथ एक रिपोर्ट पेश की। आंकड़ों के मुताबिक चार राज्यों में एक भी बच्चा लापता नहीं हुआ और सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश से बच्चे गायब हुए। बच्चों को खोजने के मामले में प्रशासनिक आंकड़े संतोषजनक जरूर हैं, पर संतुष्टि भरे नहीं? कहां कमी रह गई और आगे की क्या हैं योजनाएं, जैसे तमाम मुद्दों पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री मुंजपारा महेंद्र भाई से पत्रकार डॉ. रमेश ठाकुर ने विस्तृत बातचीत की, पेश हैं बातचीत के मुख्य हिस्से।
प्रश्नः बच्चों को खोजने के मामलों में जो आंकड़े बताए गए हैं, उन्हें देखकर उनमें उदासीनता दिखती है?
उत्तर- सरकारी व प्रशासनिक स्तर पर गुम बच्चों को ढूंढ़ने में किसी तरह की कोई कोताही नहीं है। मुहिम में दिनों दिन तेजी आ रही है। कोरोना काल के दौरान और उसके बाद यानी तीन सालों में देशभर से करीब पौने दो लाख के आसपास बच्चे अपने परिवारों से बिछड़े, जिनमें करीब 90 फीसदी बच्चे खोजे गए हैं, ये आंकड़े बीते वर्षों के मुकाबले बहुत अच्छे हैं। लेकिन हमारा मकसद है कि कोई भी बच्चा गुम ना हो, अगर किसी कारणवश हो भी, तो उसे हर हाल में खोजा जाए।
प्रश्नः तकनीकी युग में तो असंभव कुछ भी नहीं, फिर भी आंकड़े शत प्रतिशत नहीं हैं?
उत्तर- जो गायब बच्चे नहीं मिल पाए हैं, उनके बाकायदा आधार कार्ड का डाटा हमारे पास है, उनके जरिए हम प्रत्येक बच्चों तक पहुंचेंगे। बॉर्डर से सटे राज्यों के बच्चे ज्यादा गायब हो रहे हैं। जैसे पश्चिम बंगाल जहां की स्थिति ज्यादा अच्छी कभी नहीं रही। कुछ सूचनाएं हैं जिनसे पता चलता है कि वहां के ज्यादातर बच्चे गायब करके पड़ोसी देश बांग्लादेश भिजवाए जाते हैं, उनसे भीख मंगवाई जाती है। इस एंगल की जांच करवाई जा रही है। बच्चों से भीख मंगवाने का काम कुछ लोग जबरदस्ती करवाते हैं, ऐसे लोगों पर हमारी सख्त नजर बनी हुई है। दरअसल, इस कुप्रथा के खिलाफ सामाजिक स्तर पर चेतना होगा।
प्रश्नः आपके मंत्रालय ने ‘ट्रैक चाइल्ड पोर्टल’ बनाया है, इसका क्या मकसद है?
उत्तर- केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने लापता हुए बच्चों को सर्च करने के लिए ‘ट्रैक चाइल्ड पोर्टल’ तैयार किया है, जिसमें उन बच्चों के संबंध में संपूर्ण जानकारियां दर्ज हैं, जो बच्चे या तो अपनों से बिछड़ गए, या फिर अचानक गायब हुए हैं। इस ट्रैक और तमाम आधुनिक तकनीकों से बच्चों को खोजना अब पहले के मुकाबले काफी हद तक आसान हुआ है। परिवारों से रूठ कर बिछड़ने वाले तकरीबन बच्चे खोज लिए जाते हैं। पर, जो बच्चे किडनैप या कैप्चर किए जाते हैं, उन्हें ट्रैक करना और खोजना थोड़ा चुनौती भरा होता है। बच्चों के चोरी होने की घटनाएं और चाइल्ड पोर्नोग्राफी का चलन भी चिंता का विषय है। इस पर हम पूर्ण प्रतिबंध की दिशा में काम कर रहे हैं।
प्रश्नः चाइल्ड ट्रैफिकिंग की समस्या भी तेजी से फैल रही है?
उत्तर- जी हां। ये बड़ी समस्या उभरी है। खुफिया रिपोर्टस् के मुताबिक चाइल्ड ट्रैफिकिंग के तमाम हिडन गिरोह हिंदुस्तान के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय हैं। उन जगहों पर तो ज्यादा हैं जहां गरीबी और अशिक्षा का अभाव है। संपन्न-शिक्षित राज्यों में ये कृत्य ना के बराबर है। मौजूदा रिपोर्ट में लक्षद्वीप, मिजोरम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश व सेवन सिस्टर्स प्रदेशों में पिछले कुछ वर्षों में एक भी बच्चा गायब नहीं हुआ। इसमें हुकूमतों की सतर्कता अच्छे से रही और अभिभावकों की जागरूकता भी। पहली जनवरी 2020 से लेकर 31 दिसंबर 2022 तक के जो आंकड़े सामने हैं उनमें गायब 1 लाख 46 हजार 316 में से 1 लाख 28 हजार 667 बच्चे खोजे गए हैं।
प्रश्नः भीख माफिया तंत्र भी हिंदुस्तान में सक्रिय है?
उत्तर- देखिए, ज्यादातर बच्चे अपनी मर्जी से भीख नहीं मांगते। वो संगठित माफियाओं के हाथों की कठपुतली होते हैं। बिहार, पंजाब, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, बिहार, नई दिल्ली और ओडिशा में यह एक बड़ी समस्या है। सरकारी सख्ती के साथ सामाजिक स्तर पर भी इस समस्या के प्रति हम सबको चेतना होगा। जब तक सामूहिक चेतना और सतर्कता नहीं बढ़ेगी, ये सिलसिला आसानी से रुकने वाला नहीं? हमें सड़क पर भीख मांगने वाले बच्चों से बात करनी चाहिए, पता करना चाहिए कि क्या वो इस काम में अपनी मर्जी से आया है। तब, अगर आपको जरा भी संदेह हो, तो तुरंत रिपोर्ट करनी चाहिए। ऐसा करके हम एक जिम्मेदार नागरिक होने का कर्तव्य भी निभाएंगे।
-डॉ. रमेश ठाकुर